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मूवी रिव्यू – हिचकी

March 24, 2018
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मूवी रिव्यू - हिचकी

कलाकार: रानी मुखर्जी, आसिफ बसरा

निर्देशक: सिद्धार्थ पी. मल्होत्रा

प्रोड्यूसर: आदित्य चोपड़ा, मनीष शर्मा

प्रोडक्शन हाउस: यश राज फिल्म्स

लेखक: सिद्धार्थ पी मल्होत्रा, अंकुर चौधरी

आधारित: फ्रन्ट ऑफ द क्लास

सिनेमेट्रोग्राफी: अविनाश अरुण

संगीत: हितेश सोनिक, जसलीन रॉयल

शैली: ड्रामा, कॉमेडी

कथानक: प्रसिद्ध अभिनेत्री रानी मुखर्जी की यह फिल्म हिचकी, अमेरिकी फिल्म “फ्रन्ट ऑफ द क्लास” का रीमेक है। फ्रन्ट ऑफ द क्लास फिल्म ब्रैड कोहेन पर और उनकी किताब पर आधारित है, जो एक शिक्षक थे। इस फिल्म में, रानी टॉरेट सिंड्रोम से पीड़ित है, जो कि एक न्यूरो- मनोचिकित्सीय विकार है, जिसके परिणामस्वरूप शरीर अचानक कई अजीब गतिविधियों का संचालन करता है। यह फिल्म एक महत्वाकांक्षी शिक्षिका की कहानी का बखान करती है, जो कई असमानताओं का सामना करती है और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद एक हार न मानने वाली शिक्षिका के रूप में उभर कर सामने आती है। शुरुआती दृश्यों में, जब रानी (नैना माथुर) अर्थ और वाक-पटुता के साथ बच्चों को समझाती हैं, तो उन्हें न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर (तंत्रिका संबंधी विकार) के कारण शोर-गुल का सामना करना पड़ता है, लेकिन वह एक साक्षात्कार का सामना करते हुए अंततः सब व्यवस्थित करने में कामयाब हो जाती हैं। 5 साल में 18 असफल प्रयासों के बाद, वह मुंबई के सबसे प्रतिष्ठित स्कूलों में से एक में शिक्षिका के पद पर काम करती हैं। रानी को स्कूल में बड़े पैमाने पर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, क्योंकि उन्हें विद्यालय के 14 सबसे कुख्यात छात्रों को प्रशिक्षित करने की जिम्मेदारी दी जाती है। रानी को विद्यालय में सबसे अनुपयुक्त माना जाता है, क्योंकि वह समाज के निचले और वित्तीय रूप से कमजोर वर्ग की होती हैं। फिल्म की अधिकांश कहानी शिक्षक-छात्र की गतिशीलता और साथ ही नैना माथुर के हानिपूर्ण भाषण और उनकी ज्ञान शक्ति पर केंद्रित है।

मूवी रिव्यू: फिल्म में नैना अपनी पसंदीदा नौकरी (शिक्षक) को प्राप्त करने में संघर्ष करती हुई नजर आती हैं, जिसमें उनकी न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर नामक बीमारी एक बड़ी बाधा के रूप में कार्य करती है। परंतु नैना हठी महिला के रूप में अपनी जिद पर अड़ी रहती हैं। इस फिल्म में सिर्फ एक कक्षा की ही कहानी नहीं है, बल्कि इसमें हम नैना के संघर्ष को भी बखूबी देख सकते हैं, जो अपने चुनौतीपूर्ण बचपन से जूझते हुए अपनी कमजोरियों से लड़ती है। इस फिल्म में उनके द्वारा वयस्क अवस्था में किए जाने वाले निरंतर प्रयासों से, हमें उनके चरित्र के प्रति सहानुभूति होती है। यह फिल्म विभिन्न बिंदुओं पर आपका ध्यान आकर्षित करने में सक्षम है। जिस दृश्य में नैना अपने 14 शरारती छात्रों से मिलने के लिए बस्ती में जाती है, वह दृश्य काफी रोमांचकारी है। नैना जब बस्ती में पहुँचती है, तो उसे एक छात्र टैंकर से पानी भरने के लिए लाइन में खड़ा मिलता है, जबकि दूसरा छात्र उन्हें बताता है कि उसकी मछीवाली माँ काम पर जा रही है। इस फिल्म के एक सबसे प्रभावशाली दृश्य में एक कालिख में रंगा हुआ छात्र गेराज में पंचर लगा रहा होता है। दर्शकों के भावनात्मक पक्ष को स्पर्श करने वाले निर्देशक द्वारा यह दृश्य, उनके सबसे बेहतरीन प्रयासों में से एक हैं। इन दृश्यों द्वारा निर्देशक न सिर्फ भावनाओं को आकर्षित करते हैं, बल्कि वह आँखों में आँसू भी ला देते हैं। नैना के लिए अध्यापन का व्यवसाय अनुपयुक्त होने के बावजूद, वह शिक्षा के क्षेत्र में प्रभावशाली मन पर एक अमिट छाप छोड़ना चाहती है, क्योंकि कई साल पहले एक शिक्षक ने उसका समर्थन किया था। यदि फिल्म में थोड़ी हास्यपूर्ण घटनाओं और छोटे गुप्त योजन का समायोजन हो जाता, तो यह एक बहुत बेहतरीन फिल्म में परिवर्तित हो जाती, क्योंकि ऐसा लगता है कि पूरी फिल्म रानी पर आधारित है।

हमारा फैसला: यह फिल्म एक नई अवधारणा और सुदृढ़ संदेश से परिपूर्ण है, क्योंकि इसकी कहानी के अनुसार, यदि आप सामान्य नहीं हैं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि आप अयोग्य हैं या आप सफल नहीं हो सकते हैं। निर्देशक सिद्धार्थ पी. मल्होत्रा ​​ने बेहतरीन तरीके से इस फिल्म की रचना की है और यह फिल्म आकर्षक, व्यावहारिक और मनोरंजन से परिपूर्ण है, लेकिन कथानक में  कुछ ऐसे भद्दे दृश्य होने के कारण,  फिल्म थोड़ी सुस्त प्रतीत होने लगती है और जो इसे उतना प्रसिद्ध होने से रोकते हैं, जितना कि यह हो सकती थी। यह एक वन टाइम देखने वाली फिल्म है और यदि आप रानी मुखर्जी के प्रशंसक हैं, तो आप इस फिल्म को देखने के लिए जा सकते हैं।

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