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विमुद्रीकरण के अंतर्गत एक वर्ष में डिजिटल भुगतान का वृद्धिआख्यान

November 9, 2017
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विमुद्रीकरण

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काले धन के खिलाफ भारत का सबसे बड़ा आक्रामक हमला करते हुए- 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों को प्रचलन से बाहर (चलन से बंद) किया था, जिसको लागू हुए एक वर्ष पूरा हो चुका है। अचानक घोषणा करते हुए, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने (8 नवंबर, 2016) शुक्रवार को रात 8:00 बजे राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा था कि पूर्व संचालित (500 या 1000 के नोट) नोटों को तत्काल प्रभाव से वापस ले लिया जाएगा। सरकार ने 500 और 2000 रुपये के नए नोटों के प्रचलन की घोषणा भी की। बैंक खाते से नकद रुपये निकालने के संदर्भ में लोगों पर बहुत सारे नियम और प्रतिबंध लागू किए गए थे, जिससे बड़े पैमाने पर विमुद्रीकृत नोटों का आदान-प्रदान करने में दिक्कत का समाना करना पड़ा था। अब, विमुद्रीकरण (नोटबन्दी) को एक साल पूरा हो चुका है इसलिए, पर्याप्त मात्रा में नकदी का अर्थव्यवस्था में संचार भी हो सका है, आइए हम विमुद्रीकरण (नोटबन्दी) के अभियान के बाद हो रहे विकास के उद्देश्यों पर एक नजर डालते है।

विमुद्रीकरण (नोटबन्दी) से परेशानियाँ

विमुद्रीकरण (नोटबन्दी) के कारण आम जनता को बहुत-सी असुविधा और परेशानी का सामना करना पड़ा था, इस बात को नकारा नहीं जा सकता है। नवंबर के मध्य से (विमुद्रीकरण की घोषणा के बाद) केवल 4000 रुपये तक की अधिकतम नकद निकासी की घोषणा की गई थी। 31 दिसंबर से पहले तक विमुद्रीकरण के कारण रुपयों का आदान-प्रदान करने के लिए बैंकों और डाकघरों के बाहर लंबी कतारें लगी हुई थी। शुरूआत में देश के सभी 2,05,509 एटीएम बंद कर दिए गए थे और यहाँ तक कि पुनरावृत्ति के बाद एक दिन में मात्र 2000 रुपये निकाले जा सकते थे। बैंकों और डाकघरों के समाने लंबी कतारों में लगने से लोगों के बीमार होने की कई अफवाहें और यहाँ तक कि मरने की भी सूचना मिली थी, लेकिन सबसे ज्यादा चोट, दैनिक काम करने वाले मजदूरों और अर्थव्यवस्था के निचले पायदान के लोग जो काफी हद तक नकद भुगतान पर निर्भर थे, उनको पहुँची थी। कुछ व्यावसायिक क्षेत्र जैसे हाथों से बनाये जाने वाले कपड़े, उपभोग की जाने वाली वस्तुएँ, आभूषण, ऑटो, चित्रकारी से संबंधित चीजें गंभीर रूप से प्रभावित हुई और इनको नकदी की कमी का सामना करना पड़ा था। पारंपरिक रूप से छोटी कंपनियां, जो एक वर्ष में 25 करोड़ और 50 करोड़ रुपए के बीच की कमाई दर्ज करती है, गंभीर रूप से प्रभावित हुई। इन कंपनियों में सालाना बिक्री वित्त वर्ष 2015-16 में 19.3 प्रतिशत से बढ़कर 53.6 फीसदी हो गई, जो वित्त वर्ष 2016-17 में 53.6 फीसदी थी। आम आदमी ने इस विमुद्रीकरण (नोटबन्दी) के अभियान को खामोशी से सहन इस उम्मीद से किया कि इस अभियान से काले धन को बाहर निकाला जाएगा और विमुद्रीकरण (नोटबन्दी) के माध्यम से देश को दीर्घकालिक लाभ प्रदान होगा।

सरकार ने डिजिटल भुगतान को बढ़ावा दिया

भारत सरकार द्वारा विमुद्रीकरण (नोटबन्दी) के उपयोग का सबसे बड़ा सकारात्मक परिणाम यह रहा कि इससे डिजिटल भुगतानों को बढ़ावा मिला है, जिससे देश एक नकदहीन (कैशलेस) अर्थव्यवस्था के करीब पहुँच रहा है। दिसंबर 2016 में, मोदी जी ने एक मोबाइल ऐप भीम (भारत इंटरफेस फॉर मनी) का शुभांरभ किया- यूपीआई (यूनिवर्सल पेमेंट्स इंटरफेस) आधारित एक स्वदेशी मोबाइल भुगतान के द्वारा लेन-देन का आवेदन शुरू किया गया था। यह एप्लिकेशन स्मार्टफोन उपयोगकर्ताओं को अपने बैंक खातों से लिंक करने और यूपीआई के माध्यम से भुगतान करने में सहायता करती है।

30 से अधिक प्रमुख सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और निजी बैंकों को भीम ऐप से जोड़ा जा सकता है। सरकार ने डिजि-धन व्यापार योजना और लकी ग्राहक योजना की घोषणा और भीम ऐप का उपयोग करने के लिए लोगों को प्रोत्साहित किया। इस साल फरवरी तक, भीम ऐप को लगभग 1 करोड़ 70 लाख लोगों ने डाउनलोड करके रिकॉर्ड बनाया है।

कैशलेस लेनदेन में स्पाइक का महत्व

निश्चित तौर पर यूपीआई आधारित भीम ऐप ने जन समूह पर अपनी छाप छोड़ी क्योंकि इससे यूपीआई के गैर-लाभप्रद प्राप्तकर्ताओं को भुगतान करने की अनुमति मिल गई थी और इसलिए भी इसे महत्व ज्यादा दिया गया, क्योंकि भीम ऐप के जरिए भुगतान करने के लिए एक सक्रिय इंटरनेट कनेक्शन की आवश्यकता नहीं थी। हालाँकि, शहरी क्षेत्रों में, लोग मोबाइल द्वारा इन एप्स जैसे पे-टीएम, गूगल तेज, एयरटेल मनी, साइट्रस पे और फ्रीचार्ज का प्रयोग कैशलेस लेनदेन के लिए करने लगे हैं। स्थानीय सब्जी विक्रेता से लेकर किराए की टैक्सी चलाने वाले तक, सभी डिजिटल भुगतान स्वीकार करने के इच्छुक दिखाई देते थे। सरकार के आलोचकों का कहना है कि यह एक अस्थायी घटना है, लेकिन आँकड़े कुछ और ही कहानी बता रहे हैं। विमुद्रीकरण (नोटबन्दी) की घोषणा के एक साल बाद भी लोगों के बीच डिजिटल भुगतान के जरिए लेनदेन करने के लिए उत्सुकता बनी हुई हैं। अक्टूबर 2016 में, पूरे भारत में यूपीआई से लेनदेन करने वाले 6 करोड़ 80 लाख उपयोगकर्ता जुड़े है-नवंबर 2016 में 30 लाख से अधिक उपयोगकर्ताओं की वृद्धि हुई है। पिछले साल नवंबर में 3 करोड़ 60 लाख से ज्यादा और अक्टूबर 2017 में 8 करोड़ 20 लाख लोगों ने एमपीएस से लेनदेन किया है। अब इसका एकीकरण करके और पेटीएम जैसे कई निजी डिजिटल वॉलेट्स भीम ऐप और इसके यूपीआई आधारित इंटरफेस से जुड़ी हुई है। पिछले वर्ष से भारत में सार्वजनिक बैंक के क्षेत्र भी अपने मोबाइल बैंकिंग ऐप और ई-वालेट्स को सक्रिय रूप से बढ़ावा दे रहे हैं, इसलिए इनका बड़े पैमाने पर उपयोग हो रहा है। इस समय भारत में बैंक द्वारा संचालित ऐप्स एसबीआई बैंक द्वारा एसबीआई पे, ऐक्सिस बैंक द्वारा एक्सिस पे, केनरा बैंक द्वारा ईएमपावर और एचडीएफसी बैंक द्वारा पेजैप सबसे अधिक उपयोग किए जाने वाले मोबाइल वालेट्स ऐप में शामिल हैं। इंडिया पोस्ट पेमेंट्स बैंक (आईपीपीबी) का शुभारंभ किया गया है, जो इंडिया के वेस्ट आउटरीच को पूँजीकरण और डिजिटल भुगतानों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक और प्रमुख विकास है। काले धन को लेकर पहले से ही बहुत ज्यादा बहस बनी हुई है जो कि विमुद्रीकरण (नोटबन्दी) अभियान के अंतर्गत बाहर निकल चूका है। नीति कार्यान्वयन में कई सबक हैं, जिसे हमारी सरकार को सीखना है। इस विमुद्रीकरण से देश में डिजिटल भुगतान और नकद रहित (कैशलेस) लेनदेन के एक नए युग की शुरुआत हुई है।