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दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल – कौन है किस लिए जवाब देह?

December 29, 2017
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दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल

क्या दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है? क्या राष्ट्रीय राजधानी एक राज्य है? जब उप-राज्यपाल (लेफ्टिनेंट-गवर्नर), मुख्यमंत्री और राज्य सरकार की भूमिका को परिभाषित करने की बात आती है तो ये सवाल जोन केवल वर्गीकरण के मामले के रूप में, बल्कि प्रायः एक साजिश के रूप में भी हमारे सामने आते हैं।

शुरुआत में दिल्ली की विधानसभा का गठन वर्ष 1952 में हुआ था, लेकिन 1956 तक इस विधानसभा को समाप्त कर दिया गया और दिल्ली को एक केंद्र शासित प्रदेश के रूप में फिर से शासित किया गया था। इसका अर्थ यह है कि अन्य केंद्र शासित प्रदेशों की तरह, दिल्ली को एक प्रशासक द्वारा शासित किया गया था, जो भारत के राष्ट्रपति के द्वारा व्यवस्थापित किया जाता है।

हालांकि, 1 फरवरी 1992 को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 239  में संशोधन किया गया और दिल्ली के लिए विशेष प्रावधान किए गए, जिसे औपचारिक रूप से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीटी) के रूप में घोषित किया गया था। इन प्रावधानों ने एकल विधानसभा (जो जनता द्वारा निर्वाचित किया जाता था) की स्थापना के लिए एक रास्ता तैयार किया है। अन्य राज्यों की तरह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीटी) दिल्ली में मुख्यमंत्री और मंत्रियों का एक परिषद होगा। दिल्ली के संवैधानिक प्रमुख, उपराज्यपाल (लेफ्टिनेंट-गवर्नर) हैं, जिन्हें भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है।

मुख्यमंत्री बनाम उपराज्यपाल (एलजी) पर धारा 239

दिल्ली में प्रशासनिक स्थापना के स्वरूप को देखकर लगता है कि मुख्य रूप से यह मुख्यमंत्री (और मंत्रिपरिषद) और उप-राज्यपाल के बीच विवादों को जन्म दे रहा है। अनुच्छेद 239 एए में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि मंत्रिपरिषद और मुख्यमंत्री अपने कार्यकारी कार्यों में उप-राज्यपाल को सहायता और सलाह प्रदान करेंगे, जबकि विधानसभा कानून निर्माण प्रक्रिया को संभालने का काम करेगी।

यह भी कहा गया है कि उप-राज्यपाल (एलजी) और किसी मंत्री (विशेषकर मुख्यमंत्री के संबंध में) के बीच मतभेद होने के मामले में उप-राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के फैसले की माँग की जाएगी। अगर यह अनुपलब्ध है और यह एक जरूरी मामला है तो उप-राज्यपाल (एलजी) इस मामले को उचित समझते हुए इस मामले में निर्णय लेने और कार्यवाही करने के लिए अपनी शक्ति का प्रयोग कर सकते हैं।

पिछले कुछ वर्षों में, दिल्ली सरकार और उप-राज्यपाल (लेफ्टिनेंट गवर्नर) के कार्यालय के बीच सत्ता संघर्ष, इस अनुच्छेद की व्याख्या पर आधारित है। सरकार का दावा है कि उप-राज्यपाल (एलजी), मंत्रिपरिषद की सलाह द्वारा बाध्य हैं, जिसका अर्थ यह है कि दिल्ली का शासन राज्य सरकार की जिम्मेदारी है, जबकि उप-राज्यपाल (एलजी) ने अपने कार्यालय का दावा करते हुए कहा है कि मंत्रियों को एक सलाहकार की हैसियत से रहना चाहिए और अंतिम निर्णय उप-राज्यपाल (एलजी) का ही होना चाहिंए।

दिल्ली के प्रशासन की जटिल प्रणाली

जब से आम आदमी पार्टी (एएपी) ने 2013 में राज्य विधानसभा पर नियंत्रण हासिल किया है, तब से राज्य सरकार और उप-राज्यपाल (एलजी) के बीच सत्ता संघर्ष और स्पष्टता की कमी को स्पष्ट रूप देखा गया है। मामले की जटिलता को आगे बढ़ाने के तथ्य यह हैं कि दिल्ली राज्य सरकार के पास दिल्ली पुलिस (कानून और व्यवस्था) का अधिकार नहीं है जो केंद्र सरकार के गृह मामलों के मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र के तहत आता है। भूमि अधिग्रहण राज्य के मुख्य सचिव के दायरे में आता है, लेकिन दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) से जुड़े सभी मामले उप-राज्यपाल (एलजी) के पास जाते हैं, जो डीडीए के अध्यक्ष भी हैं। दिल्ली राज्य सरकार के पास पीडब्ल्यूडी (लोक निर्माण विभाग), जल बोर्ड, बिजली और परिवहन, स्वास्थ्य और शिक्षा पर अधिकार हैं, लेकिन सार्वजनिक स्वास्थ्य और स्वच्छता दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) के अंतर्गत आते हैं।

जब हम राजधानी में प्रशासन की बहुत ही जटिल प्रणाली को सुलझाना शुरू करते हैं, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि न केवल जवाबदेही का स्पष्ट अभाव है, बल्कि इसे कई रूपों में राजनीतिक दोष के खेल का आधार भी माना जाता है।

सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप

दिल्ली सरकार और उप-राज्यपाल (एलजी) के प्रशासनिक शक्तियों के स्वरूप का निर्धारण करने के लिए चल रही कानूनी लड़ाई को उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय दोनों स्तरों पर पहुँचाया गया है।

पिछले महीने, भारत के सर्वोच्च न्यायालय की पांच सदस्यीय पीठ ने कहा था कि दिल्ली के उप-राज्यपाल (लेफ्टिनेंट-गवर्नर) के पास राज्य के राज्यपाल की तुलना में अधिक शक्ति होती है। वह अपनी विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग कर सकते हैं और हर समय मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्रवाई करने की आवश्यकता नहीं है। इसके बाद, केंद्र सरकार ने आम आदमी पार्टी (एएपी) के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार पर आरोप लगाया कि वह लगाए गए दोषों को हटाने के लिए विवादों को बढ़ावा दे रही है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि आम आदमी पार्टी की सरकार अन्य राज्य सरकारों की शक्तियों और विशेषाधिकारों का दावा नहीं कर सकती।

हालांकि केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार तथा दिल्ली के उप-राज्यपाल (एलजी) एक ऐसी लड़ाई में फंसे हुए हैं, जिसका कोई आसान उपाय नहीं है, दिल्ली के लोगों को भी इस तरह के नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने दावा किया है कि दिल्ली के उप- राज्यपाल (लेफ्टिनेंट गवर्नर) अनिल बैजल ने दिल्ली के लोगों के लिए जन्म और मृत्यु प्रमाणपत्र,  ड्राइविंग लाइसेंस, पेंशन और पानी के लिए कनेक्शन, रजिस्ट्रेशन इत्यादि जैसी महत्वपूर्ण सेवाएं देने के लिए सरकार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है।

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