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शिव कुमार बटालवी – बिरहा दा सुलतान

March 15, 2018
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शिव कुमार बटालवी

मैंने पंजाब में पढ़ाई की इसलिए पंजाबी भाषा को मैंने स्नातक तक एक विषय के रूप में पढ़ा। अपनी पढ़ाई के समय, मैं एक प्रसिद्ध कवि शिव कुमार बटालवी द्वारा लिखी गई कविताओं को पढ़ा करता था। बटालवी की रचनाओं की सबसे विशिष्ट विशेषता “वेदना” है और जब आप इस महान व्यक्ति की कविताएं पढ़ते हैं, तो आप अपने दिल में एक पल का दर्द महसूस करते हैं। बटालवी की सभी कविताएं उनके जीवन की असफल प्रेम कहानियों का परिणाम है। प्रेम, जुदाई और मृत्यु पर ऐसी उल्लेखनीय कविता के कारण, कवि के नाम में टैग बिरहा दा सुल्तान (“दुख का राजा”) जोड़ा गया था।

शिव कुमार बटालवी एक कहावती जीवन जी रहे थे। कवि ने प्रेम से संबंधित कई कविताएं लिखीं, लेकिन अपने प्यार को हासिल कर पाने में ये सफल नही हो पाए। वह उस महिला से शादी नहीं कर सके जिससे इन्होंने प्रेम किया और अत्यधिक शराब पीने के कारण महज 36 वर्ष की उम्र में ही इनकी मृत्यु हो गई। बटालवी की सभी कविताएं और काम एक प्रेमी की पीड़ा और युवाओं की इच्छा मृत्यु  को दर्शाती हैं।

बटालवी का प्रेम अमर था, लेकिन पंजाबी लेखक गुरबख्श सिंह प्रीतलड़ी की बेटी के लिए असफल प्रेम, जो इनके जीवन में बड़ा बदलाव लाया। अपनी प्रेमिका की शादी किसी और के साथ होने के बाद, शिवकुमार बटालवी ने सहारे के लिए शराब की ओर रुख किया। शोक और दुःख के समय इन्होंने अपनी सबसे लोकप्रिय कविता- “आज दिन चढ़ेया तेरे रंग वरगा” लिखी। आखिरकार, 1967 में बटालवी ने एक ब्राह्मण लड़की अरुणा से शादी की और उनके साथ दो बेटियां थीं, लेकिन वह अपने पहले प्यार को भूल नहीं सके।

शिव कुमार बटालवी का जन्म 23 जुलाई 1936 को पंजाब बड़ापिंड के (अब पाकिस्तान में) सरस्वत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता पंडित कृष्ण गोपाल पेशे से पटवारी थे और बँटवारे के समय इनके पूरे परिवार ने पाकिस्तान को छोड़ दिया और बटाला चले गये। बचपन से वह बड़े-बडे सपने देखा करते थे और 1953 में मैट्रिक करने के बाद इन्होंने अपनी पढ़ाई छोड़ दी।

बटालवी एक समान्य व्यक्ति नहीं थे, वह वास्तव में भगवान की एक भेंट का स्वरूप थे। इनकी कविताओं का पहला संग्रह 1960 में पीड़ां दा परागा (दु:खों का दुपट्टा) शीर्षक के तहत प्रकाशित किया गया था। बटालवी अपनी कविताओं को खुद पढ़ते थे और इस प्रकार उन्हें और भी लोकप्रिय बनाते थे। वह एक महान लेखक भी थे और इन्होंने एक उत्कृष्ट कृति नाटक, लूणा (1965) लिखी थी, जिसके लिए इन्होंने साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त किया, इस प्रकार साहित्य अकादमी पुरस्कार पाने वाले वह सबसे कम उम्र के साहित्यकार बन गये।

धीरे-धीरे, बटालवी शराब की दुसाध्य लत के चलते 7 मई 1973 को लीवर सिरोसिस के परिणामस्वरूप अपने ससुर के घर पर भगवान को प्यारे हो गए।

बटालवी की रचनाएं और जादू हमेशा चलता रहेगा तथा कई प्रसिद्ध गायकों ने इनके गीतों को गाया है, इस सूची में प्रसिद्ध गायक जगजीत सिंह-चित्रा, नुसरत फतेह अली खान, रब्बी शेरगिल, दीदार सिंह परदेसी, सुरिंदर कौर और कई अन्य शामिल हैं। इन्हें अपने महान काम और पंजाबी कविता की दुनिया में योगदान के लिए हमेशा याद किया जाएगा।