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क्या भारत को बुलेट ट्रेनों की आवश्यकता है?

September 19, 2017
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क्या भारत को बुलेट ट्रेन की आवश्यकता है?

2014 में, जब से एनडीए सरकार ने केंद्र का पदभार संभाला है, तब से तेज गति वाली बुलेट ट्रेनों की चर्चा जोर-शोर से हो रही है। भारत में जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे के आगमन के कारण, आज ऐसा प्रतीत होता है कि जल्द ही देश में बुलेट ट्रेन का सपना हकीकत में बदलने की ओर अग्रसर है। भारत-जापान के संयुक्त उपक्रम की बदौलत भारत की पहली बुलेट ट्रेन की संभावना बनाते हुए (15 सितंबर 2017) को इसका शुभारंभ किया जाएगा। दोनों प्रधानमंत्री बुलेट ट्रेन परियोजना की भूमिकारूप व्यवस्था की आधारशिला रखेगें और इस परियोजना में (केवल पहली लिंक में) 1.10 लाख करोड़ रुपये से अधिक धन खर्च होने की संभावना है। जापान ने भारत को 80 प्रतिशत से अधिक लागत वाला सुलभ ऋण देने का वादा किया है। यह परियोजना भारत सरकार के स्वामित्व वाली भारतीय रेल और जापानी कंपनी शिंकानसेन टेक्नोलॉजी की सहभागिता से क्रियान्वित होगी। प्रौद्योगिकी के स्थानांतरण के अलावा, जापान ने ऋण चुकौती के नियम भी बहुत आसान निर्धारित किए हैं। भारत को जापान से ली गई राशि को अगले पाँच दशकों में चुकाना होगा, जिसका ब्याज 0.1 प्रतिशत से भी कम है। बुलेट ट्रेन का निर्धारण, सबसे पहले भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई और प्रधानमंत्री के गृह राज्य अहमदाबाद के बीच के मार्ग को कवर करने के लिए किया गया है। यह परियोजना भारत की आजादी के 75वें वर्ष 2022 तक पूरी होने की उम्मीद है।

जरूरत बनाम आवश्यकता

भारत में बुलेट ट्रेनों की शुरूआत के कारण उत्साह के साथ-साथ, सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह भी है – क्या भारत में तेज गति वाली रेल (एचएसआर) या बुलेट ट्रेनों की आवश्यकता है?

देश में एचएसआर की शुरूआत का समर्थन करने वाले कई सटीक तर्क और कारण हैं-

  • भारतीय रेलवे ने पूरे विश्व में, सबसे बड़ा रेल नेटवर्क होने का गौरव प्राप्त किया है। औसतन लगभग 23.07 मिलियन यात्रियों ने भारतीय रेलवे की यात्रा और विनिमय का उपयोग किया है। वर्ष 2013 की गणना के अनुसार, भारतीय रेलवे (मालगाड़ियों) द्वारा प्रति वर्ष 1.2 बिलियन टन माल का आवागमन किया जाता है। संगठन की महानता को देखते हुए यह अजीब लगता है कि देश में अभी तक एचएसआर (हाई स्पीड रेल) की स्थापना क्यों नहीं की गई।
  • नई तकनीक और क्षमता निर्माण की स्थापना का सबसे अधिक लाभ यह है कि भारत बुलेट ट्रेनों की स्थापना से नए मुकामों को हासिल करेगा। भारतीय रेलवे के सैकड़ों अधिकारियों का प्रशिक्षण जापान में कराया जाना सुनिश्चित किया गया है और यह प्रशिक्षण नए रेलवे विश्वविद्यालय के माध्यम से दिए जाने की संभावना है, जिसका परिचालन जल्द ही किया जाएगा।
  • एचएसआर (हाई स्पीड रेल) की स्थापना से यात्रा बहुत ही सुविधाजन हो जाएगी और संभावना की जाती है कि वित्तीय क्षेत्रों या इससे जुड़े हुए क्षेत्रों की यात्रा में लगने वाले समय व लागत में भी कमी आएगी। साथ ही यह अधिक निवेश और उद्यमों के लिए रास्ता बनाएगा और सामान्यतः “मेक इन इंडिया” पहल को भी प्रोत्साहित करेगा।
  • देश में बेरोजगारी की उच्च दर हाल के दिनों की प्रमुख चिंताओं में से एक है। बुलेट ट्रेनों की स्थापना से हजारों – विशेषकर पुणे, इंदौर, चेन्नई और एनसीआर जैसे शहरों में रोजगार की संख्या में बढ़ोत्तरी होगी, जहाँ इसके विभिन्न प्रकार के पुरजों का निर्माण होने की संभावना है।
  • एचएसआर की यात्रा उच्च कुशल ऊर्जा प्रणाली पर आधारित है। जब भारत अपने हरित ऊर्जा लक्ष्यों के बारे में गंभीरता से विचार कर रहा है, तो ऐसे समय में एचएसआर एक बड़े वरदान के रूप में साबित हो सकती हैं। इसमें बिजली और एटीएफ ईंधन की आवश्यकता (खपत) भी कम होती है।

हालांकि, इनमें से प्रत्येक बिंदु अपने आप में एक आकर्षक का कारण रहे हैं, लेकिन कई ऐसे भी कारण हैं, जिसके लिए आलोचक देश में एचएसआर की शुरूआत का विरोध कर रहे हैं –

  • भारत जैसे देश में बुलेट ट्रेनों की उच्च लागत के परिणाम स्वरूप, स्वचालित रूप से अन्य उच्च प्राथमिकता वाली परियोजनाएँ और भावी क्षेत्र धन से वंचित हो जाते हैं। 10 लाख करोड़ रुपये केवल मुंबई – अहमदाबाद में बुलेट ट्रेन के कार्यों में व्यय होने की संभावना है। इस धन का उपयोग बेहतरीन शिक्षा और रोजगार के अवसर, स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन, महिला कल्याण, किसानों के लिए ऋण छूट और अन्य ऐसे क्षेत्रों में किया जा सकता था।
  • भारत में विमान क्षेत्र काफी विकसित है और यहाँ कम लागत वाली एयरलाइंस की संख्या भी काफी अधिक है। अधिकांश मध्यवर्गीय यात्री इन दिनों सस्ते डिस्काउंट वाले एयर टिकट खरीदना पसंद करते हैं। इस परिदृश्य को देखते हुए, तेज गति वाली बुलेट ट्रेनों की स्थापना व्यर्थ का काम लगता है।
  • देश भर में बुलेट ट्रेनों की स्थापना की लागत काफी अधिक है। वित्तीय निहितार्थों के अलावा, इसमें बस्तियों का विस्थापन और पर्यावरण की क्षति भी शामिल हैं – इन प्रभावों का या तो अभी तक पता नहीं लगाया गया है या तो इसके बारे में पर्याप्त रूप से अध्ययन नहीं किया गया है।
  • यह भी वास्तविक आशंका है कि बुलेट ट्रेनें संभ्रांतवादी (एलिटिस्ट) सुविधा में परिवर्तित हो सकती हैं। यदि टिकट का विवेकपूर्ण ढंग से मूल्यांकन नहीं किया गया, तो यह सुविधा (बहुत ही उच्च लागत पर निर्माण होना) जनता के लिए अनुपलब्ध हो सकती है।

एचएसआर बुलेट ट्रेनों की स्थापना होनी चाहिए या नहीं, अब यह मुद्दा नहीं होना चाहिए। हालांकि, हम इसके क्रियान्वयन के नकारात्मक पक्ष पर एक करीबी नजर डाल सकते हैं और किसी भी नुकसान से बचने की कोशिश कर सकते हैं।

 

 

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