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डॉल्फिन डे – 14 अप्रैल

April 12, 2018
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डॉल्फिन डे 2018

डॉल्फिन डे एक ऐसा दिन है, जो सबसे प्यारे और बुद्धिमान जलीय स्तनधारी डॉल्फिन को समर्पित है। डॉल्फिन डे प्रत्येक वर्ष 14 अप्रैल को मनाया जाता है। 1990 के दशक के बाद से यह दिन, दुनिया भर के लोगों द्वारा डॉल्फिन के शिकार के मुद्दे पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मनाया जाता है। यह दिन पिछले दशक के दौरान जापानी डॉल्फिन के शिकार पर प्रतिबंध लगाने के लिए अस्तित्व में आया था। उसके बाद, डॉल्फिन डे इन बेहद बुद्धिमान और अद्भुत समुद्री जानवरों के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए एक वार्षिक त्यौहार बन गया।

कृत्रिम विकास की वजह से डाल्फिनों की संख्या में कमी आई है, जिसके कारण वह विलुप्त होने की कगार पर आ गई हैं। दुनिया भर में, इस संवेदनशील मुद्दे को संबोधित करने के लिए, इस दिन विभिन्न बैठकों और अभियानों का आयोजन किया जाता है। सैन फ्रांसिस्को, न्यूयॉर्क शहर और टोक्यो इन अभियानों का मुख्य केंद्र है। प्रत्येक वर्ष 14 अप्रैल को हजारों की संख्या में लोग, इस मुद्दे से निपटने के लिए एक दूसरे से हाथ मिलाते हैं।

मानवीय हस्तक्षेप

बीते हुए वर्षों से यह स्पष्ट होता है कि जब भी मनुष्य किसी प्राकृतिक आवास, चाहे वह वन हो या जल निकाय के साथ हस्तक्षेप करते हैं, तो उनके परिणाम संदिग्ध होते हैं। मनुष्यों द्वारा की गई लापरवाही और हानिकारक कार्य, डॉल्फिन के लिए अपरिवर्तनीय खतरा पैदा कर रहे हैं।

डाल्फिन की लगभग 95 प्रतिशत मृत्यु मानव-संबंधित कारणों से जुड़ी हुई है। प्रौद्योगिकी में होने वाली प्रगति के कारण डॉल्फिन प्रजाति में गिरावट देखने को मिली है। यह कारण प्राणियों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर रहे हैं, क्योंकि मनुष्यों द्वारा पर्यावरण को तेल, भारी धातुओं, रसायनिक पदार्थों, कीटनाशक दवाओं और प्लास्टिक के मिश्रण से दूषित किया जा रहा है। ये प्रदूषक और विषाक्त पदार्थ उनके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं, जो कभी-कभी उनकी मृत्यु का प्रमुख कारण बनते हैं।

जलीय जीव अपने साथियों के साथ बातचीत करने, शिकार करने और सुनने की भावना पर काफी निर्भर करते हैं। पानी के भीतर लगातार आवाज करने वाले जहाजों के इंजन और नैविगेशनल रडार और सोनार जैसे उपकरण, इन जीवों को काफी डराते और हानि पहुँचाते हैं। प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में होने वाली इस प्रगति ने डॉल्फिन को प्रजनन और भोजन के मैदानों को छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया है।

यदि डाल्फिन मछलियों को उनके प्राकृतिक वातावरण से दूर ले जाया गया, तो वह बीमार और काफी दुर्बल हो जाएंगी। मानव चालित गतिविधियों के परिणामस्वरूप, ये अक्सर पिंजरों और मछली पकड़ने वाले जाल में फंस जाती हैं तथा कई बार वह जहाज और उसके रोटर ब्लेड से टकराकर आहत हो जाती हैं। डाल्फिन का मनुष्यों द्वारा मछली पकड़ने वाले खेल के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है।

डाल्फिन के विलुप्त होने के परिणाम

समुद्री जीव-विज्ञानिकों और प्रकृतिवादियों के लिए, डॉल्फिन प्रजातियों की कमी एक गंभीर चिंता का विषय है। इन समुद्री जीवों को होने वाले खतरे से उनकी कमी की संभावना काफी बढ़ जाती है। डाल्फिन के विलुप्त होने से समुद्री पारिस्थितिक तंत्र और खाद्य श्रृंखला भी असंतुलित हो जाएगी। वह प्रजातियाँ जो डॉल्फिनों के भोजन पर बहुत अधिक आश्रित है, समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरे का कारण बन जाएंगी।

गंगा डॉल्फिन-भारत के राष्ट्रीय जलीय जंतु

भारत का राष्ट्रीय जलीय जंतु घोषित होने के बाद भी, गंगा डॉल्फिन की संख्या दिन-प्रतिदिन घट रही है। भारत में लगभग 2000 गंगा डॉल्फिन ही शेष रह गई हैं। बाँधों के निर्माण, शिकार और प्रदूषण की वजह से डाल्फिनों की संख्या लगातार कम हो रही है। प्रत्येक वर्ष मनुष्यों द्वारा लगभग 100 डॉल्फिनों को मार दिया जाता है। हालांकि, भारत के सरकारी अधिकारी डाल्फिनों को नुकसान पहुँचाने वाले लोगों के खिलाफ सख्त कार्यवाही कर रहे हैं।

चीन की यांग्त्से नदी डॉल्फिन

चीन की यांग्त्से नदी डॉल्फिन तेजी से होने वाले औद्योगिकीकरण का शिकार है। तीव्र औद्योगिक गतिविधियों के कारण वहाँ की डाल्फिनों की प्रजातियाँ विलुप्त हो गईं हैं और नदी के आसपास के स्थानों में भी यह विलुप्त होने की कगार पर हैं। यांग्त्से नदी डॉल्फिन को “यांग्त्से की देवी” कहा जाता था और चीन के सांस्कृतिक इतिहास में इसका एक विशेष स्थान था।

उपाय कार्यवाही को अपनाने की आवश्यकता

इस डॉल्फिन डे, पर हम सभी को पृथ्वी पर ऐसे चंचल और अद्भुत जीवों के अस्तित्व को बनाए रखने का ध्यान रखना चाहिए। इस महत्वपूर्ण मुद्दे का जितना हो सके, उतना प्रचार-प्रसार करने का वादा करें। हमें एक ऐसी पीढ़ी बनना होगा, जो चीजों का बेहतर तरीके से निरूपण कर सकें।

सारांश
लेख का नाम- डॉल्फिन डे – 14 अप्रैल

लेखिका का नाम- साक्षी

विवरण- इस लेख में डॉल्फिनों की संख्या में आने वाली कमी पर ध्यान आकर्षित किया गया है। भारत का राष्ट्रीय जलीय जंतु घोषित होने के बाद भी, गंगा डॉल्फिन की संख्या दिन-प्रतिदिन घट रही है। भारत में लगभग 2000 गंगा डॉल्फिन ही शेष रह गई हैं। इसलिए हमें इस पर विचार करने की आवश्यकता है।