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मेट्रो सिटीज में महिलाएं कितनी सुरक्षित हैं?

October 4, 2017
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मेट्रो सिटी में महिलाएं कितनी सुरक्षित हैं?

चूंकि प्रत्येक सिक्के के दो पहलू होते हैं, उसी प्रकार भारतीय महानगरों में रहने वाले लोग अपने फायदे और नुकसान के बारे मे सोचते हैं। महानगर मुख्य रूप से दूरदराज के क्षेत्रों को व्यवहार्यता प्रदान करते हैं। हालांकि, अपने स्थान पर सुरक्षित रूप से पहुँचना काफी चुनौतीपूर्ण कार्य होता है। भारतीय महानगरों में रहने वाले लोगों को असंख्य चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

भारतीय महानगरों में रहने वाले लोग न केवल रात के दौरान, बल्कि दिन में भी असुरक्षित हैं। यहाँ अनगिनत ऐसे उदाहरण हैं, जहाँ दिन के दौरान लोगों को धमकिया दी गई और कोई भी उनके बचाव में नहीं आया। न केवल बड़े पैमाने पर औधोगिकीकरण और शहरीकरण के साथ महानगर विकास की सीढ़ी पर अग्रसर है, बल्कि इस आधुनिकता ने मनुष्य को मानवता से वंचित किया है। आज के समय में चाहे वह आदमी, महिलाएं, बच्चें, या वरिष्ठ नागरिक हों, कोई भी सुरक्षित नहीं हैं। महानगरों में सुरक्षा एक सपने की भाँति प्रतीत होती है। अधिकारियों का लापरवाही पूर्ण व्यवहार सुरक्षा उपायों के संकटों को बढ़ावा दे रहा है।

चूँकि काफी समय से महिलाओं को अधीनस्थ किया गया है। महिलाओं के साथ छेड़खानी, बलात्कार, एसिड-हमलों की हालिया घटनाएं, उनके संबंधित परिवारों की चिंता बढ़ाने के लिये प्रर्याप्त हैं। भारत की अपराधिक राजधानी दिल्ली में महिलाओं की सुरक्षा काफी कमजोर है। गलत मानसिकता महिलाओं के खिलाफ अपराध की बुनियादी जड़ है, जिसके कारण महिलाओं को भेदभाव का शिकार होना पड़ता है। जिसके चलते महिलाएं दिन या रात, घर या बाहर, चलते हुए या किसी सार्वजनिक परिवहन में भी असुरक्षित हैं और असंख्य कारक उन्हें कमजोर बनाने में योगदान दे रहे हैं। जनता की सुरक्षा और सलामती लोगों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह नागरिकों की आर्थिक समृद्धि और जीवन की गुणवत्ता के लिए महत्वपूर्ण होती है। लोगों को सुरक्षा उपायों को ध्यान में रखना चाहिए और इनका विस्तार किया जाना चाहिए। नागरिकों की सुरक्षा विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का बुनियादी अधिकार है।

आईडीएफसी इंस्टीट्यूट द्वारा आयोजित सुरक्षा रुझान और रिपोर्टिंग ऑफ क्राइम (एसएटीएआरसी) के सर्वेक्षण के अनुसार, दिल्ली के लगभग 87% घरों की चिंता यह है कि अगर महिला अकेले ही रात्रि में नौ बजे के समय बाहर हो। आईडीएफसी इंस्टीट्यूट द्वारा बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली और मुंबई में 20,597 घरों का सर्वेक्षण किया गया। इस सर्वेक्षण में दिल्ली के 87% परिवारों की चिंता का कारण, महिलाओं का रात्रि 9 बजे के बाद घर से बाहर होना बताया गया है। हालांकि, चिंता का यह प्रतिशत दिल्ली की अपेक्षाकृत अन्य शहरों जैसे बेंगलुरु में 54%, चेन्नई में 48% और मुंबई में 30% है। निम्नलिखित से चार – अपराध की घटनाएं, पुलिस को रिपोर्ट, पुलिस की राय और सुरक्षा धारणाओं से संबंधित प्रश्न पूछे गए। मनोरंजन और भारत की वाणिज्यिक राजधानी मुंबई में अगर कोई महिला घर से रात्रि के नौ बजे बाहर निकलती है, तो वहाँ उसके सुरक्षा उपायों से संबंधित मामले में कम चिंता होती है। हालांकि, चेन्नई में पुरुषों और महिलाओं दोनों को समान रूप से सुरक्षित माना जाता है। यह आँकड़े एक बड़ी छवि का व्याख्यान करते हैं। यह सर्वे केवल महिलाओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह पुरुषों के लिए भी काफी मायने रखता है।

सुरक्षा रुझान और रिपोर्टिंग ऑफ क्राइम (एसएटीएआरसी) ने चार शहरों – बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली और मुंबई को खुद को सुरक्षित रखने के लिए अपनाए गए व्यवहारिक बदलावों के साथ-साथ, घरों की सुरक्षा की धारणा पर भी प्रकाश डाला है। आईडीएफसी इंस्टीट्यूट्स ‘सेफ्टी ट्रेंड एंड रिपोर्टिंग ऑफ क्राइम (एसएटीएआरसी) के अनुसार, अगर पुरुष अकेले रात्रि 11:00 बजे के समय घर से बाहर जाते हैं, तो दिल्ली में 95%, बेंगलुरु में 83%, चेन्नई में 84% और मुंबई में 60% घर के लोग चिंतित होते हैं।