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प्रदूषण से होने वाली मौतों में भारत सबसे आगे

October 24, 2017
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प्रदूषण से होने वाली मौतों में भारत सबसे आगे

प्रत्येक वर्ष दीवाली का त्यौहार बहुत ही उत्साह और जोश के साथ मनाया जाता है। दीवाली का त्यौहार हानिकारक प्रदूषण के साथ-साथ बड़े पैमाने पर श्वास लेने में दिक्कत करने वाले धुएं के साथ आता है। वर्ष 2016 में, धुएं से श्वास लेने में मुश्किल होने के कारण राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के कई विद्यालयों के साथ-साथ कारखानों और निर्माण स्थलों को कुछ दिनों के लिए बंद करना पड़ा था। जिसके चलते इस साल सुप्रीम कोर्ट ने, दिल्ली में पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया। स्थिति की गंभीरता और प्रदूषण के खतरनाक प्रभाव, अभी तक अपनी पहली जैसी अवस्था में नहीं आए हैं, ऐसी खबरें अभी भी सुर्खियों में बनी हुई है।

लैंसेट कमीशन की रिपोर्ट

लैंसेट कमीशन द्वारा जारी नवीनतम रिपोर्ट प्रदूषण और स्वास्थ्य के खतरे की सूचना देती है। यह रिपोर्ट एक हफ्ते पहले जारी की गई थी और इस रिपोर्ट में कहा गया था कि पूरे विश्व में प्रदूषण से होने वाली मौतों में भारत का स्थान शीर्ष पर है। वर्ष 2015 में देश में लगभग 2.51 मिलियन लोगों की मृत्यु प्रदूषण और उससे होने वाले नतीजों के कारण हुई थी। इस प्रकार हमारा देश, पहले दुनियाभर में प्रदूषण से होने वाली मौतों की संख्या में शीर्ष स्थान पर रहने वाले चीन से भी आगे हो गया है। वर्ष 2015 में, प्रदूषण के कारण चीन में 1.8 मिलियन लोगो की मृत्यु हुई थी। पाकिस्तान, बांग्लादेश और रशिया अन्य ऐसे एशियाई देश हैं, जो प्रदूषण के कारण होने वाली मौतों की अत्यधिक संख्या का रिकॉर्ड रखते हैं।

लैंसेट कमीशन की रिपोर्ट एक प्रकार से राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और मानव जीवन के मूल्य व प्रदूषण के विस्तार का विश्लेषण करती है।

भारत में प्रदूषण से होने वाली मौतों का स्पष्टीकरण

प्रदूषण से होने वाली मौतों की संख्या के संदर्भ में, भारत दुनियाभर में सबसे ज्यादा प्रभावित देश है। लैंसेट कमीशन की रिपोर्ट ने दावा किया है कि वर्ष 2015 में घरों में जलाए जाने वाले ठोस ईंधन से होने वाला वायु प्रदूषण, देश के लगभग 0.97 मिलियन लोगों की मौत का कारण बना था। उसी वर्ष एकबार फिर से देश में व्यापक वायु प्रदूषण के कारण लगभग 1.09 मिलियन लोग अपनी जान गवां बैठे थे।

हालाँकि, भारत को पर्यावरण के सबसे घातक प्रदूषण, वायु प्रदूषण का ही एकमात्र खतरा नहीं है। वर्ष 2015 में दूषित पेयजल का उपयोग करने के कारण भारत में लगभग 0.5 मिलियन लोगों की मौत हुई थी और इसी वर्ष असुरक्षित स्वच्छता के कारण लगभग 0.32 मिलियन मौतें हुईं। गरीब लोगों की सार्वजनिक या निजी शौचालयों और स्वच्छता तक पहुँच में कमी, विशेष रूप से देश के ग्रामीण हिस्सों के मुख्य कारणों में से एक है।

प्रदूषण की वजह से लगभग 70 प्रतिशत मौतें गैर-संचारी रोगों के कारण हुई हैं। फेफड़े का कैंसर, उच्च रक्तचाप और गुर्दे से संबंधित रोग प्रदूषण की वजह से सबसे ज्यादा होने वाले रोगों में से एक हैं।

अर्थव्यवस्था से प्रदूषण का मूल्य कहीं ज्यादा है। वायु प्रदूषण से होने वाली उत्पादकता हानि के कारण देश अपने जीडीपी कमी के साथ 0.32 से 0.40 के स्तर पर आ गया है।

वैश्विक आँकड़े

दुनिया भर में, समय से पहले लगभग 9 मिलियन मौतें प्रदूषण और विषाक्त उत्सर्जन संबंधी रोगों के कारण होती हैं। प्रदूषण के कारण दुनिया भर में होने वाली मौतों की संख्या में लगभग 16 प्रतिशत तक वृद्धि देखने को मिल सकती है। विशेष रूप से, इन मौतों में वायु प्रदूषण ने अपनी प्रमुख भूमिका निभाई है।

मलेरिया, एड्स और टीबी (ट्यूबरक्लोसिस) इन तीनों को एक साथ जोड़ने पर जितनी मौतें हुई हैं, उससे तीन गुना अधिक मौतें प्रदूषण से होने वाले रोगों के कारण हुई हैं। दुनियाभर की हिंसा और युद्ध से होने वाली मौतों की तुलना में, लगभग 15 गुना मौतें प्रदूषण के कारण होती हैं। सभी प्राकृतिक आपदाओं से भी बड़ा खतरा प्रदूषण को माना जाता है। रिपोर्ट का दावा है कि प्रदूषण की तुलना में धूम्रपान न के बराबर घातक है। मध्य और निम्न आय श्रेणियों में आने वाले देशों में करीब 92 प्रतिशत मौतें प्रदूषण से संबंधित रोगों के कारण होती हैं।

मध्य आय वाले देश, हर साल प्रदूषण और उससे संबंधित बीमारियों से निपटने के लिए अपनी आय का 7 प्रतिशत केवल स्वास्थ्य देखभाल में खर्च करते हैं। यदि दयनीय स्थित वाले प्रदूषण से प्रभावित देश जल्द ही एक उचित कार्य योजना को क्रियान्वित नहीं करते हैं, तो यह लागत नाटकीय रूप से बढ़ जाएगी।

कार्रवाई का समय

लैंसट कमीशन की रिपोर्ट के निर्माता ब्रूस लांफेयर ने कहा है कि “प्रदूषण, मानव जाति को पीड़ित करने के साथ-साथ कई बीमारियों और विकारों की जड़ है और इसे पूरी तरह से रोका जा सकता है।” जहाँ विशेष रूप से भारत में प्रदूषण का बोलबाला होने के कारण, संकट निकटस्थ प्रतीत हो रहा है।

रिपोर्ट के खुलासे में यह एक बड़ी चिंता के रूप में उभरकर सामने आया है, तथ्य यह है कि भारत सरकार अपने जाँच परिणामों पर ज्यादा विश्वास नहीं रखती है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि इस तरह के वैश्विक अध्ययनों में वायु प्रदूषण को होने वाली मौतों की वजह बताना कोई निर्णायक प्रमाण नहीं है और अगर है भी तो वह बहुत भ्रामक है। सरकार के पास यह गंभीरता से पर्यावरण प्रदूषण और शिल्प विधि-निर्माण से पैदा होने वाले खतरे का विरोध करने का बिलकुल उचित समय है। जागरूकता और कार्रवाई दोनों ऐसे हथियार हैं, जिन्हे भारतीयों को प्रदूषण से मुकाबला करने और वायु, जल एवं मृदा प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारी पर नियंत्रण पाने के लिए अपनाने चाहिए।