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भारत के राष्ट्रपति का चुनाव कैसे होता है?

February 19, 2018
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भारत के राष्ट्रपति का चुनाव

भारत का राष्ट्रपति सशस्त्र बलों का सर्वोच्च कमांडर व राष्ट्र का अध्यक्ष होता है। हालांकि, प्रधानमंत्री की तुलना में, राष्ट्रपति केवल देश के न्याय संगत संवैधानिक अध्यक्ष होता है। जबकि कार्यकारी शक्तियों का संचालन प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति दोनों ही करते हैं। प्रधानमंत्री अपने कार्यों में भी मंत्री परिषद की मदद से अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हैं, जबकि राष्ट्रपति केवल आपातकाल की स्थिति को नियंत्रित करने में ही अपनी शक्तियों का प्रयोग करता है। भारत के संविधान में आपातकाल का स्पष्ट रूप से वर्णन किया गया है। परन्तु भारत की तुलना में संयुक्त राज्य अमेरिका का राष्ट्रपति,राष्ट्र व सरकार दोनों का अध्यक्ष होता है और अमेरिकी कांग्रेस के कानूनों को लागू करने व उनका निष्पादन करने के लिए उत्तरदायी होता है तथा सभी कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग भी करता है।

जब संयुक्त राज्य अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव आयोजित हो रहे होते हैं, तो लगभग सभी लोगों का ध्यान उसी तरफ केन्द्रित हो जाता है। आओ, भारत के राष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया पर भी एक नजर डालें, जिसे हम में से बहुत से लोग नही जान पाते हैं।

राष्ट्रपति कार्यालय के लिए पात्रता मापदंड

भारत के राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित होने से पहले उन्हें निम्नलिखित शर्तों का पालन करना आवश्यक है –

  • वह भारत का नागरिक हो।
  • उसकी उम्र 35 वर्ष या इससे अधिक होनी चाहिए।
  • वह लोकसभा का सदस्य बनने के योग्य हो।
  • वह संसद के किसी भी सदन का सदस्य न हो।
  • वह किसी भी राज्य के विधान सभा के किसी भी सदन का सदस्य न हो।
  • अगर वह किसी संसद के सदन या किसी राज्य की विधानसभा के किसी भी सदन का सदस्य है और राष्ट्रपति के रूप में चुने गया है, तो उसे भारत के राष्ट्रपति कार्यालय में कार्य भार को ग्रहण करने से पहले उस सदन के पद को छोडना पड़ता है।
  • भारत का राष्ट्रपति लाभ के लिए कोई अन्य पद नहीं रख सकता है।

कार्यकाल

  • भारत के राष्ट्रपति का कार्याकाल पद ग्रहण की तिथि से पाँच वर्ष की अवधि तक होता है।
  • भारतीय संविधान के लेख 56-57 के तहत, राष्ट्रपति पुर्निवाचन के लिए योग्य होता है।
  • राष्ट्रपति की कार्य अवधि कम भी हो सकती है, यदि वह अपने पद से इस्तीफा दे दें (उपराष्ट्रपति को संबोधित लिखित में) या फिर उसे भारतीय संविधान का उल्लंघन करने पर महाभियोग की प्रक्रिया द्वारा निलंबित कर दिया गया हो।

राष्ट्रपति का चुनाव

नामांकन

राष्ट्रपति के चुनाव की ओर पहला कदम उम्मीदवारों के नामांकन का होता है, जो निम्नलिखित तरीके से होता है –

  • प्रत्याशी के साथ कम से कम 50 प्रस्तावक मतदाताओं व 50 अनुमोदक मतदाताओं का समर्थन होना अवश्य है।
  • प्रत्येक मतदाता केवल एक उम्मीदवार का ही प्रस्तावक या सहायक हो सकता है।
  • उम्मीदवारों को भारतीय रिजर्व बैंक में 15,000 रुपये की एक जामानत राशि जमा करनी पड़ती है। यदि वह निर्धारित वोटों का 1/6 वां भाग भी प्राप्त नही कर पाते हैं, तो यह राशि सरकार द्वारा जब्त कर ली जाती है।

योग्य मतदाता

अच्छा बताइए, आप एक छात्र नेता का चुनाव कैसे करते हैं? आमतौर पर, जब उम्मीदवार केवल 2 या 3 होते हैं, तो यह चुनाव कक्षा के अन्य छात्रों द्वारा हाथ उठाकर या कभी-कभी मतपेटी में पर्ची डालकर सबसे लोकप्रिय उम्मीदवार का चयन किया जाता है। भारत के राष्ट्रपति का चुनाव भी लगभग इसी प्रकार से होते हैं, परन्तु उच्च स्तर पर।

संविधान के अनुच्छेद 54 में दिया गया है कि राष्ट्रपति को  निर्वाचन मंडल के तहत निर्वाचित करना चाहिए।  निर्वाचन मंडल में निहित होते हैं-

  • राज्य सभा के साथ-साथ लोक सभा के निर्वाचित सदस्य।
  • राज्यों की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य।
  • 70 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के तहत, राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और केंद्र शासित प्रदेश पांडिचेरी को भी निर्वाचन मंडल में शामिल किया गया है।

निर्वाचन मंडल के पूर्वोक्त सदस्य भारत के नागरिकों द्वारा ही चुने जाते हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि जब भारत के नागरिक स्वयं प्रत्यक्ष रूप से राष्ट्र के अध्यक्ष के चुनाव में शामिल नहीं हो पाते हैं, तो वे विधानसभा में अपनी पसंद के उम्मीदवार के लिए मतदान करके राष्ट्रपति के चयन में भी अप्रत्यक्ष रूप से योगदान करते हैं।

प्रक्रिया

भारत के राष्ट्रपति के चुनाव में एकल हस्तांतरणीय वोट विधि के माध्यम से आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली की व्यवस्था की जाती है। आनुपातिक प्रतिनिधित्व इस तथ्य को प्रकट करता है कि यह निर्वाचक मंडल, निर्वाचित सदस्य को पूर्ण रूप से समर्थन दे रहा है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि यदि एक समूह की कोई निश्चित संख्या एक विशेष पार्टी का समर्थन करती है, तो उस पार्टी को उसी संख्या में वोट मिलेंगे जितने उसके समर्थक हैं । एकल हस्तांतरणीय वोट विधि में वोट के अपव्यय को कम करने के लिए चुनाव जीत रहे उम्मीदवार के पक्ष में अन्य उम्मीदवारों के वोटों को स्थानांतरित करने की प्रक्रिया का भी प्रचलन है।

वोटों की संख्या को आवंटित करने की प्रक्रिया इस प्रकार है –

  • राज्य के विधायक को वोटों की निश्चित संख्या राज्य के आकार के आधार पर दी जाती है। अधिकृत वोटों की संख्या निम्नलिखित विधि से आती है –

वर्ष 1971 की जनगणना के आधार पर प्राप्त राज्य की कुल आबादी को विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों की संख्या से विभाजित किया जाता है, फिर इसके बाद इसे 1000 से विभाजित करके, अधिकृत वोटों की संख्या ज्ञात की जाती है। यदि यह संख्या 500 तक पहुँच जाती है, तो प्रत्येक सदस्य को कुछ अतिरिक्त वोट भी आवंटित किये जाते हैं।

  • लोकसभा और राज्यसभा के निर्वाचित सदस्यों के लिए वोटों के आवंटन की विधि निम्न प्रकार है:

वर्ष 1971 में हुई आबादी जनगणना के आधार पर प्राप्त सभी राज्यों के वोटों की कुल संख्या को संसद के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से विभाजित किया जाता है।

गुप्त मतदान पद्धति

इस विधि में मतदान एक गुप्त मत पत्र द्वारा किया जाता है। इस बैलेट पेपर में दो कॉलम होते हैं, जिसमें एक पर उम्मीदवारों का नाम और दूसरा रिक्त रहता है, जहाँ मतदाता अपने उम्मीदवार के पक्ष को दर्शाते हैं। इसमें भी वोटों की गणना सभी अन्य चुनाव प्रक्रियाओं की तरह ही होती है और 50% से अधिक वोटों को प्राप्त करने वाले उम्मीदवार को भारत के राष्ट्रपति के रूप में चुन लिया जाता है। हालांकि, यदि विजेता स्पष्ट रूप से घोषित नही हो पाते हैं, तो निम्न प्रक्रिया का पालन किया जाता है –

  • उन्मूलन और निवारण के आधार पर गिनती फिर से शुरू की जाती है।
  • निवारण में कम से कम वोटों वाले उम्मीदवारों को शामिल किया जाता है और उनके वोटों को दूसरों के बीच समान रूप से वितरित कर दिया जाता हैं;
  • जब तक एक उम्मीदवार 50% से अधिक वोट प्राप्त करके स्पष्ट रूप से विजयी घोषित नहीं हो जाता, तब तक निवारण की प्रक्रिया चलती रहती है।

गुप्त मतदान पद्धति का आयोजन विरोधी दल-बदल कानून के तहत नहीं हुआ है, इसमें मतदाता अपने विवेकानुसार किसी भी पार्टी को वोट दे सकते हैं।

आपातकाल

जब भारत का राष्ट्रपति अस्वस्थ हो जाता है या ऐसी ही कुछ अन्य परिस्थितियाँ उत्पन्न जाती हैं, तो उस समय एक राष्ट्रपति के कर्तव्यों का पालन उप-राष्ट्रपति को करना पड़ता है। वह इन कार्यों को तब तक करता है, जब तक एक नये राष्ट्रपति की नियुक्ति नहीं हो जाती। भारत के संविधान के मुताबिक, देश एक दिन भी राष्ट्रपति के शासन के बिना नहीं चल सकता। उन दुर्लभ परिस्थितियों में, जब राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति दोनों ही अनुपस्थित होते हैं, तो भारत के मुख्य न्यायाधीश को,  राष्ट्रपति के अगले चुनाव तक उनका पद सभांलना पड़ता है। सन् 1969 में एक ऐसी ही स्थिति बन गई थी, जब भारत के मुख्य न्यायाधीश श्री एम हिदायतुल्ला को राष्ट्रपति के पद पर एक महीने तक कार्यरत रहना पड़ा था।