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सैनिटरी नैपकिन और भारत : जीएसटी का सफरनामा

July 27, 2018
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सैनिटरी नैपकिन और भारत : जीएसटी का सफरनामा

जब मासिक धर्म के बारे में बात करना लगभग प्रत्येक महिला के लिए एक सामाजिक कलंक के बारे में बात करने के बराबर था, तो एक चीज इस चुप्पी को तोड़ने में कामयाब रही है। माल और सेवा कर (जीएसटी) ने बहुत सारे कारणों से अनेक लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है, जिनमें से एक सैनिटरी नैपकिन पर लगने वाली टैक्स दरें है। जब पहली बार जीएसटी की घोषणा की गई थी, तो पैड पर लगे 12 प्रतिशत जीएसटी के प्रति सामाजिक कार्यकर्ताओं ने चिंता जताई थी, क्योंकि उनको ऐसा प्रतीत हुआ कि इससे मासिक धर्म की स्वच्छता पर प्रभाव पड़ेगा। लगभग एक साल के विरोध के बाद सरकार ने सैनिटरी नैपकिन पर लगे टैक्स को कम कर दिया। आइए कुछ उन बिंदुओं के बार में जानें जिन्हें आप भूल चुके है:

पहले और बाद में

जीएसटी की शुरूआत से पहले, सैनिटरी नैपकिन अप्रत्यक्ष कराधान के अन्तर्गत आते थे। विभिन्न कर और रियायतों को मिलाकर कुल करकी राशि 13.68% थी। जब सैनिटरी नैपकिन पर जीएसटी लगाई गई, तो निर्णायक टैक्स 12% पर रखा गया। हालांकि सैनिटरी नैपकिन पर कर 1.7% कम कर दिया गया था लेकिन प्रदर्शनकारियों ने इसे बहुत कम मानकर बड़े पैमाने पर नजर अंदाज कर दिया। इसका कारण यह है कि सिंदूर, बिंदी आदि जैसे सामानों पर टैक्स प्रणाली द्वारा छूट दी गई थी, लेकिन सैनिटरी नैपकिन पर कोई छूट नहीं दी गई थी।

21 जुलाई 2018 को सरकार ने 88 वस्तुओं की टैक्स दरों पर कटौती की घोषणा की है। भारतीय वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने जनता को सूचित किया कि अब सैनिटरी नैपकिन को जीएसटी से पूरी तरह से मुक्त कर दिया गया है। इस फैसले से उन लोगों के बीच उत्सव की लहर फैल गई जो पिछले एक साल से कराधान के खिलाफ विरोध कर रहे थे।

एक वास्तविक जाँच

जीएसटी मुक्त सैनिटरी नैपकिन को लोगों द्वारा एक बड़ी जीत के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, दुकान में जाने पर उन लोगों को कुछ निराशा हो सकती है जो कीमतों में कमी की उम्मीद कर रहे थे। जैसा कि पहले वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बताया था, अरुण जेटली ने बताया, जीएसटी छूट संकेतक शब्दों की तुलना में अधिक जटिल है। शुरुआती लोगों के लिए, चाहे यह “0% कराधान” के तहत अच्छा हो या जीएसटी के तहत “कर मुक्त” बहुत बड़ा अंतर बनाता है।

जीएसटी के अन्तर्गत, कई चरणों में टैक्स लगाया जाता है। इसलिए एक घरेलू ब्रांड उत्पादक सैनिटरी नैपकिन को इनपुट टैक्स (कच्चे माल के लिए), साथ ही साथ अंतिम उत्पाद पर टैक्स देना होगा। इनपुट टैक्स पुनर्भुगतान टैक्स है, लेकिन केवल तभी जब अंतिम उत्पाद पर जीएसटी लगाया जा रहा हो। नियम स्पष्ट रूप से बताते हैं कि जीएसटी के तहत छूट दी गई वस्तुएं आईटीसी (इनपुट टैक्स क्रेडिट) के लिए नहीं मान्य नहीं हैं। व्यावहारिक रूप से, इसका मतलब यह है कि घरेलू उत्पादक अभी भी इनपुट टैक्स का भुगतान करेंगे, लेकिन उन्हें टैक्स क्रेडिट वापस नहीं मिलेगा, क्योंकि अंतिम आउटपुट को अब जीएसटी से छूट मिल गई है।

यदि सैनिटरी नैपकिन अभी भी जीएसटी के अधीन थे, चाहे कम दर पर ही क्यों ना हों, निर्माता इनपुट टैक्स पर प्रतिपूर्ति के पूर्ण रूप से हकदार होंगे। क्योंकि उत्पादकों की लागत कम से कम एक महत्वपूर्ण लाभ से कम नहीं होगी, इसलिए संभावना अधिक है कि कीमतों में बिल्कुल भी गिरावट नहीं हो सकती। कुछ लोगों ने यह भी अनुमान लगाया है कि उत्पादकों द्वारा अपने मुनाफे को बरकरार रखने के लिए कीमतें बढ़ सकती हैं।

निष्कर्ष

जीएसटी मुक्त, चाहे हो या ना हो, के परिणामस्वरूप कीमत में कटौती अभी भी अनिश्चित है। हालांकि, यह स्पष्ट है कि यह मासिक धर्म स्वच्छता के मुद्दे का समाधान अभी भी नहीं हुआ है जिसका हमें सामना करना पड़ रहा है। यहां तक कि सबसे अच्छी स्थिति में भी, कीमतों को न्यूनतम अनुपात में कम किया जाएगा। इसे एक भव्य जीत के रूप में देखने वाले लोगों के लिए, यह केवल अन्योक्ति है। भारत में मासिक धर्म स्वच्छता अभी भी दुर्दशा की स्थिति में है। एनजीओ (गैर सरकारी संगठन) दासरा की एक रिपोर्ट के अनुसार, मूलभूत स्वच्छता सुविधाओं की कमी (या अनुपस्थिति) के कारण लगभग 2.3 करोड़ स्कूल की लड़कियाँ आज्ञानतावश हर साल स्कूल छोड़ देती हैं। अधिकांश घरों में अभी भी महिलाएँ ’कानाफूसी’ को छोड़कर मासिक धर्म के बारे में बात नहीं करती हैं। इसमें दृढ़ परिवर्तन लाने के लिए हमारे देश को सार्वजनिक रूप से हितकारी नीतियों की आवश्यकता है।

 

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सैनिटरी नैपकिन और भारत : जीएसटी का सफरनामा
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सैनिटरी नैपकिन पर जीएसटी शुरुआत से ही उतार-चढ़ाव भरा रहा है। इसे अब पूरी तरह टैक्स मुक्त कर दिया गया है,  इस लेख में इसके प्रभावों पर नजर डाली गई है।
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