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पर्यावरणीय आपदाएं: प्राकृतिक या मानवकृत?

September 29, 2018
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पर्यावरणीय आपदाएं: प्राकृतिक या मानवकृत?

अगस्त 2018 को जब भयानक बाढ़ ने केरल राज्य को तहस-नहस कर दिया, तो पूरा देश सदमे में दिखाई दिया था। पिछली एक शताब्दी की अवधि में राज्य की सबसे अधिक नुकसानदायी मानी जा रही इस बाढ़ में कम से कम 483 लोगों ने अपनी जान गंवा दी। इस उथल-पुथल के बीच एक बयान आया है कि कई लोग इसे प्रकृति के क्रोध के रूप में देखते हैं, जो कई लोगों में अविश्वास पैदा कर रहा है।

पारिस्थितिक विज्ञानी एवं पर्यावरणविद् माधव गाडगील के अनुसार, केरल की त्रासदी सार्वजनिक राय के विपरीत एक मानव निर्मित आपदा थी। जहाँ उनके दावे ने आगे इस मामले में और अधिक छानबीन करने के लिए लोगों प्रेरित है, वहीं इस अव्यवस्था ने भारत में सदियों पुरानी बहस को फिर से शुरू कर दिया है। क्या सभी तथाकथित प्राकृतिक आपदाएं वास्तव में प्राकृतिक एवं बेकाबू कारण से पैदा हुई हैं, अथवा मानव समूह जानबूझकर या अनजाने में अमनवीय आचरण कर रहा है?

केरल बाढ़ 2018

15 अगस्त, 2018 से शुरू होकर “भगवान का अपना देश” केरल, लगातार कोप के अधीन था, क्योंकि भारी बारिश और क्रमिक बाढ़ ने क्षेत्र को बर्बाद कर दिया था। भारत सरकार द्वारा इसे गंभीर स्वभाव वाली तृतीय स्तर की आपदा घोषित करते हुए, राज्य के चौदह जिलों को रेड अलर्ट पर रखा गया था।

समाचार रिपोर्टों ने 1 से 21 अगस्त तक के विवरण दिखाए, कि किस प्रकार केरल ने 87 वर्षों में अगस्त में होने वाली सबसे ज्यादा बारिश का अनुभव किया था! स्वाभाविक रूप से, मूसलाधार बारिश केरल बाढ़ का सबसे अधिक उल्लेखनीय कारण रही है। लोकिन कुछ लोग इस बात से असहमत हैं। पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल (डब्लूजीईईपी) की अध्यक्षता करने वाले माधव गाडगिल ने बाढ़ के साथ-साथ केरल में हाल ही में हुए भू-स्खलन दोनों के लिए नदी की तलहटी में अवैध निर्माण और लाइसेंस रहित पत्थर खनन पर आरोप लगाया है। अत्यधिक बारिश को पूरी तरह से अनदेखा न करते हुए गडगिल ने कहा है कि बाढ़ एक मानव निर्मित आपदा भी थी।

सरकार द्वारा डब्यूजीईईपी का गठन किया गया था और इसने अपनी 2011 की रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि पश्चिमी घाटों के तहत आने वाले कई क्षेत्रों, जिनमें से कई केरल में हैं, को पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील घोषित किया जाना चाहिए। आईआईटी, बेंगलुरु में पारिस्थितिकीय अध्ययन केंद्र के संस्थापक गाडगील ने भी क्षेत्र में अत्यधिक खनन पर सख्त प्रतिबंध लगाने की सलाह दी थी। हालांकि, उनके सुझाव निगमित नहीं किए गये थे।

नेशनल सेंटर फॉर अर्थ साइंस स्टडीज की एक टीम के एक अन्य अध्ययन ने घोषणा की है कि बाढ़ मानव निर्मित और प्राकृतिक कारणों का संयुक्त परिणाम था।

संक्षिप्त विवरण

भारत ने वर्ष 2004 में आई सुनामी के बाद से जून 2013 में, अपनी सबसे भयानक त्रासदियों में से एक को देखा। उत्तराखंड में सबसे अधिक जनहानि एवं बर्बादी के साथ बाढ़ ने उत्तरी भारत को बहुत निर्दयता से तहस-नहस कर दिया। आधिकारिक रिकॉर्ड ने भयानक घटना में गयी कई अन्य जानों के साथ 5700 से अधिक मौतों का आंकड़ा दिया। हालांकि, जहाँ बादल फटने को त्रासदी के प्रमुख कारण के रूप में जाना जाता है, वहीं पर्यावरणविदों का एक अलग दृष्टिकोण है।

भूगर्भ विज्ञानी कहते हैं कि आपदा से होने वाले विनाश और मौतों को काफी हद तक कम किया जा सकता था, लेकिन क्या इसके लिए उचित नियम और साधन उपलब्ध थे। कुछ पर्यावरणविदों ने बाढ़ को मानव निर्मित आपदा भी घोषित कर दिया।

इन घटनाओं से एक बात तो स्पष्ट हो जाती है। जानबूझकर या अनजाने में, मानव जाति पर्यावरण और स्वयं दोनों के ही खिलाफ खतरे का निर्माण कर रही है। चाहे केरल नदी के किनारे हों, या उत्तराखंड के संवेदनशील पहाड़ी क्षेत्र हों, वहाँ जिन सुरक्षा उपायों और सावधानियों को अपनाना चाहिए था, अपनाया नहीं गया था।

निष्कर्ष

यह सच है कि हम प्रकृतिक शक्तियों को हम पर हमला करने से नहीं रोक सकते हैं। हालांकि विडंबना यह है कि मानव जाति प्राकृतिक कोप और इसके प्रभाव को और खराब करने में अपनी भूमिका निभा रही है। हमारे संवेदनशील पर्यावरण के साथ निपटने के लिए उचित नियम और विचार नहीं किए जा रहे हैं। अवैध खनन, भूमितग-खानें, निर्माण इत्यादि के सिर्फ एक-दो उदाहरण नहीं हैं, बल्कि हमें वापस बैठकर चिंता करने के लिए पर्याप्त हैं।

सवाल यह है कि हम इतनी गंभीर और महत्वपूर्ण मुद्दे को सहज रूप में क्यों लेते हैं? हम अपने जलवायु के बारे में अधिक गंभीरता से बात करते हैं, और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम चेतावनियों को सुनना शुरू करते हैं। इस बात से इनकार नहीं है कि केरल, उत्तराखंड और कई अन्य स्थानों की त्रासदी से बचा जा सकता था, या कम से कम काफी हद तक कम किया जा सकता था, लेकिन क्या हम अपने पर्यावरण के प्रति अधिक चौकस थे। आर्थिक लाभों के लिए उठाए गए गलत कदम लंबे समय तक विनाशकारी प्रभाव डाल सकते हैं, जैसा कि अब स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। समय की मांग है कि हम अपनी जलवायु के बारे में अधिक गंभीरता से बात करें और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम चेतावनियों को सुनना शुरू करें।

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पर्यावरणीय आपदाएं: प्राकृतिक या मानवकृत?
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अगस्त 2018 को जब भयानक बाढ़ ने केरल राज्य को तहस-नहस कर दिया, पिछली एक शताब्दी की अवधि में राज्य की सबसे अधिक नुकसानदायी मानी जा रही इस बाढ़ में कम से कम 483 लोगों ने अपनी जान गंवा दी। अव्यवस्था ने भारत में सदियों पुरानी बहस को फिर से शुरू कर दिया है-क्या प्राकृतिक आपदाए मानव जाति के हाथों से पूरी तरह से बाहर हैं या इसके जिम्मेदार हम हैं?
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