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किसका है कावेरी नदी का पानी

June 11, 2018
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किसका है कावेरी नदी का पानी

भारत में कर्नाटक और तमिलनाडु राज्य कावेरी नदी के पानी के बंटवारे को लेकर लड़ाई कर रहे हैं, जबकि भारत में कई अन्य सामाजिक समस्याओं को हल करने की जरूरत है। नदियाँ, इन दोनों राज्यों के बीच बिना जाने और अनजाने में बह रही है क्योंकि न तो ईश्वर और न ही पानी किसी भी तरह की सीमा या अंतर को जानता है। ईश्वर को अपनी बनाई हुई सृष्टि को देखकर आश्चर्यचकित होना चाहिए और सोचने वाली बात है कि एक तरफ यही भारतीय पानी की पूजा करते हैं और दूसरी तरफ पानी का साझा न करने के लिए एक-दूसरे से लड़ाई करते हैं। यह पानी का संघर्ष दो विवादास्पद समझौतों का परिणाम है जिस समझौते पर वर्ष 1892 और 1924 में हस्ताक्षर हुए थे। भारत के अधिकांश विवादों की तरह, यह ब्रिटिश शासन में शुरू हुआ था। उस समय यह जल विवाद मैसूर और मद्रास प्रांत के बीच था और इतने सालों के बाद भी यह विवाद हमेशा सुर्खियों में बना रहा है। वर्तमान में, दोनों राज्य (कर्नाटक और तमिलनाडु) विभिन्न व्यावसायिक और दैनिक जरूरतों के लिए कावेरी नदी के जल पर निर्भर हैं। बारिश के मौसम में नदी में प्रचुर मात्रा में पानी मिलता है। लेकिन जैसे जैसे जनसंख्या बढ़ रही है वैसे वैसे पानी की कमी होने लगी है और आखिरकार पानी के बंटवारे को लेकर संघर्ष शुरू हो गया। जब वर्षा कम होती है, तो यह विवाद और अधिक बढ़ जाता है।

नदी का बेसिन तमिलनाडु राज्य में है जबकि पानी की मात्रा कर्नाटक में अधिक है, इसलिए भारत सरकार ने तमिलनाडु राज्य द्वारा अपने पानी का अधिक उपयोग करने का निर्देश दिया है। लेकिन दूसरी तरफ कर्नाटक राज्य के लोगों का तर्क है कि उनके राज्य द्वारा पानी का योगदान अधिक है इसलिए उन्हें अधिक पानी का उपयोग करने का अधिकार है। लेकिन हर बार पानी का उपयोग करने का निर्णय केंद्र और राज्य में सत्ताधारी पार्टी पर निर्भर होता है। एक उदाहरण के लिए, 2002 में फैसला तमिलनाडु के पक्ष में था क्योंकि उस समय कर्नाटक में भाजपा की सरकार और केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी। सिर्फ इतना ही नहीं, हालांकि इस जल विवाद में केरल और पांडिचेरी बहुत छोटे स्तर पर शामिल हैं क्योंकि ये दोनों राज्य कुछ हद तक कावेरी नदी के पानी पर भी निर्भर हैं। कावेरी नदी पर दो प्रमुख बांध, मंड्या (कर्नाटक) में कृष्णा राजा सागर बांध और और सालेम (तमिलनाडु) में मेट्‍टूर बांध के बीच वाद-विवाद है। इन दो बांधों में संग्रहीत कुल पानी की तुलना में दोनों राज्यों में पानी की आवश्यकता 57 प्रतिशत अधिक है।

कावेरी जल विवाद कभी न खत्म होने वाला प्रतीत हो रहा है और कभी-कभी यह विवाद अत्याधिक हिंसक मोड़ ले लेता है। वर्ष 1991 में, इस विवाद से दंगे हुए जिसमें लगभग 18 लोगों की मृत्यु हो गई। इस विवाद के दौरान राष्ट्रीय राजमार्ग और परिवहन के अन्य साधनों के आवागमन को अवरुद्ध करना आम बात है। विपरीत राज्यों के लोग प्रवासियों पर हमला करते हैं इसलिए लोग डर के कारण घर से बाहर नहीं निकलते हैं।

कावेरी नदी जल विवाद का समाधान पूरी स्थिति को ध्यान में रखकर करना चाहिए, पानी का उपयोग किस तरह से किया जा रहा है परिणामों को सोचने के बिना किसी के बिंदु को साबित करने के बजाय यह देखना चाहिए कि किस राज्य को पानी की आवश्यकता अधिक है। वोट पाने के लिए राजनीतिक दल इस मुद्दे का पूरा इस्तेमाल करते हैं। दिन-प्रतिदिन पानी की समस्या सामना करने वाले राजनीतिक नेता नहीं बल्कि आम जनता है, क्योंकि राजनीतिक नेता कभी भी एक सेकंड के लिए पानी की कमी महसूस नहीं करते हैं। लेकिन वास्तव में राज्यों में किसान और आम आदमी पानी की कमी से जूझ रहे हैं क्योंकि ये खेती और अपनी आजीविका के लिए पानी पर पूरी तरह से निर्भर है। इसलिए समाधान खोजने के दौरान नदी की सीमाओं पर ध्यान केन्द्रित करने के बजाए वास्तविक पीड़ितों की पहचान कर उनकी दिक्कतों को दूर करना चाहिए। राजनेताओं को इस विवाद को वोट-विनिंग एजेंडा के रूप में इस्तेमाल करना बंद करना होगा लेकिन इस मुद्दे पर कुछ गंभीर विचार-विमर्श दिए जाने चाहिए क्योंकि इस पर काम करने के बाद कई अन्य समस्याएं भी हल हो सकती हैं। वर्तमान में हम केवल मुद्दों को इक्कठा कर रहे हैं और निश्चित रूप से एक समय आएगा जब हम इतनी सारी चीजों के बोझ के तले दबे होगें कि हमारे पास किसी भी समस्या से निपटने के लिए कोई भी समाधान नहीं होगा।

हमें यह सोचना बंद करना होगा कि इस पानी पर सिर्फ मेरा अधिकार है और मैं इसे किसी के साथ साझा नहीं कर सकता हूँ। प्रत्येक समस्या का समाधान शांतिपूर्ण होना चाहिए क्योंकि गंभीरता से और पक्के इरादे से प्रत्येक समस्या का हल निकलता है। हम अगर वास्तव में इस समस्या को हल करना चाहते हैं, तो हमें पहल करने और पानी को बर्बाद करने के बजाय व्यक्तिगत स्तर पर इसको संरक्षित करना शुरू करना चाहिए। केवल कावेरी नदी के पानी पर निर्भर रहने के बजाए, वर्षा जल संचयन के लिए बड़े स्तर पर प्रयास किया जाने चाहिए। पानी के औद्योगिकी उपयोग को नियंत्रित किया जा सकता है और उद्योग पुनर्नवीनीकरण (रीसाइक्लिंग) वाले पानी से बचे रह सकते हैं इसके लिए उन्हें बाध्य करना चाहिए। हालांकि कई शहरों में ऐसे समाधान लागू किए जा रहे हैं लेकिन हमें अपने दृष्टिकोण में बहुत व्यावहारिक होना पड़ेगा।

इन दोनों राज्यों में कई छोटे झीलें और नदियां हुआ करती थीं जो अब उभरते उद्योगों के कारण अपना अस्तित्व खो चुकी हैं। जब आवश्यकता पड़ती थी तो यही पानी की आपूर्ति का स्त्रोत होती थीं लेकिन अब ऐसा नहीं है, क्योंकि कावेरी नदी के पानी पर हमारी निर्भरता कई गुना बढ़ गई है। इन झीलों और नदियों को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जाना चाहिए ताकि इनका पानी के वैकल्पिक स्रोत के रूप में इस्तेमाल किया जा सके। इतना ही नहीं, देश भर में कई और अंतर-जल विवाद हैं। हमें बढ़ती हुई पानी की कमी की समस्या के बारे में और अधिक गंभीरता से सोचना चाहिए अन्यथा भविष्य में हमें पीने के लिए भी पानी नहीं मिलेगा। किसानों को शांत करने के लिए एक अस्थायी समाधान कुछ भी नहीं करेगा क्योंकि समस्या अभी भी ज्यों कि त्यों बनी हुयी है। समाधान खोजने के लिए आपूर्ति-पक्ष और मांग-पक्ष दोनों की जाँच की जानी चाहिए। इस समाधान का हल प्राप्त करने के लिए कृषि वैज्ञानिक, किसान, राजनेता से लेकर नौकरशाहों तक और आम आदमी सभी को शामिल करें। दोनों राज्यों की कृषि अर्थव्यवस्था को फिर से परिभाषित किया जाना चाहिए और न केवल पानी की कमी बल्कि भविष्य के परिदृश्य को बदलने के लिए जलवायु और वर्षा की कमी के कारण को भी जानना चाहिए। किसानों को ऐसी फसलें बोने पर जोर देना चाहिए जिसमें कम से कम पानी लगे और साथ ही साथ पौष्टिक मात्रा अधिक हो।

किसी भी समस्या का हल ढूंढने से पहले अपनी मानसिकता में बदलाव करना चाहिए और फिर इसके मूल स्तर के कारण को खोजने के लिए समस्या का विश्लेषण किया जाना चाहिए।

साराँश
लेख का नाम – किसका है कावेरी नदी का पानी

लेखिका – रमनदीप कौर

विवरण –  भारत में कर्नाटक और तमिलनाडु राज्य कावेरी (कावेरी) नदी के पानी के लिए लड़ रहे हैं। यह मामला सालों से चलता आ रहा है और फिर भी, दोनों राज्यों की सरकारें किसी भी स्थायी समाधान को खोजने में सक्षम नहीं है।

 

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