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भारतीय क्रिकेट के इतिहास में कुछ यादगार पल

June 25, 2018
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भारतीय क्रिकेट के इतिहास में कुछ यादगार पल

हर दूसरे देश की तरह भारत ने अपने औपनिवेशिक स्वामी – राष्ट्र-मंडल देश ब्रिटेन से क्रिकेट का खेल सीखा। फिर भी विडंबना यह है कि पिछले कुछ वर्षों से भारतीय टीम ने अपने पहले ट्यूटर्स से बेहतर प्रदर्शन किया है और अब वह सबसे मजबूत क्रिकेटिंग देशों में से एक माना जाता है। आज तक भारतीय क्रिकेट इतिहास में सबसे यादगार क्षण हैं –

1983 के विश्व कप पर कब्जा

बिना किसी संदेह के 1983 के विश्व कप पर जीत प्रप्त करना भारत का सबसे प्रतिष्ठित यादगार क्षण रहा। 25 जून की दोपहर को भारत ने वेस्टइंडीज सहित सभी ऐसी बाधाओं को पराजित किया, जिसने 1975 और 1979 में पिछले दो बार विश्व कप पर कब्जा किया था और इस प्रकार वेस्टइंडीज टीम जीत के लिए प्रबल दावेदारों में से एक थी। कपिल देव ने अपने साहसिक खेल से वेस्टइंडीज के सभी दावों पर पानी फेर दिया, जब टीम को उनकी जरूरत थी, तो उन्होंने टीम के लिए स्वयं को बेहतर बनाया। इससे भारतीय खेल की लोकप्रियता में भारी वृद्धि हुई और 1993 के प्रसिद्ध नायकों में से एक सचिन तेंदुलकर को अपना पसंदीदा खिलाड़ी माना। अस्ट्रेलिया में 1985 में बैन्सन और हेजर्स विश्व चैंपियनशिप क्रिकेटपर जीत का उल्लेख भी किया जाना चाहिए। इस जीत से पता चलता है कि 1983 में भारत की जीत आकस्मिक नहीं थी।

2011 के घरेलू विश्व कप पर कब्जा

विश्व कप के मामले में यह भारत की दूसरी बड़ी और भारत में पहली जीत थी। इसके साथ ही भारत ने 1987 और 1996 की अपनी उस बड़ी कमजोरियों को खत्म कर दिया, जब वह भारतीय प्रशंसकों की पसंदीदा होने के बावजूद घर पर विश्व कप जीतने में असमर्थ रही थी। दोनों बार सेमीफाइनल में टीम हार गई थी। यह विश्व कप संभवतया हाल के समय के भारतीय क्रिकेटर की शान – सचिन तेंदुलकर के लिए सिर का मुकुट साबित हुई और भारतीय टीम के लिए  एमएस धोनी और विराट कोहली के रूप में दो नए नायकों को उभार कर सामने लाया। सर्वश्रेष्ठ भारतीय टीम लीग चरण में कुछ हद गिरती हुई नजर आई, लेकिन इसके बाद नॉकआउट चरण में एक चैंपियन की तरह खेली। 1985 बैन्सन और हेजर्स विश्व चैंपियनशिप क्रिकेट पर जीत और 2013 की चैपियंस ट्राफी पर जीत हासिल करके सीमित ओवरों के खेल में भारत शीर्ष पर स्थान बनाने में सफल रहा।

2007 के टी-20 विश्व कप पर कब्जा

यह टी 20 का पहला संस्करण था और भारत इस फार्मेट में पूरी तरह से अनाधिकृत टीम होने के बावजूद इस कप पर कब्जा किया। एम एस धौनी के नेतृत्व में भारतीय टीम ने इस टूर्नामेंट में अच्छा प्रदर्शन किया और अंतिम विश्व कप जीतने के 24 साल बाद एक बार फिर से भारतीय टीम ने ऐसा कारनामा कर दिखाया।

1971 में दो टेस्ट सीरीजों को किया अपने नाम

1971 में भारत को वेस्टइंडीज और इंग्लैंड के खिलाफ दो टेस्ट श्रंखला खेलने के लिए टूर पर भेजा गया था। एक बार फिर समर्थकों की पसंदीदा न होने के बावजूद दोनों टेस्ट मैचों पर भारतीय टीम अपना कब्जा बनाने में कामयाब रही। युवा खिलाडी सर गारफील्ड सोबर्स शायद सबसे अच्छे क्रिकटरों में से एक थे, इसलिए वेस्टइंडीज के खिलाफ यह श्रंखला को जीतना आसान नहीं था। इस श्रंखला में सुनील गावस्कर भी उभर कर आए जो सचिन तेंदुलकर से पहले सबसे अच्छे क्रिकेटर थे। इस जीत से दो चीजें प्रदर्शित हुईं – भारत का विदेशों में प्रदर्शन और दूसरा यह कि भारतीय टीम बड़ी से बडी टीम को भी हरा सकती है।

भारत की टेस्ट सीरीज में पहली विदेशी और घरेलू जीत

न्यूजीलौंड के दौरे के दौरान भारत ने आखिरकर कीवियों को धूल चटा दिया और ऐसा करके भारत के बाहर पहली जीत हासिल करने में कामयाब रहा। ईरापल्ली प्रसन्ना (दूसरी पारी में 6 विकेट) इस शानदार जीत के मुख्य खिलाडी थे। हालांकि, भारत ने 1952 में श्रृंखला के पांचवें टेस्ट के दौरान चेन्नई में पहली टेस्ट जीत पर अपना कब्जा किया था, जहाँ भारत, इंग्लैंड का मेहमान था। इस पूरे समय में वीनू माकंड शीर्ष खिलाडियों में से एक रहे, जिन्होंने पहली पारी में 8 विकेट सहित कुल 12 विकेट लेने के साथ टेस्ट क्रिकेट में अपनी छाप छोड़ी और ऑफ स्पिनर गुलाम अहमद ने पूरी तरह से इनका साथ दिया, और दूसरी पारी में 4 विकेट लिए। पंकज रॉय और पॉली उमरीगर के शानदार शतक की बदौलत भारतीय टीम का कुल स्कोर काफी मजबूत था।