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भारत का राष्ट्रीय प्रतीक: क्या है इसका महत्व

April 5, 2018
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भारत का राष्ट्रीय प्रतीक

भारत का राष्ट्रीय प्रतीक इतिहास और वर्तमान भारत, दोनों में एक विशेष स्थान रखता है। यह भारत के गौरव, आत्मविश्वास, शक्ति और साहस का प्रतीक है। यह प्रतीक अशोक द्वारा निर्मित सिंहचतुर्मुख-स्तभ से लिया गया है, जो सारनाथ में स्थित है। जिस दिन इसे राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह के रूप में स्वीकार किया गया था, वह दिन भी काफी ऐतिहासिक है, क्योंकि यह उस दिन आधिकारिक रूप से अपनाया गया था, जब 26 जनवरी 1950 को भारत एक गणराज्य बना था। वर्तमान में, यह प्रतीक 1910 से वाराणसी के सारनाथ संग्रहालय में संरक्षित है।

यह प्रतीक तापमान (200-240 डिग्री सेल्सियस) और आर्द्रता (45-55 प्रतिशत) जैसी विशिष्ट परिस्थितियों में विशेष देखभाल के साथ और उत्तर प्रदेश के कुशल पुलिस-कर्मियों द्वारा सख्त सुरक्षा के साथ संरक्षित है।

महत्व

भारत का राष्ट्रीय प्रतीक उच्च सम्मान का दावेदार है, जिसका उपयोग केवल सरकारी प्रयोजनों और राष्ट्रीय महत्व वाली स्पर्धाओं के लिए किया जाता है। इसे सभी सरकारी आधिकारिक कागजातों, भारतीय मुद्रा और पासपोर्ट पर देखा जा सकता है। यह राज्य सरकारों और यहाँ तक कि भारत के राष्ट्रपति की भी आधिकारिक मुहर है। हमारा देश, इस प्रतीक के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है।

संरचना और बनावट

राजधानी सारनाथ के स्तंभ से लिए गए इस प्रतीक की बनावट वास्तव में मनमोहक है, जो गौरवशाली रूप से शेर और धर्म चक्र को प्रदर्शित करता है। प्रतीक में चार शेरों की मुखाकृति है, जो पीठ से पीठ सटाए हुए खड़े हैं और उनमें से केवल तीन ही दिखाई देते हैं। शेरों को एक गोल आधार पर स्थापित किया गया है, जिसके नीचे एक दौड़ता हुआ घोड़ा, बैल और हाथी बने हुए हैं, जो सभी एक चक्र द्वारा एक दूसरे से अलग-अलग हैं। इस चक्र को विशेष रूप से व्हील ऑफ लॉ (हिंदी में धर्म चक्र) के नाम से जाना जाता है। प्रतीक के नीचे देवनागरी लिपि में- मुंडकोपनिषद से लिया गया सत्यमेव जयते उत्कीर्ण है, जिसका अर्थ है कि हमेशा सत्य की विजय होती है। हालांकि, राजधानी सारनाथ में स्थित इस प्रतीक के मूल में पूर्ण रूप से खिला हुआ कमल का फूल भी बना हुआ है।

इतिहास और प्रतीकवाद

ऐसा माना जाता है कि इस प्रतीक का मूल पहले सारनाथ में स्थित अशोक स्तंभ के शीर्ष पर बना था। सारनाथ एक महत्वपूर्ण बौद्ध स्थल है और इसे ऐसा स्थान माना जाता है, जहाँ बुद्ध ने अपना पहला शांति का उपदेश दिया था। 250 ईसा पूर्व निर्मित इस स्तंभ को अशोक स्तंभ के नाम से जाना जाता है और यह स्तंभ अभी भी वहाँ स्थित है। कलिंग में भारी रक्तपात के बाद सम्राट अशोक ने अपने जीवन के दृष्टिकोण पर विचार किया और पश्चाताप करते हुए सम्राट अशोक ने अहिंसा और बौद्ध धर्म के मार्ग का चुनाव किया। बौद्ध धर्म अपनाने के बाद, उन्होंने कई मूर्तियों, स्तूपों और धार्मिक स्थलों का निर्माण करवाया था। यह स्तंभ उनके द्वारा निर्मित सबसे प्रसिद्ध वास्तुकला है।

यह स्तंभ बुद्ध की शिक्षाओं और विचारधारा से काफी प्रभावित है। इसमें बने चार शेर चार महान सत्यों का प्रतीक हैं। स्तंभ में बने चक्र सभी दिशाओं में धर्म के प्रसार को दर्शाते है। यह भी माना जाता है कि स्तंभ में बने घोड़ा, बैल, हाथी, शेर और पैर की एक जोड़ी बुद्ध का प्रतिनिधित्व करते हैं, जैसा कि पुरातात्विक अध्ययनों और प्राचीन मुहरों द्वारा सुझाया गया है। इसके अलावा, चारों दिशाओं की ओर देखते हुए स्थापित शेर सभी दिशाओं में सतर्कता का प्रतीक हैं।

चार शेरों के नीचे बने धर्म चक्र में 24 तीलियाँ हैं, जो दिन के 24 घंटों का प्रतिनिधित्व करती हैं और यह दर्शाती हैं कि समय को प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है। यह हमेशा जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा प्रदान करता है। चार शेरों के आधार के ठीक नीचे बने दो जानवर घोड़ा और बैल भी काफी महत्व रखते हैं, क्योंकि जहाँ एक तरफ बैल कड़ी मेहनत और दृढ़ता का प्रतिनिधित्व करता है, वहीं दूसरी तरफ घोड़ा वफादारी, गति और ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है।

राष्ट्रीय प्रतीक प्रत्येक नागरिक के लिए गर्व की बात है और यह हमारे दिल और दिमाग से यथार्थ रूप में काफी अनमोल है।

सारांश
लेख का नाम – भारत का राष्ट्रीय प्रतीक: क्या है इसका महत्व

लेखिका – हर्षिता शर्मा

विवरण – इस लेख में हमारे देश के राष्ट्रीय प्रतीक के बारे में बताया गया है कि राष्ट्रीय प्रतीक प्रत्येक नागरिक के लिए गर्व की बात है और यह हमारे दिल और दिमाग से यथार्थ रूप में काफी अनमोल है।