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भारतीय बैंक क्यों हैं घोटालों की चपेट में?

February 20, 2018
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भारतीय बैंक और घोटाले

देश अभी-अभी 11,000 करोड़ से अधिक के पीएनबी बैंक घोटाले के सदमे से उबर ही रहा था कि एक और घोटाला बड़े पैमाने पर सामने आया। जौहरी नीरव मोदी घोटाले के तुरंत बाद, रोटोमैक पेन के मालिक विक्रम कोठारी पर बैंकों के 800 करोड़ डकारने के आरोप की सूचना दी गई है। एक के बाद एक इन दोनों घटनाओं के कारण बैंक अब सवालों के घेरे में हैं। लेकिन,  इनमें से सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह कैसे संभव है कि दोनों कंपनियों ने प्रबंधन की जानकारी के बिना बैंकों को करोड़ों रुपए का चूना लगाया?

नहीं किया जा रहा है प्रक्रियाओं का पालन

इन दो बड़े धोखाधड़ी के मामलों ने न केवल देश की बैंकिंग प्रणाली की आँख खोलने के रूप में काम किया है, बल्कि इस तथ्य को भी स्पष्ट किया है कि घोटाले प्रक्रिया और प्रौद्योगिकी प्रणालियों की विफलता का परिणाम थे। पीएनबी धोखाधड़ी के मामले में, बैंक के दो कर्मचारियों ने नीरव मोदी के ज्वैलरी हाउस के लिए धोखाधड़ी से फर्जी अंडरटेकिंग पत्र जारी किए, जिसने अपनी कंपनी को अन्य बैंकों से ऋण प्राप्त करने में सक्षम बनाया। यह धोखाधड़ी खतरनाक रूप से सात साल की गोपनीयता के साथ लागू की गई। यहाँ तक ​​कि बैंक के उच्च-अधिकारियों को भी पता नहीं था कि चल क्या रहा है। यह केवल एक सेवानिवृत्ति कर्मचारी के साथ जुड़ा हुआ था, जिसे इस धोखाधड़ी की कुंजी माना गया है, जिसने इतने अधिक रूपये की धोखाधड़ी  में कुछ हद तक भूमिका निभाई थी ।

यह केवल एक वाक्य से कैसे स्पष्ट हो गया- सचमुच कोई भी ध्यान नहीं दे रहा था कि हो क्या रहा था? सोसाइटी फॉर वर्ल्ड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन (स्विफ्ट) प्लैटफॉर्म का दुरुपयोग किया गया और खाता प्रविष्टियों को अधूरा छोड़ दिया गया था। कई विशेषज्ञों का कहना है कि देश की सार्वजनिक बैंकिंग प्रणाली में लेखता देयता और मानकों की कमी के कारण ऐसे घोटालों की घटनाएं हो रही हैं। बैंक की तकनीकी प्रणाली का दुरुपयोग किया गया था। बैंक के आंतरिक सॉफ्टवेयर सिस्टम को स्विफ्ट से लिंक नहीं किया गया था। ऐसी स्थिति में कर्मचारियों को मैन्युअल रूप से स्विफ्ट गतिविधि को लॉग इन करने की आवश्यकता होती है, अन्यथा लेन-देन बैंक की पुस्तकों में नहीं दिखाई देंगे। यह गतिविधि कर्मचारी द्वारा नहीं की गई थी इसलिए बैंक और नीरव मोदी के बीच लेन-देन का कोई रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं था।

इसके अलावा, बैंकिंग एक जोखिम भरा व्यवसाय है और बैंक अधिकारी को हर दो या तीन साल में स्थानांतरित किया जाना आम बात होती है। हालांकि, घोटाले में शामिल इस विशेष कर्मचारी के मामले में, स्थानांतरण नीति का उल्लंघन किया गया था। कर्मचारी सात वर्षों तक अपने पद पर बने रहे, जिसके दौरान वह नीरव मोदी की कंपनियों को ऋण प्रदान करने के लिए लेन-देन का प्रबंधन कर रहे थे। यदि हस्तांतरण नियमों का कड़ाई से पालन किया गया होता, तो इस तरह का घोटाला नहीं होता या पहले पता लगाया जा सकता था।

विदेशी बैंकों से सीखने वाले पाठ

पश्चिमी देशों में बैंकिंग प्रणाली भी घोटालों की चपेट में है, लेकिन कठोर प्रक्रिया और नियमों का पालन सुनिश्चित करता है कि बड़े घोटालों से बचा सके। 2008 के सब प्राइम ऋण संकट के बाद, जिसने दुनिया की अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित किया, अंतर्राष्ट्रीय बैंकों ने पर्यवेक्षण और कॉर्पोरेट प्रशासन को और मजबूत किया है। दुर्भाग्य से, इस क्षेत्र में भारतीय बैंक पीछे रहे हैं। एक मुद्दा नीरव मोदी और विक्रम कोठारी घोटाले का है। इसके अलावा, अंतर्राष्ट्रीय बैंकों के अधिकारियों को छुट्टी पर भेजा जाता है, जब सहकर्मी की समीक्षा की जाती है। ऐसा भारतीय बैंकों के साथ नहीं होता।

जब तक कि, मजबूत उपाय नहीं किए जाते हैं, प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया जाता है और बैंकों को अधिक जवाबदेह नहीं बनाया जाता है, ऐसे घोटाले नियमित अंतराल पर होते रहेंगे।