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अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में 18 नवजात शिशुओं की मृत्यु

October 31, 2017
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अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में 18 नवजात शिशुओं की मृत्यु

अहमदाबाद के असारवा क्षेत्र में स्थित सिविल अस्पताल एशिया के सबसे बड़े अस्पतालों में से एक है। आमतौर पर इस अस्पताल में माता-पिता के जीवन में खुशी लाने वाले और उनके जीवन को ज्योतिमर्य करने वाले नवजात शिशुओं के रोने और चीखने की आवाजें आती है। हालाँकि, आज यह अस्पताल संकट के बादलों कि गिरफ्त में है और अस्पताल की गलियाँ नए माता-पिता व उनके परिवारों की दर्दनाक चीखों से गुंजायमान हैं। इस अस्पताल में पिछले तीन दिनों में 18 नवजात शिशुओं की मौतें हो चुकी हैं। शनिवार 28 अक्टूबर 2017 को मात्र छह घंटे में नौ बच्चों की मौतें हुई थीं। इनमें से अधिकांश शिशुओं का इलाज अस्पताल के नवजात गहन चिकित्सा कक्ष (एनआईसीयू) में चल रहा था।

अहमदाबाद में मरने वाले नवजात शिशुओं के माता-पिता के दिल टूट गए हैं और उनमें से बहुत से बच्चों के माता-पिता, अपने जीवित बच्चों को देखकर भी भाव-विभोर हैं। हालाँकि, अस्पताल अपने किसी भी भाग का दोष स्वीकार करने के लिए राजी है। प्रशासन ने सफाई पेश करते हुए कहा है कि इन शिशुओं को गहन देखभाल कक्ष में रखने का कारण यह था कि उनकी हालत बहुत नाजुक थी। प्रशासन ने आगे कहा, कुछ बच्चे समय से पहले पैदा हुए थे, जबकि कुछ अन्य कुपोषित व बहुत कम वजन वाले थे। कुछ अन्य बच्चों का जन्मजात जटिलताओं के साथ-साथ श्वसन संबंधी बीमारियों के साथ जन्म हुआ था। एक प्रेस के प्रकाशन में, अस्पताल ने कहा, “24 घंटों में नौ मौतों में से पाँच बच्चे – लुणावाडा, सुरेंद्रनगर, मानसा, विरामगाम, हिम्मतनगर जैसे दूर स्थानों से भेजे गए थे और यह बच्चे जन्म के समय से बेहद कम वजन (लगभग 1.1 किलोग्राम), हाइलिन झिल्ली रोग से ग्रसित, प्रारंभिक सेप्टीसीमिया और अंतः-रक्तवाहिकाओं के स्कंदन जैसी गंभीर बीमारियों से ग्रस्त थे”। दूसरे चार बच्चे सिविल अस्पताल में ही पैदा हुए थे और इन बच्चों के बारे में कहा कि इनकी मृत्यु “मेकोनियम एस्पिरेशन और जन्म के समय से ही दम घुटने जैसी गंभीर समस्या के कारण हुई थी”।

एक समाचार रिपोर्ट से पता चला है कि अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में हर रोज लगभग 5 नवजात शिशुओं की मौत हो जाती है। अस्पताल प्रशासन ने संयोग के मामले में लगभग 18 शिशुओं की मौत को ठुकरा दिया है, लेकिन पिछले कुछ महीनों में जो पूरे देश ने देखा है, वह एक भयावह प्रवृत्ति का हिस्सा है।

इस साल अगस्त के अंत में, उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के बाबा राघवदास अस्पताल में इलाज के दौरान करीब 160 बच्चों और शिशुओं की मौत (30 दिनों की अवधि) में दर्ज की गई। अस्पताल के अधिकारियों ने कहा, यह मौतें ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी का कारण हुई थीं। अगस्त 2017 में फर्रुखाबाद के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में 49 बच्चों की जान जाने की सूचना मिली थी।

जमशेदपुर (झारखंड) के महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज (अस्पताल) में इसी अवधि में 52 बच्चों की मृत्यु की रिपोर्ट ने देश को हिला कर रख दिया था। ऐसा लगता है कि इन शिशुओं और बच्चों की लगातार होने वाली मौतें किसी विशेष क्षेत्र को परिभाषित नहीं करती हैं। जून और अगस्त के बीच में कर्नाटक के कोलार में श्री नरसिंह राजा अस्पताल में 90 शिशुओं की मृत्यु दर्ज की गई थी। अगस्त में नासिक (महाराष्ट्र) के सिविल अस्पताल में 55 बच्चों की मौत दर्ज की गई थी, जिसके कारण अस्पताल को बड़े पैमाने पर जन आक्रोश का सामना करना पड़ा था। कुछ साल पहले कोलकाता के बी सी रॉय चिल्ड्रेन अस्पताल में 5 दिनों में 35 बच्चों की मृत्यु होने के कारण काफी विवाद हुआ था।

इन सभी अस्पतालों की एकमात्र चीज समान है वह यह है कि यह सभी अस्पताल सरकारी व राज्य सरकार के अधीन हैं। वे सभी दावा करते हैं कि इन अस्पतालों में होने वाले प्रसव के दौरान काफी शिशुओं की मौतें हुई हैं। इस तथ्य में कुछ सच्चाई हो सकती है कि मध्य और निचले आय वाले परिवार प्राइवेट अस्पतालों की चिकित्सकीय लागतें अत्यधिक होने के कारण, सार्वजनिक अस्पतालों का चुनाव करते हैं, हालाँकि यह उचित स्पष्टीकरण नहीं लगता है। देश की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली को नए सिरे से परिवर्तित करने की आवश्यकता है। कौन सा राजनीतिक दल (राज्य स्तर पर या केंद्र में) सत्ता में है यह कोई चर्चा का विषय नहीं है, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि देश की जरूरत को ध्यान में रखते हुए इस मामले को पर्याप्त रूप से संबोधित किया जाना चाहिए। सरकारी अस्पताल नियमित रूप से उपकरणों, बुनियादी ढाँचे, संसाधनों या स्वास्थ्य की देखभाल करने वाले कुशल कर्मियों की कमी जैसी समस्याओं से ग्रस्त हैं।

गुजरात सरकार ने अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में हुई शिशुओं की मौत की जाँच का आदेश दिया है। नवजात शिशुओं के गहन देखभाल वाले वार्ड में 100 बेड हैं और सभी बेड आधुनिक सुविधाओं जैसे कि नवजात पुनर्जीवन, वेंटीलेटर (वायु-यंत्र) और रक्त आधान की उपलब्धता से सुसज्जित होने के बावजूद भी 3 दिनों में लगभग 10 प्रतिशत नवजात शिशुओं की मृत्यु हुई है। हम केवल उम्मीद और प्रार्थना कर सकते हैं कि सरकार एक दृढ़ उद्देश्य वाली जाँच का प्रतिपालन करें और बच्चों की मृत्यु के कारणों के ब्यौरों के अलावा उपायों को सूची में अंकित किया जाए, ताकि भविष्य में इस तरह की विपत्ति से बचने के लिए देश के अस्पताल और अन्य लोग इसका पालन करने में सक्षम हो सकें।