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भारत में बढ़ती मॉल संस्कृति और बदलती जीवन शैली

December 16, 2017
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भारत में बढ़ती मॉल संस्कृति

वर्तमान समय में, भारत के फुटकर क्षेत्र (छोटे बाजार आदि) जैसे ‘हाट’ और ‘साप्ताहिक बाज़ार ‘परिवर्तित होकर अत्यधिक आलीशान, कृत्रिम और सजीले शॉपिंग मॉलों के रूप में विकसित हो रहे हैं। कुछ साल पहले तक हमारी माँ घर के सामान-सौदे की खरीददारी के लिए ‘किराने की दुकानों’ पर जाया करती थीं, लेकिन वर्तमान समय में ‘किराने की दुकानों’ का स्थान ‘मॉलों’ ने ले लिया है। इन परिवर्तनों के बावजूद, कुछ ‘किराने की दुकानें’, अभी भी छोटे कस्बों, शहरों और यहाँ तक कि महानगरों और बड़े शहरों में देखी जा सकती हैं, जो कई परिवारों की दैनिक जरूरतों को पूरा करती हैं। हालांकि, परिवर्तन गतिशीलता से हो रहा है लेकिन निश्चित रूप से फुटकर स्टोर और मॉल, फुटकर उद्योगों को असंगठित से संगठित करने में निरन्तर अपना योगदान दे रहे हैं। अभी भी भारत में, कुल फुटकर क्षेत्र का मात्र 5%, एक फुटकर क्षेत्र को संगठित बनाये रखने में सहायक है।

मॉल ने खरीदारी के अनुभव को बदल दिया

मॉल केवल एक शॉपिंग का स्थान ही नहीं हैं, बल्कि एक ऐसी जगह है जिसने समाज में समूहीकरण और मनोरंजन को फिर से जीवित करने का कार्य किया है। बड़े- बड़े शॉपिंग मॉलों में आप एक ही छत के नीचे सब कुछ खरीद सकते हैं, चाहे वो ब्रांडेड कपड़े हो, किराने से संबंधित सामान हो, इलेक्ट्रॉनिक्स का सामान हो या जूते ही हों। बिना किसी संदेह के, हम यह कह सकते हैं कि मॉलों ने भारतीयों की खरीददारी के अनुभव को पूरी तरह से बदल दिया है। सूरज की तेज गर्मी में खरीददारी करने के स्थान पर अब लोग मॉलों के अन्दर एसी में रहकर शॉपिंग करना अधिक पसन्द करते हैं। युवा इन्हें एक प्रतिष्ठा के प्रतीक के रूप में देखते हैं। मॉलों में खरीदारी करने से, ग्राहकों की, बेहतर गुणवत्ता वाले ब्रांडेड उत्पादों को खरीदने की इच्छा पूरी हो जाती है, जिससे उन्हें संतुष्टि मिलती है। कुछ किशोर दिखावे के लिए भी मॉलों में जाते हैं। निश्चित रूप से शॉपिंग मॉलों ने भारत में एक नई संस्कृति को जन्म दिया है, जो कि खरीदारी से संबंधित हमारी पारंपरिक संस्कृति से बिल्कुल अलग है।

भारत, आय में वृद्धि होने के कारण बाजार के क्षेत्र में लोगों को कार्य करने के अत्यधिक अवसर प्रदान कर रहा है, जिससे मध्यम वर्ग के परिवारों की जीवन शैली में काफी सुधार और बदलाव आया है। 2001 में, भारत में सिर्फ तीन मॉल थे। 2007 में, जिनकी संख्या बढ़कर 343 हो गई। मई 2013 में की गई गणना के अनुसार, भारत में कुल 570 मॉल संचलित थे। बंगलौर में स्थित ‘असिपक कंसल्टिंग’ के आँकड़ों के मुताबिक भारत में, 2008 के मुकाबले, 2013 में मॉलों की संख्या दो गुनी हो गई थी।

मॉल के दो मुख्य प्रारूप हैं: –

  • मॉल
  • परिवारिक मनोरंजन केंद्र

परिवारिक मनोरंजन केंद्रों में आमतौर पर मनोरंजन अनुभाग, फूड कोर्ट (भोजनालय) और फुटकर बिक्री की दुकानें होती है।

भारत में मॉल कितने सफल हैं?

अक्सर यह देखा गया है कि बहुत से मॉल बड़ी उम्मीदों के साथ खोले जाते हैं लेकिन किन्हीं कारणों की वजह से उन्हें बंद करना पड़ जाता है। इन मॉलों में, पाम बीच रोड पर पूर्ण स्टॉप मॉल, नवी मुंबई की मरीन ड्राइव,  नवी मुंबई में गोल्ड सिटी मॉल, दिल्ली में स्टार सिटी मॉल और अन्य कई और अधिक नाम भी शामिल हैं। इसके अलावा कई मॉल ऐसे भी हैं, जहाँ 70 से 80 प्रतिशत जगह खाली पड़ी है। जिसका प्रमुख कारण, मॉल के निर्माण स्थान का गलत चयन है। विशेषज्ञ, किसी भी क्षेत्र में एक मॉल खोलने से पहले, उस क्षेत्र के बारे में संपूर्ण जाँच करने की सलाह देते हैं। किसी मॉल की सफलता वास्तव में उसके स्थान, जनसांख्यिकीय कारकों और स्थानीय आबादी के खर्च की शक्ति पर निर्भर करती है।

भारत में कुछ सबसे विशाल मॉल भी हैं: जिनमें फीनिक्स मार्केट सिटी मुंबई (मुंबई, महाराष्ट्र), मेट्रो जंक्शन मॉल (कल्याण, महाराष्ट्र), लुलु इंटरनेशनल शॉपिंग मॉल (कोच्चि, केरल), दि ग्रेट इंडिया प्लेस (नोएडा) और जेड स्क्वायर शॉपिंग मॉल (कानपुर, उत्तर प्रदेश) शामिल है।

भारत में बने सभी मॉलों ने उपभोक्ताओं की जीवन शैली को पूरी तरह से बदलने का कार्य किया है तथा फुटकर क्षेत्र को और अधिक संगठित करने में मदद की है।