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महाशिवरात्रि 2018 – तिथि, कथा और कैसे रखें उपवास

February 7, 2018
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महा शिवरात्रि 2018 – तिथि, कथा और कैसे रखें उपवास

उत्तर भारतीय पंचांग के अनुसार महाशिवरात्रि या “शिव की महान रात” का पर्व फाल्गुन माह में मनाया जाता है। लेकिन दक्षिण भारतीय पंचांग के अनुसार, यह त्योहार माघ के महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, महाशिवरात्रि का पर्व 13 फरवरी को मनाया जाता है। हालांकि हर चंद्र महीने के चौदहवें दिन या अमावस्या के एक दिन पहले के दिन को शिवरात्रि के रूप में जाना जाता है, लेकिन फरवरी के महीने में पड़ने वाला यह त्योहार महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। शिवरात्रि का त्योहार बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि यह “अंधकार और अज्ञानता पर नियंत्रण पाने” वाले त्योहार के रूप में माना जाता है।

यह पर्व भगवान शिव, जो कि प्रथम आदिगुरु हैं तथा सत्य और परमानंद के जनक हैं, को समर्पित है। यह वही हैं जिनसे ज्ञान की उत्पत्ति हुई। कुछ किंवदंतियों के अनुसार, भगवान शिव को ब्रह्मांड के रचयिता और विध्वंसक के रूप में भी जाना जाता है।

कैसे रखें शिवरात्रि के दिन उपवास?

महाशिवरात्रि व्रत या शिवरात्रि व्रतम् भक्तों द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रखा जाता है। पूरे दिन भोजन को त्यागकर रात में भगवान शिव की उपासना करने के बाद भक्त भोजन ग्रहण करते हैं। भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए हिंदू लोग इस उपवास को बड़ी निष्ठा और दृढ़ संकल्प से रखते हैं। बेल पत्र (बेल के पत्ते), धतूरा, पान और सुपारी आदि चीजें भगवान को समर्पित की जाती हैं, क्योंकि ये चीजें भगवान शिव की पसंदीदा मानी जाती हैं। शिव लिंग का अभिषेक जल और दूध से कराया जाता है।

उस दिन के सभी चार प्रहरों में भगवान की उपासना की जाती है, लेकिन आमतौर पर शिवरात्रि की मुख्य उपासना रात्रि में ही की जाती है, क्योंकि शिवरात्रि रात में ही मनाई जाती है। ऐसा माना जाता है कि इस रात को पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध की स्थिति एक विशेष प्रकार से होने के कारण इंसानों में ऊर्जा का प्राकृतिक विस्तार होता है। ऊर्जा के इस प्राकृतिक उदय को अपने शरीर में प्राप्त करने के लिए ध्यान की मुद्रा में बैठना चाहिए।

आप पूरे दिन उपवास रख सकते हैं और सूर्यास्त के बाद भोजन कर सकते हैं या अपनी पसंद के अनुसार फल और दूध का उपभोग कर सकते हैं ।

महाशिवरात्रि के बारे में कथाएं

महाशिवरात्रि के त्यौहार से संबधित कई किंवदंतियां हैं। इनमें से एक उत्तर भारत में सबसे प्रमुख शिव और पार्वती का विवाह है। यह माना जाता है कि भगवान शिव और पार्वती का विवाह इसी दिन हुआ था और उनके विवाह की रात्रि को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। मंदिरों को बहुत खूबसूरती से सजाया जाता है और भगवान को विभिन्न प्रकार की मिठाइयों और खाद्य पदार्थों के चढ़ावे चढ़ाए जाते हैं। अविवाहित लड़कियां भी व्रत रखती हैं और भगवान शिव से आशीर्वाद के रूप में उन्हीं के समान पति पाने के लिए प्रार्थना करती हैं।

एक और लोकप्रिय मान्यता के रूप में “नीलकंठ” की कथा भी महा शिवरात्रि से जुड़ी है। इस कथा के अनुसार, एक बार देवताओं और राक्षसों के बीच एक युद्ध हुआ। वे दोनों अमृत का सेवन करना चाहते थे, लेकिन विष को ग्रहण किए बिना, अमृत को प्राप्त नहीं किया जा सकता था। देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध के कारण हर जगह त्राहि-त्राहि मच गई। इसलिए ब्रह्मांड को विनाश से बचाने के लिए भगवान शिव ने उस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया। भगवान शिव को उस विष के दुष्प्रभाव से बचाने के लिए, पार्वती और अन्य देवता सारी रात जागते रहे और विष के हानिकारक प्रभावों से बचाने के लिए भगवान शिव को भी रात भर जगाते रहे। पूरी रात किसी ने कुछ भी नहीं खाया – पिया। भगवान शिव बच गए लेकिन उनका कंठ(गला) नीला हो गया। तभी से वह “नीलकंठ” के रूप में माने जाते है और इस रात्रि को ‘महाशिवरात्रि’ के रूप में मनाया जाता है। लोग भगवान शिव के बलिदान के प्रति पूरे दिन उपवास करते हुए प्रेम और भक्ति के साथ स्वादिष्ट व्यंजनों को चढ़ाकर इस रात्रि के अवसर का जश्न मनाते हैं।

किंवदंतियों के अनुसार, भगवान शिव सबसे शक्तिशाली देवता हैं। भगवान शिव में सच्चाई, शांति, भोलेपन और सौंदर्य आदि सभी गुण समाहित हैं।

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