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सुल्तानपुर लोधी में ऐतिहासिक गुरुद्वारा

January 6, 2018
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सुल्तानपुर लोधी में ऐतिहासिक गुरुद्वारा

सुल्तानपुर लोधी में ऐतिहासिक गुरुद्वारा

कल्पना कीजिए कि ऐसी जगह जाकर आपको कैसा अनुभव होगा जहाँ पर गुरु नानक देव जी (सिख के पहले गुरु) ने अपने जीवन के 14 साल बिताए हो। निश्चित रूप से आप स्वयं को सौभाग्यशाली महसूस करेंगे। पंजाब राज्य के कपूरथला जिले में सुल्तानपुर लोधी एक ऐसी ही जगह है जहाँ पर आप जाकर स्वयं को सौभाग्यशाली महसूस करा सकते हैं। गुरु नानक देव जी यहाँ के नवाब की इन्वेंट्री स्टोर (मोदीखाना) पर काम करते थे। सुल्तानपुर भारत के सबसे प्राचीन शहरों में से एक है, जिसकी स्थापना पहली शताब्दी ईस्वी में हुई थी। 1 से 6वीं शताब्दी ईसा तक, सुल्तानपुर लोधी ध्यान करने का एक प्रमुख केन्द्र रहा था। उस अवधि के दौरान सुल्तानपुर लोधी में बौद्ध धर्म अपनी चरमोत्कर्ष पर था। बाद में जब मुहम्मद गजनवी ने इस शहर पर आक्रमण किया, तो उसने शहर (पहले इसका नाम सरवमानपुर था) को जलाकर राख करने का आदेश दिया, क्योंकि यह शहर हिंदू बौद्ध धर्म का प्रमुख स्थान था। समय-समय पर कई संतों ने शहर का भ्रमण किया और इसलिए इसे ‘पेरन पुरी’ नाम से भी जाना जाता था जिसका अर्थ है ‘भिक्षुओं का शहर’।

सुल्तानपुर लोधी पंजाब का एक शहर है, जो गुरु नानक देव जी से सबसे अधिक संबंधित है। सुल्तानपुर लोधी में कई प्रमुख ऐतिहासिक गुरुद्वारे हैं, जो गुरु नानक देव जी और उनकी बहन बेबे नानकी जी को समर्पित हैं।

प्रसिद्ध गुरुद्वारे

गुरुद्वारा बेर साहिब

यह सुल्तानपुर का मुख्य गुरुद्वारा है जो काली बेईं (एक छोटी नदी) के तट पर स्थित है। बेर साहिब वही जगह है जहाँ पर गुरु नानक देव जी काली बेईं (बेरका पेड़) के पास सूर्योदय के बाद एक बेर के पेड़ के नीचे ध्यान लगाते थे। यह बेरी का पेड़ गुरुद्वारा में आज भी मौजूद है, जो हरा-भरा है और जिसमें बेर लगते हैं। सभी भक्त बेरी के पेड़ के नीचे बैठकर कीर्तन सुनते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इस जगह पर गुरु नानक ने दैवीय शक्ति के साथ प्रत्यक्ष संपर्क किया था। एक सुबह जब वह सूर्योदय से पहले स्नान कर रहे थे, गुरूजी काली बेईं में गायब हो गए और नदी से 2 किलोमीटर की दूरी पर फिर से निकल आए। उनके द्वारा कहा पहला कथन यह था ‘कोई भी हिन्दू या कोई भी मुसलमान नहीं है’ मैं गुरुद्वारा बेर साहिब कई बार गया हूँ और हर बार ऐसा लगता है जैसे कि आप गुरु नानक देव जी से मिलने आए हैं। यहाँ आकर आपका मन शांति महसूस करेगा। प्रत्येक वर्ष गुरु नानक देव जी का जन्मदिन मनाया जाता है और जन्मदिन के उपलक्ष्य पर एक मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें भक्त एक बड़ी संख्या में शामिल होते हैं।

गुरुद्वारा श्री हट्ट साहिब

सुल्तानपुर लोधी में, गुरूनानक जी ने नवाब दौलत खान लोधी के वहाँ एक लेखाकार के रूप में काम किया। गुरुद्वारा श्री हट्ट साहिब उस स्थान पर बनाया गया है, जहाँ पर गुरु जी, नवाब के लिए काम करते थे। गुरु नानक देव जी द्वारा उपयोग किए गए माप वजन (पत्थरों) को देख सकते हैं। ये आज भी गुरूद्वारा के अंदर शीशे की पेटिका में रखे हुए हैं।

गुरुद्वारा श्री कोठरी साहिब

नवाब के लिए काम करते समय, कुछ बुरे लोग जो गुरु जी से ईर्ष्या करते थे उन्होंने नवाब से शिकायत लगाई कि गुरु नानक देव जी इन्वेंट्री स्टोर से चोरी कर रहे है। इस स्थान पर (जहाँ श्री कोठरी साहिब गुरूद्वारा बना है) नवाब के आदेश पर गुरु जी को अस्थायी रूप से जेल भेजा दिया गया। बाद में जब इन्वेंट्री की जाँच की गई तो पाया गया कि सब कुछ ठीक है और वास्तव में लाभ प्राप्त हो रहा था। नवाब ने गुरू जी को बइज्जत रिहा किया और उनसे माफी मांगी और एक पदोन्नति की पेशकश की जिसे गुरु जी ने अस्वीकार कर दिया था।

गुरुद्वारा श्री गुरु का बाग

गुरुद्वारा श्री गुरु का बाग एक ऐसी जगह है जहाँ गुरु नानक देव जी का घर था। यह वही जगह है, जहाँ पर उनके दो पुत्र बाबा श्री चन्द और बाबा लक्ष्मी चंद का जन्म हुआ था। उस समय वहाँ एक कुआं भी मौजूद था, जिसका पानी लंगर का भोजन पकाने में इस्तेमाल किया जाता था।

गुरुद्वारा श्री संत घाट

गुरुद्वारा श्री संत घाट बेईं नदी के किनारे पर स्थित है और यह गुरूद्वारा उस स्थान पर बनाया गया है जहाँ पर गुरु जी दो दिनों के बाद फिर से नदी से बाहर निकल कर आए थे। यह गुरुद्वारा बेर साहिब के पास एक जगह थी, जहाँ गुरु जी बेईं नदी में स्नान करते हुए गायब हो गए थे और फिर से गुरुद्वारा श्री संत घाट में प्रकट हुए थे। उन्होंने बेईं से बाहर निकले के बाद सम्पूर्ण संसार को एक ‘मूल मंत्र’ दिया। यह वही स्थान है जहाँ गुरु जी ध्यान लगाया करते थे और और यही से उन्होंने दुनिया की सेवा करने के लिए सुल्तानपुर लोधी शहर को छोड़ दिया था।

गुरुद्वारा श्री अंतरआत्मा साहिब

जब वह सुल्तानपुर लोधी में रहते थे, तो एक दिन गुरुजी से एक मुस्लिम ने पूछा कि क्या वह हिंदू गुरु हैं या मुस्लिम गुरू? इस बात का उन्होंने उत्तर दिया कि उनके लिए सभी समान हैं। फिर उन्होंने गुरु जी को पास की मस्जिद में नमाज पढ़ने के लिए कहा, गुरु जी वहाँ गए और वहाँ पर हर कोई नमाज पढ़ रहा था, पर गुरु जी सीधे खड़े हो गए। हर व्यक्ति इन्हें गुस्से से देख रहा था और गुरूजी से पूछा कि वह नमाज के दौरान झुके क्यों नहीं। गुरु जी ने कहा कि कोई भी सही मायने में नमाज अदा नहीं कर रहा था, नवाब कंधार से घोड़ों को पाने की सोच रहे थे और मौलवी घर पर नए जन्म जात मादा बछड़े के बारे में सोच रहे थे और चिंतित थे कि वह कुएं में गिर सकता है। चूँकि हर कोई केवल शारीरिक रूप से ही मौजूद था, लेकिन आत्मिक रूप से नहीं, तो उन्होंने भी ऐसा किया। हर कोई इस बात पर हैरान हो गया था और कह रहा था कि उनके पास दिव्य शक्तियाँ हैं। यह वह जगह है जहाँ गुरुद्वारा श्री अंतरआत्मा का निर्माण किया गया है।

गुरुद्वारा श्री बेबे नानकी जी

बेबे नानकी जी, गुरु जी की बड़ी बहन थीं और यह गुरुद्वारा की उनकी याद में सन् 1970 के दशक के दौरान बनवाया गया था।