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भारत कचरे को कैसे एक पर्यावरण के अनुकूल मॉडल में बदल सकता है?

January 31, 2018
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भारत कचरे को कैसे एक पर्यावरण के अनुकूल मॉडल में बदल सकता है?

कई लड़ाइयाँ होने के बावजूद भारत स्वतंत्रता के बाद अभी भी ब्रिटिशों से अपने ताज के लिए लड़ाई लड़ रहा है, सबसे अहम और सबसे गंभीर बात यह है कि हम में से अधिकांश भारतीयों को भी इस बारे में कोई जानकारी ही नहीं है। हम यहाँ पर अपशिष्ट उत्पादन और प्रबंधन की इस लड़ाई का जिक्र कर रहे हैं। इस संघर्ष के परिणाम और शेष पर्यावरण के अनुकूल रहने के लिए  हमारी प्रतिबद्धता अंत में हमारे अस्तित्व का निर्धारण करेगी। हाल ही के समाचार स्रोतों के मुताबिक, भारतीय कुल 1,00,000  मीट्रिक टन नगर पालिका से ठोस अपशिष्ट कचरा (एमएसडब्ल्यू) उत्पन्न करते हैं। अधिकांश अन्य देशों की तरह देखा जाए तो ये आँकड़े वार्षिक नहीं हैं। यह हमारे देश में दैनिक आधार पर उत्पन्न एम एस डब्ल्यू की मात्रा है। दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु जैसे बड़े शहरों में अलार्म या सीटी बजाकर घरों का कचरा वसूल करना प्रारंभ कर दिया गया है, जहाँ नगर निगम घरेलू अपशिष्ट निपटान और प्रदूषक गैसों के निर्माण जैसे कई मुद्दों से बचने और आग और बीमारियों के प्रकोप जैसे मुद्दों से निपटने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

अपशिष्ट से बिजली

लगभग एक साल पहले, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के कुछ शोधकर्ताओं ने एक ऐसी तकनीकि तैयार की है जिसके द्वारा घरों से उत्पन्न होने वाले कचरे का ई-कचरे के द्वारा समाधान किया जाता है और इसके साथ में ही इस प्रक्रिया में बिजली का उत्पादन भी किया जाता है। ई-कचरा इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और डिवाइसों जैसे कि टीवी स्क्रीन, मोबाइल फोन और कंप्यूटर जैसे उपकरणों के टूटे हुए टुकड़ों को संदर्भित करता है। निश्चित रूप से काम करने का यह तरीका प्रगति की ओर है, लेकिन इस योजना को देश की सरकारी एजेंसियों से कोई खरीदार या वित्तीय सहायता नहीं मिल पाई है। शोधकर्ताओं का कहना है कि “इस प्रकार की सस्ती, किफायती और पर्यावरण के अनुकूल इस प्रक्रिया को उपयुक्त विकास के साथ बड़े पैमाने पर उपयोग किया जा सकता है”।

खाद की पहल

खाद के लिए व्यक्तिगत और सामुदायिक प्रयास जैव कचरे के प्रबंधन के लिए सबसे सुरक्षित और सबसे प्रभावी तरीकों में से एक है। जैव कचरे का व्यक्तिगत स्तर पर अलगाव और कंपोस्टिंग किटों (जैव किटों) का सामान्य उपयोग छिलकों, भोजन और अन्य जैव कचरों के निपटान का एक उत्कृष्ट तरीका है। वैकल्पिक रूप से, जन समुदाय इस कचरे को किसी संसाधन द्वारा इकट्ठा करवा सकते हैं और बड़ी खाद मशीनों को खरीद सकते हैं, जबकि जैविक उद्यान या खेत को उपजाऊ बनाए रखने के लिए जैव कचरे से खाद बनाकर, इस खाद के उपयोग क साथ एक निर्धारित प्रयास किया जा सकता है। सरकार, खाद मशीनों और इस तरह की गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए सब्सिडी की शुरुआत की दिशा में काम कर सकती है।

जैव शौचालय

भारत के सबसे बड़े संकटों में से एक है स्वच्छता सुविधाओं का अभाव। जबकि लोगों को शौचालय बनवाने और उसका उपयोग को बढ़ावा देने और इसके अलावा खुले में शौच की प्रथा को खत्म करने का भी प्रयास किया जा रहा है। जैव शौचालयों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए समान रूप से एक प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। वर्तमान में भारत के ग्रामीण इलाकों में लगभग 12 प्रतिशत ऐसे शौचालयों का निर्माण किया जा रहा है जो जिनसे निकला हुआ अपशिष्ट जमीन में बने एक गड्ढे में जाता है। यह नाइट्रेट रिसाव के कारण भूजल स्रोतों के प्रदूषण के लिए बड़े पैमाने पर जिम्मेदार हैं। पारगम्य रिएक्टिव बैरियर (पीआरबी) शौचालय और बायो-डायजेस्ट वाले शौचालय पर्यावरण के अनुकूल विकल्प हैं, जिन पर अब हमें विचार करना चाहिए।

ग्रेवॉटर रीसाइक्लिंग

ग्रेवाटर एक अपशिष्ट जल है जो घरों से आता है, लेकिन मल कारकों द्वारा दूषित नहीं है  इसका मतलब यह है कि सिंक, स्नान, वर्षा, वाशिंग मशीन, पानी शुद्ध करने वाली मशीन, एयर कंडीशनर आदि से निकाले गए पानी को ग्रेवाटर कहा जाता है। ग्रेवाटर का संग्रह और समाधान एक आसान और पर्यावरण के अनुकूल प्रक्रिया है, लेकिन शौचालय की सफाई व्यवस्था के साथ इस पानी की निकासी की वजह से इनमें से ज्यादातर पानी खत्म हो जाता है। ग्रेवॉटर संग्रहण और उपचार प्रणालियां ताजे पानी की मांग को काफी हद तक कम कर देती हैं। हालांकि अधिकांश अन्य मामलों की तरह घरों में ग्रेवॉटर रीसाइक्लिंग के लिए जागरूकता और पहल हमारे देश में लगभग अस्तित्वहीन है।

रीसाइक्लिंग (पुनर्चक्रण) की पहल

पृथक्करण और पुनर्चक्रण, कचरे के निपटान के पर्यावरण के अनुकूल तरीकों में से एक सबसे सरल तरीका है। लेकिन दुर्भाग्य से, इतनी सरलता के बावजूद भी यह भारत में किसी भी महत्वपूर्ण तरीके से प्रचलन में नहीं है। काफी समय के बाद, कई जगहों पर कांच और कागज का पुनर्चक्रण शुरू किया जा रहा है, लेकिन पूरे देश के अधिकांश स्थानों पर पुनर्चक्रण के अधिक महत्वपूर्ण रूप (विशेष रूप से प्लास्टिक कचरे का पुनर्चक्रण) का अभ्यास नहीं किया जा रहा है।

पर्यावरण स्थायी रूप से समाज में बने रहने के लिए और आने वाली पीढ़ियों के लिए हमारे देश को एक बेहतर स्थान बनाने के लिए, यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम दृढ़ता से दूसरों को कचरे को पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों में बदलने का संकल्प लें और उन्हें इसके लिए प्रेरित करें। कचरे के प्रथक्करण और पुनर्चक्रण की एक आदत डालनी चाहिए, जो एमएसडब्लू के समाधान के लिए आवश्यक है। सरकार को इन तथ्यों को पूरा करने के लिए तुरंत बड़े पैमाने पर कार्रवाई करने की जरूरत है लेकिन इस तरह की कार्रवाई को व्यक्तिगत प्रयासों और सामुदायिक लक्ष्यों के साथ पूरा किया जाना चाहिए। तेजी से बढ़ रहे कचरे के ढेर, अस्तित्व और पर्यावरण जीविका के खिलाफ लड़ी जा रही इस लड़ाई को जीतने में जागरूकता महत्वपूर्ण निर्धारण कारक है। सभी भारतीयों और विशेष रूप से आने वाली पीढ़ियों को इसके लिए मानसिक रूप से तैयार किया जाना चाहिए।