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गुजरात चुनाव – भाजपा की जीत को मुश्किल बनाने वाली 5 चुनौतियां

December 8, 2017
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गुजरात चुनाव - भाजपा की जीत को मुश्किल बनाने वाली 5 चुनौतियां

पूरे भारत को दो सप्ताह से भी कम समय में पता चल जाएगा कि गुजरात में किसकी सरकार बनने वाली है। रिपोर्टों के मुताबिक, भारतीय जनता पार्टी अन्य पार्टियों की अपेक्षा सबसे आगे है। हालाँकि, भारतीय जनता पार्टी को अपने मुख्य प्रतिद्वंदी कांग्रेस से जीत के लिए एक कड़ी टक्कर का सामना करना होगा। यह चुनाव भाजपा के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इसमे एक भी पराजय चुनावी आपदाओं को स्पष्ट रूप से सूचित करेगी, क्योंकि यह उन राज्यों की भाजपा की पार्टी पर विपरीत प्रभाव डाल सकती है, जहाँ वर्ष 2018 में चुनाव आयोजित होंगे। वर्ष 2019 में होने वाले आम चुनावों में भी इसका असर दिखाई देगा। हालाँकि, भारतीय जनता पार्टी पूरी तरह से राज्य पर अपना कब्जा बनाए रखने के लिए तैयार है और उसने जीत हासिल करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी है, लेकिन कुछ चुनौतियां हैं जो भारतीय जनता पार्टी की जीत में बाधाएं पैदा कर सकती हैं। आइए हम उन पाँच चुनौतियों पर नजर डालें, जिनसे भाजपा को सामना करना पड़ सकता है।

विरोधी लहर

वर्ष 1998 के बाद से भारतीय जनता पार्टी लगातार सत्ता में रही है। इन 19 वर्षों में नरेंद्र मोदी ने 13 साल तक मुख्यमंत्री का पदभार संभाला है। नरेन्द्र मोदी के मुख्यमंत्री बनने के पहले और बाद की अवधि में एक राजनीतिक अस्थिरता देखने को मिली, क्योंकि लोग नरेंद्र मोदी को काफी आपेक्षित स्थायित्व प्रदान करते थे। वर्ष 2014 के आम चुनावों में नरेन्द्र मोदी को देश के प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया। निम्नलिखित तीन वर्षों में दो लोगों – आनंदीबेन पटेल और विजय रूपाणी को मुख्यमंत्री के रूप में चुना गया। रूपाणी के पास मोदी के समान आभा नहीं है तो क्या इसका चुनावों पर असर पड़ेगा और एक विरोधी लहर प्रभावी दिखाई देगी?

पाटीदार और दलित

पाटीदार और दलित बड़े समुदायों में से एक हैं और वे भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में नहीं हैं। ये दोनों समुदाय वर्तमान प्रतिरूप में खुद को असहाय महसूस कर रहे हैं। पाटीदार आरक्षण की माँग कर रहे हैं और इस संबंध में अगस्त 2011 में युवा हार्दिक पटेल ने आरक्षण की माँग करते हुए एक विशाल विरोध प्रदर्शन आयोजित किया था। इस आंदोलन ने सरकार, जीवनहानि और संपत्ति को काफी नुकसान पहुँचाया था और इसलिए हार्दिक पटेल को जेल भेज दिया गया था। इसलिए युवा नेता हार्दिक पटेल कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। पटेल आबादी के करीब 18 प्रतिशत मतदाता, भाजपा के लिए समस्याएं पैदा करने के लिए पर्याप्त हैं।

दलित समुदाय काफी परेशान है, क्योंकि वे सामाजिक रूप से कुछ प्रभावी समूहों से हिंसा, उत्पीड़न, भेदभाव, अस्पृश्यता (छुआछूत) का शिकार हुए हैं। उनका कहना है कि पिछले कुछ सालों में बहुत ज्यादा बदलाव नहीं हुआ है। वर्ष 2016 में चार दलितों को गाय सुरक्षा व्यवस्थापक समिति के सदस्यों द्वारा एक मृत गाय की खाल खींचने (निकाले) के कारण बेरहमी से पीटा गया था। इस वजह से दलित भाजपा से काफी नाखुश हैं और वह वर्ष 2017 के चुनावों में भाजपा के खिलाफ जा सकते हैं।

नरेन्द्र मोदी का इस परिदृश्य में न होना

वर्ष 2017 का गुजरात चुनाव पिछले वाले चुनावों से अलग हैं, क्योंकि इस बार मोदी पार्टी की कमान नहीं संभाल रहे हैं। राज्य की राजनीति से मोदी के प्रस्थान के बाद, विशेष रूप से आनंदीबेन पटेल के शासनकाल के दौरान, गुजरात में अशांति का माहौल को देखा गया है। पटेल और दलित समुदायों के आंदोलनों से विचलित होने के अलावा, आनंदीबेन पटेल के शासन पर भेदभाव और भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए हैं। चुनावों पर इसका क्या असर पड़ेगा, यह तो समय ही बताएगा।

आप (आम आदमी पार्टी)

गुजरात चुनावों में दो मुख्य दलों, भाजपा और कांग्रेस के बीच एक कड़ी टक्कर होगी, लेकिन आम आदमी पार्टी के प्रभाव को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है। हालाँकि, आम आदमी पार्टी (आप) गठबंधन की सरकार बनाने के आँकड़े से काफी दूर है, लेकिन निश्चित रूप से इसके मतदाता भाजपा के वोटों को विभाजित करेंगे और इससे पार्टी को अधिक परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।

जीएसटी

माल एवं सेवा कर (गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स) ने व्यापारिक समुदाय की परेशानियाँ को बढ़ा दिया है। भारतीय जनता पार्टी के समर्थक व्यापारिक समुदाय है और उन्होने राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी की उन्नति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालाँकि, जीएसटी से उनके राजस्व के कार्यान्वयन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। गुजरात के कई शहरों में व्यापारियों द्वारा जीएसटी के कार्यान्वयन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया गया था। अभी भी यह देखना बाकी है कि जीएसटी राज्य में भाजपा को कितना प्रभावित करेगी।

हालाँकि, भारतीय जनता पार्टी अभी भी राज्य में अन्य दलों की तुलना में सबसे आगे है, लेकिन ये कुछ चुनौतियां हैं जिन पर पार्टी को ध्यान आकर्षित करने की आवश्यकता है।