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राष्ट्रीय शिक्षा दिवस 2017: भारत एक नई शिक्षा नीति प्राप्त करने के रास्ते पर

November 11, 2017
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राष्ट्रीय शिक्षा दिवस 2017

भारत के 11 वें राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम – “वास्तविक शिक्षा मनुष्य की गरिमा (प्रतिष्ठा) और आत्म-सम्मान को बढ़ाती है। अगर प्रत्येक व्यक्ति शिक्षा की वास्तविक भावना का अहसास कर सके और मानव गति विधि के हर क्षेत्र में आगे बढ़ने में सफल हो सके, तो दुनिया में एक बेहतर स्थान प्राप्त करने में कामयाब होगा।”

किसी राष्ट्र की प्रगति और विकास में शिक्षा द्वारा निभाई जाने वाली केंद्रीय भूमिका को शायद ही अस्वीकृत किया जा सकता है। शिक्षा को प्राय: एक बैंक के रूप में जाना जाता है, जहाँ समाज को अपने विकास के लिए धन संचित करने की आवश्यकता होती है। इस बैंक में नियमित जमा (शिक्षा प्राप्त) करने के उद्देश्य से जाना चाहिए। सरकार द्वारा शिक्षा पर ध्यान केन्द्रित करने के कारण, समाज सार्वभौमिक और उदार शिक्षा पर काफी जोर दे रहा है। हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी राष्ट्रीय शिक्षा दिवस नजदीक आ चुका है, तो आइए हम भारत सरकार द्वारा आयोजित शिक्षा सुधारों पर एक नजर डालते हैं।

राष्ट्रीय शिक्षा दिवस

सरकार द्वारा प्रस्तावित शैक्षिक सुधारों पर गहराई से चर्चा करने से पहले, हम 11 नवंबर को आयोजित होने वाले राष्ट्रीय शिक्षा दिवस स्मरणोत्सव पर एक नजर डालते हैं। राष्ट्रीय शिक्षा दिवस प्रत्येक वर्ष 11 नवंबर को भारत के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। इस साल यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन (यूजीसी) ने देश के विश्वविद्यालयों के लिए एक सूचना जारी की है, ताकि वे इस दिन को मनाकर मौलाना अबुल कलाम आजाद की यादों का पुन: स्मरण कर सकें। विभिन्न अवसरों पर मिनार और कार्यशालाओं में लोगों के एकत्र होने की संभावनाएं रहती है। कुछ विश्वविद्यालय भी इस कार्यक्रम के उद्देश्य को प्रदर्शित करने के लिए रैलियों और प्रतियोगिताओं का आयोजन करते हैं। देश में, राष्ट्रीय शिक्षा दिवस का जश्न एक अभूतपूर्व पैमाने पर हर्षोल्लास के साथ मनाए जाने की संभावना है। इस अवसर पर केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) ने भी अपने संबद्धित स्कूलों से, इस कार्यक्रम को संशोधित और समावेशी शिक्षा की कार्य सूची को प्रदर्शित करने के लिए कहा है।

मौलाना अबुल कलाम आजाद

मौलाना सैय्यद अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन अहमद (1888-1958) एक प्रसिद्ध भारतीय मुस्लिम विद्वान और स्वतंत्रता सेनानी थे, जिन्होंने देश के स्वतंत्रता संग्राम में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मौलाना आजाद ने देश के युवाओं से आजादी के आंदोलन में शामिल होने का आग्रह भी किया था और वे क्रांतिकारी लेख को आजाद (स्वतंत्र) नाम से लिखते थे और उनकी इस प्रकार की लेखनी के आधार पर उन्हें मौलाना आजाद के नाम से संबोधित किया जाने लगा था। जब भारत ने ब्रिटिश योक (दासत्व का चिन्ह) का त्याग किया था, तब वह देश के पहले शिक्षा मंत्री बने थे, उन्होंने शिक्षामंत्री का कार्यकाल 15 अगस्त 1947 और 2 फरवरी 1958 तक संभाला था। मौलाना अबुल कलाम आजाद ने, देश की लड़कियों की शिक्षा के लिए बहुत से महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं और इसके लिए उनकी प्रतिबद्धता बहुत ही सराहनीय रही है। मौलाना आजाद के नेतृत्व में आईआईटी, योजना और वास्तुकला विद्यालय या विश्वविद्यालय अनुदान आयोग जैसे प्रसिद्ध शिक्षण संस्थानों की स्थापना की गई।

दिसंबर में नई शिक्षा नीति

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री, सत्यपाल सिंह ने घोषणा की कि सरकार देश में जल्द ही एक नई शिक्षा नीति का शुभारंभ करेगी। केरल में आयोजित नेशनल एकेडमिक मीटिंग में कहा कि शिक्षण नीति के अंतिम विवरण की जाँच-पड़ताल उचित ढंग से की जा रही है। स्वतंत्रता प्राप्त करने के सात दशकों के बाद भी, हमारी शिक्षा प्रणाली अभी तक औपनिवेशिक मानसिकता का अनुसरण कर रही है। मंत्री ने भारतीय सामाजिक मूल्यों के संदर्भ में कहा है कि नई शिक्षा प्रणाली इस ब्रिटिश विरासत को दूर करेगी और विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप शिक्षा को अनुकूलित करेगी। भारत की शक्ति अब अपने आप में एक वैश्विक शक्ति है और दुनिया भर के लिए विनिर्माण और सेवाओं का केंद्र है। ऐसी संभावना की जा रही है कि सरकार शिक्षा सुधार को ध्यान में रखते हुए व्यावसायिक प्रशिक्षण और कौशल विकास पर ज्यादा जोर देगी।

भारत में शिक्षा को उच्च स्तर पर पहुँचाने के लिए, हमें सबसे पहले प्राथमिक शिक्षा पर ध्यान देना होगा। प्राथमिक शिक्षा को सार्वभौमिक नहीं होना चाहिए, बल्कि सबसे ज्यादा जरूरी प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने पर जोर देना चाहिए।

सरकार ने “प्रतिभा-पलायन” या विदेशों में प्रवेश लेने के लिए पलायन करने वाले छात्रों को रोकने के लिए,देश में उच्च शिक्षा की योजना बनाई है। भारत के केवल 56 प्रतिशत छात्र उच्चतर शिक्षा के फॉर्म में आवेदन कर सकते थे, लेकिन अमेरिका जैसे देशों में उच्च शिक्षा की उपलब्धता लगभग 86 प्रतिशत तक की आँकी गई है। जर्मनी में यह 80 प्रतिशत है और चीन में यह लगभग 60 प्रतिशत है।

मंत्री ने कहा,सस्ती (वहन करने योग्य) शिक्षा और सार्वभौमिक शिक्षा एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जिसका आगामी नीति में उल्लेख किया जाएगा। जबकि शिक्षा का अधिकार अब एक मौलिक अधिकार है (चूँकि संसद ने 2002 में 86 वें संवैधानिक संशोधन में यह पारित किया था)। इस अधिकार का उल्लंघन होने पर भी अभी तक इसका कोई समाधान (निवारण तंत्र) नहीं निकाला गया है। उदाहरण के तौर पर, यदि एक लड़की के माता-पिता उसे स्कूल में नहीं भेजते हैं, तो उसके स्कूल जाने के अधिकार को हासिल करने के लिए कोई व्यवस्था नहीं बनाई गई है। मंत्री ने कहा है कि शिक्षा की नई नीति द्वारा इसका भी संबोधन किया जाएगा।