प्राचीन भारत के प्रसिद्ध वेद, महाकाव्य और पुस्तकें
भारत, कई महान गणितज्ञ, खगोलविद् और इतिहासकारों की जन्मभूमि है, जिनके अविष्कार और ज्ञान उनके समय से ही प्रगति कर रहे हैं। उनके कार्यों ने न केवल उनके समय को, बल्कि आज के भारतीय जीवन को भी प्रभावित किया है। उन विद्वानों में आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त और बौधायन जैसे महान पुरुष शामिल हैं और भारत के विद्वानों की सूची काफी विस्तृत है। समान रूप से भारत की पारंपरिक शिक्षा प्रणाली में गणित, भारतीय तर्कशास्त्र, दर्शन शास्त्र, शास्त्र विधि और आध्यात्मिक जीवन इत्यादि शामिल हैं। इसलिए कई विद्वानों ने अलग-अलग समय पर अपनी-अपनी पुस्तकों के जरिए अपना अनुभव और ज्ञान का विवरण प्रस्तुत किया है, जो आज हमारे लिए मार्गदर्शक के रूप में कार्य कर रहा है।
वेद, हिंदू धर्म के प्राथमिक और प्रमुख ग्रंथ हैं। भारत चार वेदों का संग्रहकर्ता है, जो ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद के नाम से जाने जाते हैं। ऋग्वेद, सभी वेदों में सबसे प्राचीन वेद है और यह वेद लगभग 1500 ईसा पूर्व में लिखा गया था। वेद उच्च आध्यात्मिक महत्व के साथ-साथ प्राचीन भारत के जीवन पर भी प्रकाश डालते हैं।
महाकाव्य
महाभारत और रामायण दोनों भारत के महाकाव्य हैं, जो संभवत: कई भाषाओं में लिखे गए हैं और यह सबसे बड़े काव्य माने जाते हैं। रामायण की रचना ऋषि वाल्मीकि द्वारा प्रथम शताब्दी में की गई थी और महाभारत ऋषि व्यास द्वारा 540-300 ईसा पूर्व में लिखी गई थी। महाभारत में पवित्र भगवद गीता के पवित्र उपदेश भी समायोजित हैं।
चरक संहिता
चरक संहिता भारतीय चिकित्सा पर आधारित एक विस्तृत लेख है, जिसमें आठ प्रभाग हैं और उन प्रभागों को कई अध्यायों में विभाजित किया गया है। चरक संहिता में औषधि के ज्ञान के साथ-साथ चिकित्सा पद्धति की एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण वाली जानकारी भी मौजूद है। चरक संहिता मूलतः अग्निवेश द्वारा रचित आत्रेय के छः विद्यार्थियों में से एक थी। समय के साथ, चरक में अधिक से अधिक ज्ञान को संकलित किया गया और इस अग्निवेश के संशोधित संस्करण को चरक संहिता के रूप में जाना जाने लगा। 9वीं शताब्दी के दौरान, एक द्रिधबाला नाम के कश्मीरी पंडित ने चरक संहिता को फिर से संशोधित किया था। इस चरक संहिता में भ्रूण प्रजनन एवं विकास, मानव शरीर एवं खगोल विज्ञान, विभिन्न रोगों के लक्षण और उपचार, वायु, पित्त और कफ के त्रिदोस सिद्धांत, बच्चों के कई रोग, सामान्य और असामान्य प्रसव आदि के बारे में व्याख्यान किया गया है।
आर्यभटीय
आर्यभट्ट 5वीं शताब्दी के एक महान खगोलविद और गणितज्ञ थे और उनके द्वारा रचित इस आर्यभटीय नामक ग्रंथ में उनके कृत्यों का विवरण उपस्थित है। यह माना जाता है कि आर्यभट्ट ने आर्यभटीय नामक ग्रंथ 23 साल की उम्र में 499 ईसवी में लिखा था। उन्होंने गणित से खगोल विज्ञान को पृथक करने में सफलता हासिल की थी। आर्यभटीय एक खगोलीय प्रकरण है, जिसमें काव्यगत रूप में 118 कविताएं लिखी गईं हैं। आर्यभटीय को पश्चिमी विद्वानों द्वारा स्वीकार नहीं किया था, क्योंकि आर्यभटीय में उल्लिखित नियमों के साथ कोई प्रमाण नहीं दिए गए हैं। लेकिन भारत में उनका कार्य बेहद प्रभावशाली रहा है। इनके द्वारा व्याख्यांकित विषयों में अंकगणित, त्रिकोणमिति और बीजगणित शामिल है।
तंत्रसंग्रह
तंत्रसंग्रह एक पुस्तक है और 1501 ईसवी में यह पुस्तक नीलकण्ठ सोमयाजी द्वारा खगोल विज्ञान पर लिखी गई थी। नीलकण्ठ सोमयाजी केरल स्कूल ऑफ एस्ट्रोनॉमी एंड मैथमैटिक्स के महान गणितज्ञ और खगोल विज्ञानी थे। उन्होंने बुध और शुक्र ग्रहों के लिए आर्यभट्ट द्वारा दी गई अवधारणा को संशोधित किया था। इस पुस्तक में कुछ महत्वपूर्ण कार्य जैसे सूर्य की स्थिति, आकाशीय पिण्ड, सूर्य के अक्षांश का समाकल, चंद्रमा और चंद्र ग्रहण के दौरान पृथ्वी की छाया के व्यास की गणना का समावेश आदि मौजूद हैं।
शुल्बसूत्र
हिंदुओं द्वारा पालन की जाने वाली अधिकांश प्रथाओं और निर्देशों को शुल्बसूत्र में वर्णित किया गया है और इसकी रचना 800 ईसा पूर्व से 200 ईसवी में हुई थी। इसके साथ इसमें धार्मिक अनुष्ठानों के लिए अग्नि-वेदी के निर्माण से संबंधित निर्देश भी दिए गए हैं। कुल 8 शुल्बसूत्रों में से चार सूत्र गणितीय दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। यह बौधायन, आपस्तम्ब, कात्यायन और मनावा द्वारा लिखे गए थे।
पंच-सिद्धांतका
पंच-सिद्धांतका वराहमिहिर की कृति है और यह 575 ईसवी से पहले लिखी गई थी। इसमें, ग्रहों की गति, सूर्य, चंद्रमा, खगोलीय पिंडों की स्थिति, सूर्य और चंद्र ग्रहण तथा उनके छाया के अनुमानों का व्याख्यान किया गया है।