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एनएसजी क्या है और भारत इसकी सदस्यता क्यों मांग रहा है?

February 5, 2018
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एनएसजी क्या है और भारत इसकी सदस्यता क्यों मांग रहा है?

एनएसजी क्या है और भारत इसकी सदस्यता की मांग क्यों कर रहा है?

9 जून 2016

द्वाराः डेबू सी

परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी), परमाणु आपूर्ति करने वाले 48 देशों का एक ऐसा समूह है, जो परमाणु प्रौद्योगिकी और परमाणु संबंधित उत्पादों के निर्यात के लिए निर्धारित दिशा-निर्देशों के आधार पर परमाणु हथियारों के प्रसार की जाँच करता है। परमाणु हथियारों की अपूर्ति करने वाले 48 देशों के इस समूह में अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, फ्रांस और चीन जैसे पाँच बड़े देश शामिल हैं। वर्ष 1974 में एनएसजी की स्थापना पोखरण में, भारत द्वारा किए गए अपने परमाणु उपकरण के परीक्षण के बाद हुई थी। चूँकि भारत एनएसजी का हिस्सा नहीं था, इसलिए एक गैर-सदस्यी राष्ट्र ने निर्यात और परमाणु प्रौद्योगिकी के विकास की वैश्विक चिंता व्यक्त करते हुए एनएसजी के गठन का नेतृत्व किया।

अप्रसार व्यवस्था

वर्ष 1994 में परमाणु हथियारों के अप्रसार को संधि (एनपीटी) के रूप में अपनाया गया था, जिसमें परमाणु प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और उसके दुरुपयोग को रोकने के लिए कानूनी तौर पर बाध्यकारी जाँच को सुनिश्चित करने के संबंध में हस्ताक्षर करने वाले देशों के लिए समान दिशा-निर्देश दिए गए थे।

एनएसजी के दिशा-निर्देशों में, वर्षों से हस्ताक्षर की गईं कई महत्वपूर्ण संधियाँ भी शामिल हैं, जिसका मुख्य उद्देश्य सभी परमाणु प्रौद्योगिकी के प्रसार को जाँचना और सुरक्षा उपायों का निर्माण करना है।

एनएसजी के वर्तमान सदस्य

एनएसजी के वर्तमान सदस्यों में ऑस्ट्रिया, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, बुल्गारिया, बेल्जियम, बेलारूस, चीन, साइप्रस, चेक गणराज्य, कनाडा, क्रोएशिया, डेनमार्क, एस्टोनिया, फ्रांस, फिनलैंड, ग्रीस, जर्मनी, हंगरी, इटली, आइसलैंड, आयरलैंड, जापान, कजाखस्तान, गणराज्य कोरिया, लक्समबर्ग, लाटविया, लिथुआनिया, मेक्सिको, माल्टा, नॉर्वे, नीदरलैंड्स, न्यूजीलैंड, पुर्तगाल, पोलैंड, रूस, रोमानिया, स्पेन, स्विटजरलैंड, स्लोवाकिया, दक्षिण अफ्रीका, सर्बिया, स्वीडन, स्लोवेनिया, तुर्की, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूक्रेन, यूनाइटेड किंगडम आदि जैसे प्रमुख देश शामिल हैं।

भारत द्वारा एनएसजी सदस्यता की माँग

हालांकि एनपीटी में कोई हस्ताक्षरकर्ता शामिल नहीं हैं, इसलिए यह संधि पक्षपाती मानी जा रही है और भारत सक्रिय रूप से परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह का सदस्य बनने की माँग कर रहा है। जब राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के अधीन अमेरिकी प्रशासन ने भारत के साथ परमाणु व्यापार शुरू करने का फैसला किया, तो यूपीए 1 के शासनकाल में भारत के द्वारा सदस्यता के लिए किए गए प्रयासों में काफी वृद्धि हुई।

भारत के साथ असैनिक परमाणु व्यापार का मार्ग प्रशस्त करने वाले कानूनों में संशोधन करने के लिए अमेरिकी प्रशासन और कांग्रेस ने मिलकर कुछ गंभीर निर्णय भी लिए।

एनएसजी सदस्यता के लिए भारत का पहला औपचारिक अनुरोध 21-22 अगस्त 2008 में आयोजित एनएसजी की बैठक के दौरान चर्चा में आया था, जिसका मुख्य उद्देश्य दिशा-निर्देशों के लिए एक अपवाद प्रदान करना और भारत को बिजली उत्पादन करने हेतु असैनिक परमाणु संयंत्र खरीदने के लिए एक बार छूट की अनुमति देना था। इस निर्णय का न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, स्विट्जरलैंड, नॉर्वे और आयरलैंड ने जोरदार विरोध किया था। चीन हमेशा से भारत के इस समूह में सम्मिलित होने के विरोध में रहा है, लेकिन विरोधी दलों में यह विरोध निम्न स्तर पर है तथा इस समूह ने भारत के प्रवेश को अवरुद्ध करने का नेतृत्व किया है।

भारत द्वारा की गई दृढ़ता पूर्वक माँग और संयुक्त राज्य अमेरिका के द्वारा सक्रिय रूप से समर्थन मिलने के बाद, उसी वर्ष 6 सितंबर को एक और बैठक हुई, जिसमें सदस्यता प्राप्त देशों ने आखिरकार भारत को एक बार पूर्णतया छूट प्रदान करने पर सहमति व्यक्त की। जिसमें भारत ने किसी भी संवेदनशील परमाणु प्रौद्योगिकी या सामग्रियों को साझा करने या निर्यात करने और किसी भी अन्य परमाणु परीक्षणों का संचालन न करने का आश्वासन दिया था। एनएसजी बैठक के दौरान भारत ने स्पष्ट रूप से अपनी अप्रसार और निरस्त्रीकरण की नीतियों को भी परिभाषित किया था।

इसके अतिरिक्त भारत की स्थिति मजबूत हो गई है, क्योंकि उसने खुद को अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के सुरक्षा उपायों के लिए प्रतिबद्ध कर लिया है, जिसमें भारत ने अपने आईएईए निरीक्षण के लिए असैनिक परमाणु आधारिक संरचना की शुरुआत की है।

वर्ष 2010 में, भारत की राजकीय यात्रा के दौरान, राष्ट्रपति बराक ओबामा ने चरणबद्ध तरीके से भारत के एनएसजी और अन्य महत्वपूर्ण समूहों जैसे वासीनेर व्यवस्था, मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (एमटीसीआर) और ऑस्ट्रेलिया समूह में शामिल होने के लिए अपना समर्थन देने की घोषणा की थी। यहाँ यह ध्यान देने योग्य बात है कि इस साल भारत एमटीसीआर में पूर्णरूप से शामिल हो गया है।

चीन जो वर्ष 2008 में कम महत्वपूर्ण, लेकिन भारत के विरोधी सदस्य ने अब घोषणा की है कि वह भारत को ‘सशर्त समर्थन’ देने को तैयार है, लेकिन उसका कहना है कि भारत द्वारा आवेदन सावधानी और सतर्कता के साथ किया जाना चाहिए।

भारत की सदस्यता में रूकावट के लिए अब पाकिस्तान ने एनएसजी की सदस्यता के लिए एक आवेदन प्रस्तुत किया है। विवरण के अनुसार, परमाणु प्रसार में अपने पिछले संदिग्ध विवरणों को देखते हुए, इसे गंभीरता से लिए जाने का अवसर है। पाकिस्तान के इस कार्य का मुख्य उद्देश्य भारत के विशिष्ट क्लब में प्रवेश पाने की संभावना को कम करना है।

अब सभी की नजरें एनएसजी बैठक के परिणाम पर टिकी हुई हैं, क्योंकि यह निर्णय भारत की स्थिति को तय करेगा। हालांकि भारत की उम्मीदें काफी उच्च हैं, फिर भी अभी परिणाम आना बाकी है। ब्लूमबर्ग ने तीन राजनीतिज्ञों को इस मामले की सूचना दी है, जिन्होंने भारत के सुरक्षा उपायों के संबंध में संदेह व्यक्त करते हुए कहा कि इस सदस्य को अभी भी प्रवेश मानदंड नहीं मिला है।

उन्होंने यह भी आशंका व्यक्त की है कि भारत को प्रवेश मापदंड में किसी भी तरह से कमजोर पड़ने पर, पाकिस्तान की सदस्यता की अधिकार सीमा के बाद आवेदन पर अपकृष्ट मानदंडों को लागू किया जा सकता है।

भारत के लिए एनएसजी की सदस्यता क्यों महत्वपूर्ण है?

भारत ने स्वच्छ ऊर्जा में वृद्धि करने के लिए स्वयं को प्रतिबद्ध कर रखा है, जिसमें नवीकरणीय और गैर-जीवाश्म आधारित ऊर्जा शामिल हैं तथा भारत ने अपने कुल ऊर्जा उत्पादन में लगभग 40 प्रतिशत तक की वृद्धि की है।

इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए परमाणु ऊर्जा उत्पादन फिर से जोर-सोर से होने लगा है। जबकि भारत ने अपनी असैनिक परमाणु प्रौद्योगिकी विकसित की है, जिसके लिए अभी भी कुछ अधिक कुशल और कम लागत वाली उन्नत प्रौद्योगिकी की आवश्यकता है। इसके लिए भारत को, अमेरिका, कनाडा, जापान, रूस और फ्रांस जैसे देशों में उपलब्ध प्रौद्योगिकी का उपयोग करना होगा।

एनएसजी की सदस्यता के बिना वहाँ तक पहुँचना बहुत ही कठिन माना जाता है। वर्ष 2008 में एनएसजी पर छूट ने इन्हें परमाणु संयंत्र खरीदने के लिए सक्षम बना दिया था। परन्तु औषधि और चिकित्सा देखभाल, परिवहन और अंतरिक्ष के क्षेत्र में अवसर प्रदान करने वाली कई उन्नत प्रौद्योगिकियाँ अब भी भारत की पहुँच से दूर हैं। चूँकि एनपीटी में भारत शामिल नहीं है, इसलिए एनएसजी की सदस्यता आवश्यक है।

यही कारण है कि अमेरिका भारत की सदस्यता के लिए तत्परता से सहायता कर रहा है, क्योंकि यह परमाणु संबंधित व्यवसाय के लिए एक बड़ा अवसर प्रदान करता है।

‘मेक इन इंडिया’ इस सरकार का एक उद्देश्य है, जो एक कुशल और सुरक्षित परमाणु आधारित निर्माण तथा अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करता है। जिससे उन्नतशील प्रौद्योगिकियों में नई पद्धति को स्थापित करने में काफी मदद मिलेगी। एनएसजी की सदस्यता भारत को संयुक्त अनुसंधान और उन्नत प्रौद्योगिकियों के साथ साझा करने अनुमति देगा, जिसके बाद अन्य सदस्यता प्राप्त देशों में निर्यात किया जा सकता है।

इस अभिजात वर्ग समूह के सदस्य बनने की पाकिस्तान की अभिलाषा, एनएसजी में भारत की सदस्यता पर रोक लगा सकती है, क्योंकि यह सदस्यता प्राप्त देशों के बीच आम सहमति पर आधारित है। एक और कारण यह है कि चीन यह समझता है कि भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के एनएसजी सदस्यता के आवेदन पर समानांतर मानकों को लागू किया जाना चाहिए।