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भारतीय बच्चों के जीवन में शिक्षा की भूमिका

April 16, 2018
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भारतीय बच्चों के जीवन में शिक्षा की भूमिका

शिक्षा और इसका महत्व

हर व्यक्ति के जीवन में शिक्षा की अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका होती है। शिक्षा ने हमेशा से ही एक व्यक्ति में बेहतर व्यक्तित्व का निर्माण किया है। शिक्षा का उद्देश्य केवल परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करना नहीं होता है, बल्कि शिक्षा के माध्यम से नई चीजों को सीखने के साथ अपने ज्ञान में वृद्धि की जा सकती है।

हालांकि, बच्चे हमारे देश का भविष्य हैं, इसलिए हमें उन्हें अच्छी नैतिकता और बेहतर तरीके से शिक्षा ग्रहण करने पर जोर देना चाहिए, ताकि वे भविष्य में एक जिम्मेदार व्यक्ति बन सकें। शिक्षा से बच्चों में यह भी समझने की क्षमता उजागर होती है कि उनके लिए क्या सही है और क्या गलत है। जब एक बच्चा एक उत्कृष्ट शिक्षा और अच्छी नैतिकता के साथ आगे बढ़ेगा, तभी देश का विकास होगा।

माता-पिता – बच्चों की शिक्षा का पहला चरण

माता-पिता अपने बच्चे के प्रारंभिक बचपन के विकास को संवारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शिक्षा का पहला अनुभव, बच्चा अपने घर से सीखता है। एक बच्चे के जीवन में उसका पहला विद्यालय (प्रथम पाठशाला) परिवार होता है। माता-पिता बच्चे के भविष्य को एक आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

यदि बच्चे अपने घर में अधिक समय बिता रहे हैं, तो उनके माता-पिता को उन्हें एक स्वस्थ वातावरण देना चाहिए। एक अस्वस्थ वातावरण बच्चे के विकास में रुकावट डाल सकता है। इसलिए, माता-पिता को अपने बच्चों को शिक्षा का अभ्यास कराने के लिए, घर को एक बेहतर स्थान बनाना चाहिए।

माता-पिता एक कुम्हार की तरह होते हैं, क्योंकि कुम्हार जैसा चाहे उसी प्रकार से बर्तन को ढाल लेता है। इसलिए माता-पिता को अपने बच्चों को बचपन से ही वृद्धों का सम्मान, लोगों की मदद करना और दूसरों के साथ वस्तुओं का आदान-प्रदान करना आदि जैसे अहम नैतिक मूल्यों से अवगत कराना चाहिए। एक माता-पिता को अपने बच्चों को नए और परिवर्तनात्मक पहलुओं का पालन करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

प्ले स्कूलों की स्थापना

बच्चों के समग्र व्यक्तित्व के आधार का निर्माण करने में प्ले स्कूलों ने काफी योगदान दिया है। ये स्कूल बच्चों को वांछित विद्यालय में प्रवेश पाने के लिए तैयार करने में मदद करते हैं। प्ले स्कूल छोटे बच्चों में सामाजिक और शैक्षिक कौशल का विकास करते हैं। यह स्कूल बच्चों को अधिक अनुशासित और समयनिष्ठ बनाते हैं। 2 से 3 साल की उम्र के बीच के बच्चों को प्ले स्कूल में भेजा जाता है। प्ले स्कूल बच्चों को औपचारिक स्कूलों में जाने के विचार से परिचित कराने में मदद करते हैं। यह स्कूल बच्चों को दुनिया का सामना करने के लिए तैयार करते हैं।

बच्चों को पढ़ाने की नवीन पद्धतियाँ

भारतीय बच्चों के शिक्षण में उपयोग की जाने वाली पद्धतियाँ नवीन होनी चाहिए। कक्षा में बच्चों का ध्यान आकर्षित करने जैसी सबसे बड़ी चुनौती का अक्सर शिक्षक को सामना करना पड़ता है। आज की शिक्षा प्रणाली का मुख्य उद्देश्य, बच्चों के दिमाग पर शिक्षा का लंबे समय तक प्रभाव डालना है। बच्चों को घर जाने के बाद कक्षा में क्या पढ़ाया गया था, यह याद रखने में सक्षम होना चाहिए।

हर बच्चे का स्वभाव भिन्न होता है और वह अलग-अलग शिक्षण तकनीक का पालन करता है। एक बार जब आप उन्हें उनकी पसंदीदा सीखने की शैली का अभ्यास कराते हैं, तो वह आपको आश्चर्यचकित करने में कभी असफल नहीं होते हैं। बच्चों को पढ़ाने और कक्षाओं को अधिक रोचक बनाने के लिए शिक्षकों द्वारा प्रयोग की जाने वाली कुछ नवीन पद्धतियाँ इस प्रकार हैं:-

दृश्य (विजुअल) शिक्षण

बच्चे देखकर बहुत कुछ सीखते हैं। इसलिए अपनी शिक्षण पद्धतियों में चित्र, चिह्न, चार्ट, रेखा-चित्र और रंगों को शामिल करके बच्चे की रुचि को जागृत किया जा सकता है।

सुनना और सीखना

एक पाठ को कहानी के रूप में परिवर्तित करके बताना, बच्चों की शिक्षा के प्रति रुचि को बढ़ाएगा। कक्षा में बच्चों के साथ गायन का उपयोग करके उनके मनोभाव में वृद्धि की जा सकती है।

पहेलियाँ और खेल

पहेलियों और खेलों की मदद से बच्चों को अभ्यास करवाएं और उनका कक्षा में अधिक मात्रा में उपयोग करें। इसके परिणामस्वरूप वे सक्रिय रूप से ऐसी गतिविधियों में भाग लेंगे।

कक्ष के बाहर कक्षाएं लगाएं

जब हम बच्चों को उनकी कक्षा से बाहर ले जाते हैं, तो वे बहुत उत्सुकतापूर्वक चीजों को सीखते और याद करते हैं। इसलिए शिक्षा की प्रासंगिकता के लिए क्षेत्रीय भ्रमण का आयोजन करें।

रोल प्ले (भूमिका निभाना)

यह किसी भी आयु वर्ग के बच्चों को पढ़ाने का सबसे उपयुक्त तरीका है। इस विधि से, वे कक्षा में पढ़ाए गए पाठ को तुरंत समझ सकते हैं।

स्मार्ट लर्निंग

एक बड़े छात्र को शिक्षित करने की तुलना में एक छोटे बच्चे को शिक्षित करना एक बहुत कठिन कार्य होता है। यह बच्चों में चीजों को समझने और उनकी व्याख्या करने तथा उन्हें सही दिशा देने के लिए महत्वपूर्ण है। यदि बच्चे शिक्षा की उचित पद्धतियों का अनुसरण करने में कामयाब नहीं होते हैं, तो वे बहुत जल्द शिक्षा के प्रति अपनी रुचि को खो देते हैं।

स्मार्ट लर्निंग मनोरंजन तथा शिक्षा का मिश्रण है। यह पद्धति न केवल  कक्षाओं को सुव्यवस्थित करती है, बल्कि यह अभ्यास कराने में बच्चों की रुचि का भी विकास करती है। इसमें ऑडियो और वीडियो उपकरण का संयोजन शामिल है, जो बच्चों में अभ्यास की जिज्ञासा को बढ़ाने के लिए प्रभावी ढंग से उपयोग किए जाते हैं। खेल, खिलौने, पॉडकास्ट, फिल्म और टेलीविजन आदि जैसे उपकरणों का उपयोग शिक्षण सत्र में काफी काम करता है।

स्मार्ट लर्निंग आज के कई स्कूलों द्वारा अपनाई जाने वाली एक प्रचलित पद्धति बन गई है। इस अभ्यास के उद्भव के बाद ब्लैकबोर्ड की अवधारणा अपना अस्तित्व खो रही है और जब बच्चों की बात आती है, तो उनके लिए अवकाश शिक्षा की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण होता है। जब बच्चे इसे पसंद करने लगते हैं, तो उनके लिए यह स्मार्ट लर्निंग की पद्धति काफी मजेदार हो जाती है।

बाल निरक्षरता

शिक्षा के क्षेत्र में इतना विकास होने के बाद भी, भारत में अभी भी कुछ बच्चे ऐसे हैं, जो प्राथमिक शिक्षा से भी वंचित हैं। साक्षरता की कमी बच्चों और साथ ही साथ देश के विकास के लिए भी खतरा बनी हुई है।

बाल निरक्षरता के पीछे के प्रमुख कारणों में वित्तीय संकट भी शामिल है, क्योंकि देश की ज्यादातर जनसंख्या गरीबी स्तर से नीचे जीवन यापन कर रही है, इसलिए वे अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में भेजने तथा वहाँ आने वाले खर्च को वहन नहीं कर पाते हैं। गाँवों और पिछड़े क्षेत्रों में, सरकार द्वारा चलाए जाने वाले विद्यालयों में व्यापक निरक्षरता के परिणाम कम दिखाई पड़ते हैं। जब माता-पिता के पास घर का खर्च चलाने के लिए कोई विकल्प नहीं बचता है, तो वह परिवार की आजीविका के लिए बच्चों को काम करने के लिए भेज देते हैं।

बच्चों को शिक्षा के महत्व से परिचित करवाना बहुत महत्वपूर्ण है। शिक्षा की कमी से इस बात की संभावना रहती है कि वह बच्चे समाज के लिए खतरा बन सकते हैं।

बाल निरक्षरता से लड़ने के लिए सरकार की पहल

भारत सरकार ने भारतीय शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए कई योजनाओं की शुरूआत की है। सरकार द्वारा गरीब परिवार के बच्चों को स्कूलों में जाने के लिए “सर्व शिक्षा अभियान” और मिड-डे मील जैसी योजनाएं चलाई जा रही हैं। सरकार भारत की साक्षरता दर बढ़ाने के लिए पिछड़े क्षेत्रों में भी स्कूलों की स्थापना कर रही है।

प्रत्येक बच्चे को स्कूल जाना चाहिए, क्योंकि प्रत्येक के पास शिक्षा का समान अधिकार है। किसी भी देश का विकास और समृद्धि वहाँ के नागरिक को बचपन से प्राप्त शिक्षा की गुणवत्ता पर निर्भर करती है। प्रत्येक बच्चा अपने आप में खास अर्थात् हर बच्चे में कोई न कोई खूबी मौजूद होती है। इसलिए हमें बच्चों की कार्यक्षमता की पहचान करनी चाहिए और उन्हें सही दिशा में मार्गदर्शन करवाना चाहिए। आखिरकार, आज के बच्चे कल का भविष्य होगें।

सारांश
लेख का नाम- भारतीय बच्चों के जीवन में शिक्षा की भूमिका

लेखिका का नाम- साक्षी

विवरण-  इस लेख में शिक्षा के महत्व पर बात की गई है। हर बच्चे को स्कूल जाना चाहिए, क्योंकि हर किसी के पास शिक्षा का समान अधिकार है। किसी भी देश का विकास और समृद्धि उसके नागरिकों को बचपन से प्राप्त शिक्षा की गुणवत्ता पर निर्भर करती है।

जीवन में शिक्षा का महत्व