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महात्मा गांधी के नेतृत्व में 6 प्रमुख आंदोलन

October 3, 2018
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महात्मा गांधी के नेतृत्व में 6 प्रमुख आंदोलन

‘राष्ट्रपिता’ महात्मा गांधी, जिनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था, पूर्व-स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रतिष्ठित नेता थे। महात्मा गांधी एक बहुत सम्मानित नेता थे और उन्हें शांति और अहिंसा के अंतर्राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में माना जाता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को दुनिया भर में उनके विशाल योगदान के लिए काफी प्रशंसा मिली। महात्मा गांधी के जन्मदिवस को ‘अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन के एक जाने माने व्यक्ति महात्मा गांधी चाहें भारत हो या दक्षिण अफ्रीका लगभग स्वतंत्रता आंदोलनों में अग्रणी व्यक्ति थे। महात्मा गांधी ने अहिंसा की विचारधारा का पालन किया जिस पर उनके सभी आंदोलन आधारित थे। गाँधी जी स्वतंत्रता आंदोलनों के माध्यम से,असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन या चंपारण जैसे आंदोलनों में हमेशा मानव-अधिकारों के लिए खड़े रहे। महात्मा गांधी ने औपनिवेशिक शासन (अंग्रेजों के शासन) के चंगुल से भारत को आजाद कराने के लिए अपना खून-पसीना बहाया। लाखों भारतीयों के सहयोग के साथ, महात्मा गांधी ने आखिरकार सफलता की ओर अपना कदम बढ़ाते हुए भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया।

गांधी जी, पिछली पीढ़ियों के लिए और आने वाली पीढ़ियों के लिए अहिंसा, सहिष्णुता, सच्चाई और सामाजिक कल्याण पर अपने विचारों के लिए, एक सच्ची प्रेरणा रहे हैं। महात्मा गाँधी की 150वीं जयंती के अवसर पर आइए उनके जीवनकाल के दौरान उनके नेतृत्व में हुए कुछ प्रमुख राष्ट्रवादी आंदोलनों में से कुछ पर नजर डालते हैं।

1. चंपारण आंदोलन (1917)

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए बिहार में चंपारण आंदोलन महात्मा गांधी की पहली सक्रिय भागीदारी थी। जब गांधी जी 1915 में भारत लौटे, तो उस समय देश अत्याचारी अंग्रेजों के शासन के अधीन था। अंग्रेजों ने किसानों को उनकी उपजाऊ भूमि पर नील और अन्य नकदी फसलों को उगाने के लिए मजबूर किया और फिर इन फसलों को बहुत सस्ती कीमत पर बेच दिया। मौसम की बदहाल स्थिति और अधिक करों की वजह से किसानों को अत्यधिक गरीबी का सामना करना पड़ा जिसके कारण किसानों की स्थिति अधिक दयनीय हो गई।

चंपारण में किसानों की दयनीय स्थिति के बारे में सुनकर, गांधी जी ने तुरंत अप्रैल 1917 में इस जिले का दौरा करने का निर्णय लिया। गाँधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन के दृष्टिकोण को अपनाया और प्रदर्शन शुरू किया और अंग्रेज जमींदारों के खिलाफ हड़ताल करके उन्हें झुकने पर मजबूर कर दिया। इसके परिणामस्वरूप, अंग्रेजों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसमें उन्होंने किसानों को नियंत्रण और क्षतिपूर्ति प्रदान की और राजस्व और संग्रह में वृद्धि को रद्द कर दिया था। इस आंदोलन की सफलता से गांधी जी को महात्मा की उपाधि प्राप्त हुई।

2. खेड़ा आंदोलन (1918)

खेड़ा आंदोलन गुजरात के खेड़ा जिले में किसानों का अंग्रेज सरकार की कर-वसूली के विरुद्ध एक आन्दोलन था। 1918 में खेड़ा गांव बाढ़ और अकाल पड़ने के कारण काफी प्रभावित हुआ जिसके परिणामस्वरूप तैयार हो चुकी फसलें नष्ट हो गईं। किसानों ने अंग्रेज सरकार से करों के भुगतान में छूट देने का अनुरोध किया लेकिन अंग्रेज अधिकारियों ने इनकार कर दिया। गांधी जी और वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में, किसानों ने अंग्रेज सरकार के खिलाफ एक क्रूसयुद्ध की शुरुआत की और करों का भुगतान न करने का वचन लिया। इसके परिणामस्वरूप, अंग्रेज सरकार ने किसानों को उनकी भूमि जब्त करने की धमकी दी लेकिन किसान अपनी बात पर अडिग रहे। पांच महीने तक लगातार चलने वाले इस संघर्ष के बाद, मई 1918 में अंग्रेज सरकार ने, जब तक कि जल-प्रलय समाप्त नहीं हो गया, गरीब किसानों से कर की वसूली बंद कर दी और किसानों की जब्त की गई संपत्ति को भी वापस कर दिया।

3. खिलाफत आंदोलन (1919)

प्रथम विश्व युद्ध के बाद, खलीफा और तुर्क साम्राज्य पर कई अपमानजनक आरोप लगाए गए। मुस्लिम अपने खलीफा की सुरक्षा के लिए काफी भयभीत हो गए और तुर्की में खलीफा की दयनीय स्थिति को  सुधारने और अंग्रेज सरकार के खिलाफ लड़ने के लिए गांधी जी के नेतृत्व में खिलाफत आंदोलन शुरू किया। गाँधी जी ने 1919 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपने राजनीतिक समर्थन के लिए मुस्लिम समुदाय से संपर्क किया और बदले में मुस्लिम समुदाय को खिलाफत आंदोलन शुरू करने में सहयोग किया। महात्मा गाँधी अखिल भारतीय मुस्लिम सम्मेलन के एक उल्लेखनीय प्रवक्ता बने और दक्षिण अफ्रीका में ब्रिटिश साम्राज्य से प्राप्त हुए पदकों को वापस कर दिया। इस आंदोलन की सफलता ने महात्मा गाँधी को कुछ ही समय में राष्ट्रीय नेता बना दिया।

4. असहयोग आंदोलन (1920)

1920 में असहयोग आंदोलन के शुरू करने के पीछे जलियावालां बाग हत्याकांड एकमात्र कारण था। इस हत्याकांड ने गांधी जी की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया उनको यह महसूस हुआ कि अंग्रेज भारतीयों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने में सफल हो रहे हैं फिर यही वह समय था जब उन्होंने एक असहयोग आंदोलन शुरू करने का फैसला लिया था। कांग्रेस और उनकी अजेय भावना के समर्थन के साथ, वह उन लोगों को विश्वास दिलाने में सफल रहे जो यह जानते थे कि शांतिपूर्ण तरीके से असहयोग आंदोलन का पालन करना ही स्वतंत्रता प्राप्त करने की कुंजी है। इसके बाद, गांधी ने स्वराज की अवधारणा तैयार की और तब से यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का मुख्य हिस्सा बन गए। इस आंदोलन ने रफ्तार पकड़ ली और शीघ्र ही लोगों ने अंग्रेजों द्वारा संचालित संस्थानो जैसे स्कूलों, कॉलेजों और सरकारी कार्यालयों का बहिष्कार करना शुरू कर दिया। इस आंदोलन को शीघ्र ही स्वयं गांधी जी द्वारा समाप्त कर दिया गया था। इसके बाद चौरी-चौरा की घटना हुई जिसमें 23 पुलिस अधिकारी मारे गए थे।

5. भारत छोड़ो आंदोलन (1942)

भारत छोड़ो आंदोलन महात्मा गाँधी द्वारा द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 8 अगस्त 1942 को भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को समाप्त करने के लिए चलाया गया था। गांधी जी के आग्रह करने के कारण भारतीय कांग्रेस समिति ने भारत की ओर से बड़े पैमाने पर अंग्रेजों से भारत छोड़ने के तकाज़े और गाँधी जी ने “करो या मरो” का नारा दिया। इसके परिणामस्वरूप, अंग्रेज अधिकारियों ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सभी सदस्यों को तुरंत गिरफ्तार कर लिया और जाँच किए बिना उन्हें जेल में डाल दिया। लेकिन देश भर में विरोध -प्रदर्शन जारी रहा। अंग्रेज भले ही भारत छोड़ो आंदोलन को रोकने में किसी भी तरह से सफल रहे हों लेकिन जल्द ही उन्हें यह महसूस हो गया था कि भारत में शासन करने के उनके दिन समाप्त हो चुके हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के अंत तक, अंग्रेजों ने भारत को सभी अधिकार सौंपने के स्पष्ट संकेत दिए। आखिरकार, गांधी जी को यह आंदोलन समाप्त करना पड़ा जिसके परिणामस्वरूप हजारों कैदियों की रिहाई हुई।

6. सविनय अवज्ञा आंदोलन: दांडी मार्च और गांधी-इरविन समझौता

सविनय अवज्ञा आंदोलन सत्तारूढ़ औपनिवेशिक सरकार के खिलाफ महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था।

मार्च 1930 में यंग इंडिया के अख़बार में देश को संबोधित करते हुए गांधी जी ने यदि, उनकी ग्यारह मांगें सरकार द्वारा स्वीकार की जाती हैं तो, आंदोलन को स्थगित करने की अपनी इच्छा व्यक्त की थी। लेकिन लॉर्ड इरविन की सरकार ने उन्हें इसका कोई जवाब नहीं दिया। जिसके परिणामस्वरूप, उन्होंने इस आंदोलन को पूरे उत्साह के साथ शुरू किया।

यह आंदोलन दांडी मार्च के साथ शुरू हुआ जिसका नेतृत्व गांधी जी ने 12 मार्च 1930 को गुजरात के साबरमती आश्रम से दांडी गाँव तक किया था। दांडी पहुंचने के बाद, गांधी और उनके समर्थकों ने समुद्र के नमकीन पानी से नमक बनाकर नमक पर कर लगाने वाले कानून का उल्लंघन किया। इसके बाद, अंग्रेजों के कानून को तोड़ पाना भारत में एक व्यापक घटना बन गई। लोगों ने धारा 144 का उल्लंघन करने के लिए प्रतिबंधित राजनीतिक प्रचार पुस्तिकाओं की बिक्री शुरू कर दी। गांधीजी ने भारतीय महिलाओं से कताई शुरू करने का आग्रह किया और जल्द ही लोगों ने सरकारी कार्यालयों और विदेशी सामान बेंचने वाली दुकानों के सामने विरोध-प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। भारतीय महिलाओं ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेना शुरू कर दिया। इस आंदोलन के दौरान सरोजिनी नायडू प्रमुख रूप से आगे आईं थी। उत्तर-पश्चिम में, सबसे लोकप्रिय नेता अब्दुल गफ्फर खान थे, जिन्हें अक्सर “फ्रंटियर गांधी” कहा जाता था।

लॉर्ड इरविन की सरकार ने 1930 में लंदन में एक गोल मेज सम्मेलन की मांग की और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इसका हिस्सा बनने से इनकार कर दिया। यह सुनिश्चित करने के लिए कि कांग्रेस दूसरे दौर के सम्मेलन में भाग ले रही है, लॉर्ड इरविन ने 1931 में गांधी के साथ समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए। इसे गांधी-इरविन समझौता कहा जाता था। इस समझौते में सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा करने और सभी दमनकारी कानूनों को रद्द करने की बात कही गई।

 

 

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महात्मा गांधी के नेतृत्व में 6 प्रमुख आंदोलन
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'राष्ट्रपिता' महात्मा गांधी, जिनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था, पूर्व-स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रतिष्ठित नेता थे। महात्मा गांधी एक बहुत सम्मानित नेता थे और उन्हें शांति और अहिंसा के अंतर्राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में माना जाता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को दुनिया भर में उनके विशाल योगदान के लिए काफी प्रशंसा मिली। महात्मा गांधी के जन्मदिवस को 'अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस' के रूप में मनाया जाता है।
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