गौरी लंकेश: एक साहसी महिला
गौरी लंकेश- स्मरण का एक वर्ष
लोग कहते हैं कि हर दिन को ऐसे जीना चाहिए जैसे कि यह आपका आखिरी दिन हो। लेकिन क्या होगा यदि आपका जीवन, भगवान की नहीं बल्कि उन लोगों की मर्जी से जो आपकी आवाज को दबाने की कोशिश करते हैं, आपसे दूर कर दिया जाए? किसी भी मामले में, गौरी लंकेश अपने दरवाजे पर मृत्यु की अनचाही दस्तक के बावजूद जीवन का उचित उपयोग करने में कामयाब रहीं। 5 सितंबर 2017 की शाम को 55 वर्षीय पत्रकार से कार्यकर्ता बनी गौरी लंकेस को उनके घर के बाहर गोली मार दी गई थी।
जबकि पूरा देश सदमे में था, लेकिन एक बात स्पष्ट थी। हत्या का एक दृढ़ साक्ष्य यह था कि लंकेश की आवाज किसी के कानों तक पहुंच गई थी जिसने उसकी मुश्किलों को बढ़ा दिया था।
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गौरी लंकेश का जीवन काल
पल्या लंकेश और इंदिरा लंकेश की पुत्री, गौरी लंकेश का जन्म 29 जनवरी, 1962 को बैंगलोर (जिसे अब बेंगलुरु कहा जाता है) में हुआ था। उनके पिता, पल्या लंकेश आज भी कन्नड़ साहित्य की दुनिया में एक मजबूत और प्रमुख व्यक्ति बने हुए हैं। 1980 में, गौरी लंकेश ने पहली बार पत्रकारिता में कदम रखा, जब पी. लंकेश ने साप्ताहिक लंकेश पत्रिके की शुरुआत की जो प्रतिरोध करने वाली पत्रकारिता के लिए रुकावट बनी। यह लंकेश पत्रिके ही थी जिसका 2000 में अपने पिता की मृत्यु के बाद आखिरकार गौरी ने संपादक के रूप में पदभार संभाला था।
लंकेश, जो शुरुआत में डॉक्टर बनना चाहती थीं, ने खुद को इसके बजाय पत्रकारिता में बदल दिया। तीन भाई बहनों में से सबसे बड़ी, गौरी लंकेश ने 1980 के दशक में बेंगलुरु में टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ अपने करियर की शुरुआत की। 2000 में अपने पिता की मृत्यु से पहले, लंकेश ने 16 से अधिक वर्षों तक पत्रकार के रूप में कार्य किया था।
करियर और लंकेश पत्रिके
2000 में पी लंकेश के निधन के बाद, लंकेश पत्रिके की जिम्मेदारी गौरी और उनके छोटे भाई इंद्रजीत लंकेश के कंधों पर आ गई। प्रारंभ में उन्होंने पत्रकारिता के संचालन को समाप्त करने की योजना बनाई थी लेकिन प्रकाशक मणि के जोर देने पर उन्होंने प्रकाशन जारी रखने का फैसला किया। इंद्रजीत ने व्यवसायिक मामलों को संभाला, जबकि गौरी ने साप्ताहिक संपादक के रूप में कार्य करना शुरु किया।
साक्षात्कारों में, उन्होंने अक्सर कहा है कि लंकेश पत्रिके की कमान संभालने का मतलब उनके लिए किसी मुश्किल कार्य को पूरा करना था और उन्होंने इसके संचालन को सुनिश्चित करने के लिए हर तरह के प्रयास किए थे। हालांकि, दो भाई बहनों के बीच संघर्ष शुरू हो गया और अंत में, 2005 में उन्हें अलग-अलग तरीके से इसका संपादन करना पड़ा। इसके बाद गौरी ने अपना साप्ताहिक- गौरी लंकेश पत्रिके शुरू किया, जिसमें उन्होंने 2017 में अपनी मृत्यु तक एक संपादक के रूप में कार्य किया। दोनों पत्रिकाएं बिना किसी विज्ञापन समर्थन के पी. लंकेश के आदर्शों के लिए यथार्थ पर आधारित रहीं।
राजनीतिक झुकाव और सक्रियता
अपनी मृत्यु के समय तक, गौरी लंकेश उदारवादी, वांमपंथियों में एक प्रमुख नाम बनी रही। वे “हिंदुत्व” राजनीति के साथ-साथ जाति व्यवस्था की भी कड़ी आलोचक थीं। उन्होंने हिंदू धर्म को “पदानुक्रम की एक प्रणाली” के रूप में माना क्योंकि यह धर्म महिलाओं को “द्वितीय श्रेणी के प्राणियों” के रूप में मानता है। उनके कई करीबी लोगों का मानना है कि लंकेश अक्सर आलोचना करते करते इतनी गहराई तक चली जाती थी, जिसके कारण वह कई लोगों की घृणा और सवाल उठाने का पात्र बनती थीं। लेकिन इन सब के बावजूद, वह घबराने वालों में से नहीं थी।
2006 में, उन्हें कर्नाटक के शिमोगा शहर में एक साहित्यिक बैठक के लिए आमंत्रित किया गया था, लेकिन आरएसएस ने उनके भाग लेने का विरोध किया। उन्हें अपने जीवन के कई पड़ावों पर नक्सलीवादी समर्थक कहा गया, लेकिन इन्होंने हमेशा ऐसे आरोपों से इन्कार किया। फरवरी 2005 में, उनके भाई, इंद्रजीत ने भी उन पर नक्सल समर्थक होने का आरोप लगाया था। बाद में उन्हें तत्कालीन कर्नाटक सरकार (कांग्रेस) द्वारा गठित समिति का सदस्य नामित किया गया, जिसने नक्सलियों को हिंसा छोड़ने और आत्मसमर्पण के लिए मनाने के प्रयास किए।
गौरी भाषण की आजादी की एक सशक्त समर्थक थी और उन्होंने खुद उत्साहपूर्वक ऐसा किया। हालांकि, यह उनके पिता की मृत्यु थी, जो उनके व्यवहार में एक स्पष्ट परिवर्तन लायी। 2000 से पहले, उन्होंने, सशक्त सक्रियता में शामिल हुए बिना, एक पेशेवर पत्रकार के रूप में कार्य किया। यह तब हुआ जब उन्होंने लंकेश पत्रिके के संपादकीय कार्यों (और शक्तियों) को संभाला, वे पूर्ण रुप से अपने पिता की तरह पत्रकारिता को संभाल रही थीं जो चीजों को बदलने और साहसपूर्वक बोलने की इच्छा रखते थे।
कई विशेषज्ञों ने गौरी लंकेश की हत्या को उनकी सक्रियता के जवाब के रूप में देखा, क्योंकि वे कई लोगों कि आंखों में खटकती थीं। लंकेश की यह राय जो लोकप्रिय नहीं थीं, उन्होंने इसे छिपाने के लिए एक मुद्दा नहीं बनने दिया। उनकी मृत्यु के बाद, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एक विरोध प्रदर्शन आयोजित किया गया था, जो प्रेस की स्वतंत्रता और संरक्षण की भी मांग कर रहा था। उनकी साप्ताहिक, गौरी लंकेश पत्रिके, हालांकि उनकी मृत्यु के बाद बंद और अनाथ हो गयी, लेकिन अपने ग्राहकों के लिए नानू गौरी (मैं गौरी) के नाम पर इसका पुन: संपादन शुरू कर दिया गया।
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गौरी लंकेश- उनके जीवन का सफरनामा
गौरी लंकेश की साप्ताहिक पत्रिका, जिसका नाम बदलकर अब न्याय पथ (न्याय का मार्ग) रखा गया है, उसे उनकी मृत्यु की पहली वर्षगांठ पर प्रकाशित करने की घोषणा की गई थी। उनकी हत्या की एक विशेष जांच दल द्वारा, पुलिस हिरासत में कथित हत्यारे के साथ, अपने अंतिम चरण में चल रही है। 25 वर्षीय परशुराम वाघमारे हत्यारे के बारे में कहा जाता है कि उनके सनातन संस्था और श्री राम सेने जैसे कट्टरपंथी संगठनों के साथ घनिष्ठ संबंध हैं। हत्या के बारे में स्वीकार करते हुए, उसने कहा कि उन्हें “हिंदुओं की भावनाओं को चोट पहुंचाने” के लिए लंकेश की हत्या करने का किसी के द्वारा निर्देश दिया गया था।
उनकी मृत्यु के बाद से जैसे जैसे महीने गुजरते हैं, गौरी लंकेश को कई लोगों द्वारा अपने अलग-अलग तरीकों से याद किया जाता है। उनकी बहन, कविता लंकेश का कहना है कि उन्हें याद है कि जब लोग किसी छोटी से छोटी समस्या का सामना करते हैं, तो वो भी लंकेश के लिए बदलाव ला रहे हैं और लंकेश हमेशा उनकी मदद करने के लिए तैयार रहेंगी। जबकि वह यह देखने के लिए उनके आस-पास नहीं हो सकती हैं, लेकिन गौरी लंकेश द्वारा विरोध की जो लहर लायी गई थी उसका लोग साहसपूर्वक समर्थन करते हैं जिसके लिए वे खड़ी थीं।