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भारत में जीवन की गुणवत्ता

October 28, 2017
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भारत में जीवन की गुणवत्ता

जे. आर. डी. टाटा का कथन, “मैं नहीं चाहता हूँ कि भारत एक आर्थिक शक्ति बनें। मैं चाहता हूँ कि भारत एक खुशहाल देश बनें।”

एक तरफ हम सभी, पूरे भारत के लगभग सभी शहरों में कम से कम समय में तेजी से बढ़ते हुए मॉल देख रहे हैं, जो भारतीयों के आर्थिक विकास और उनकी बढ़ती क्रय शक्ति को दर्शाते हैं और वही दूसरी तरफ गरीबों और भिखारियों की संख्या में निरन्तर बढ़ोत्तरी हो रही है, जो भारत में हो रहे मानव विकास के महत्व को कम करने का कार्य करती है। यह एक बहुत ही छोटा सा अन्तर है, जो कि भारत में कहीं भी देखा जा सकता है। यह कभी न सोचें कि अपने देश के लिए कोई कार्य करने से आपके जीवन की गुणवत्ता में कमी आ सकती है क्योंकि यह सोच, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के साथ, आपके सम्पूर्ण विकास को भी प्रभावित कर सकती है।

हम सभी यह जानते हैं कि भारत एक ऐसा व्यापारिक स्थल है, जो कई वैश्विक संगठनों को अपनी ओर आकर्षित करता है, लेकिन जब हम भारतीय शहरों की जीवन की गुणवत्ता के बारे में बात करते हैं, तो हमारे पास शब्द कम पड़ जाते हैं क्योंकि हमारे पास इन शहरों के बारे में बात करने के लिए कुछ भी नहीं है।

किसी भी देश के अच्छे प्रदर्शन में, जीवन की गुणवत्ता एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसलिए किसी भी देश द्वारा किए जा रहे, अच्छे प्रदर्शन का तात्पर्य मात्र उस देश का आर्थिक विकास नहीं होता है, बल्कि उसका सामाजिक विकास भी होता है। किसी भी देश के सम्पूर्ण प्रदर्शन को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) द्वारा मापा जाता है। लेकिन इनको मापने का तरीका क्या है? मानव विकास सूचकांक (एचडीआई), जहाँ जीवन स्तर और नागरिकों के जीवन की गुणवत्ता के बारे में है, वही सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) आय से सम्बन्धित, एक मापन प्रक्रिया है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) तेजी से आगे बढ़ रहा है और यह एक बहुत ही गर्व की बात है, लेकिन अभी भी हम मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) के मामलें में काफी पीछे हैं। संयुक्त राष्ट्र द्वारा तैयार की गई, भारत की एक मानव विकास रिपोर्ट के अनुसार, भारत को मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) पर काम करने की बहुत अधिक जरुरत है, क्योंकि भारत इस मामलें में 187 देशों में 134 वें स्थान पर है।

मर्सर ह्यूमन रिसोर्स कंसल्टिंग ने दुनिया भर में जीवन की गुणवत्ता का सर्वेक्षण किया है। जिसमें यह बताया गया है कि भारत के दो सबसे प्रमुख शहरों जैसे दिल्ली और मुंबई, इस सर्वेक्षण में सबसे नीचे हैं और इनका स्थान इस सर्वेक्षण में कोलंबो और डकार के बाद आता है। इस सर्वेक्षण में बेंगलुरू 153 वें स्थान पर और चेन्नई 160 वें स्थान पर है। वर्तमान समय में भारत में लगभग 2,400 लाख लोग ऐसे हैं, जो दरिद्रतापूर्ण और खराब गुणवत्ता वाला जीवन जीने को मजबूर हैं।

हम हमेशा, आर्थिक विकास के मुद्दे पर, भारत की तुलना दूसरे देशों के साथ विशेषकर चीन के साथ करते हैं, लेकिन इस प्रकार की तुलना शायद ही कभी, ऐसे कारकों के लिए जैसे कि जीवन प्रत्याशा, शिक्षा स्तर, व्यक्ति के दैनिक जीवन आदि के लिए की जाती है। विश्व बैंक और संयुक्त राष्ट्र रिपोर्ट यह बताती है कि चीन में जन्म लेने वाले ज्यादातर लोगों की उम्र लगभग 73.5 वर्ष होती है, जबकि भारत में ज्यादातर लोगों की उम्र लगभग 64.4 वर्ष होती है। भारत में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की शिशु मृत्यु दर, चीन की शिशु मृत्यु दर की तुलना में अधिक है। इसके अलावा कई वर्षों से भारत की तुलना में, चीन के स्कूली शिक्षा और प्रौढ़ साक्षरता के आंकड़े अधिक हैं।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि किसी भी देश और व्यक्ति के लिए आर्थिक विकास सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाने का कार्य करता है, लेकिन इसके साथ-साथ, हमें मानव विकास से सम्बन्धित क्षेत्रों पर भी कड़ी मेहनत करने की आवश्यकता है। इसलिए कई ऐसे कारक हैं जो जीवन स्तर में उन्नति करने के लिए हमारा मार्गदर्शन कर सकते हैं। लेकिन सबसे अधिक प्रमुख बात यह है कि सरकार, आर्थिक विकास से प्राप्त, अतिरिक्त आय या लाभ का उपयोग किस प्रकार से कर रही है। मगर, भ्रष्टाचार में हो रही निरन्तर वृद्धि के कारण, भारत में धन का गलत तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है। प्रत्येक व्यक्ति, भारत के लिए कुछ भी अच्छा करने के बजाए अपनी जेब भरने के काम में लगा हुआ है।

आइए, इसका एक सरल उदाहरण देखते हैं। भारत की राजधानी दिल्ली में, जहाँ एक तरफ बहुत ही आलीशान और पक्के मकान हैं, वहीं दूसरी ओर बहुत ही जर्जर और कच्चे घर हैं। दिल्ली में, एक ओर वीआईपी आवासीय क्षेत्र, इंण्डिया गेट और जीके आदि जैसे कुछ शानदार इलाके हैं, वहीं इसके विपरीत दिल्ली में ही उत्तम नगर, नजफगढ़, पहाड़गंज जैसे भी कुछ स्थान हैं, जहाँ पर कोई सड़क नहीं, कोई सीवेज नहीं, पानी की आपूर्ति नहीं है और जहाँ आज भी आम आदमी इन सब चीजों के अभाव के कारण कष्ट सहन कर रहा है और इनके लिए निरन्तर संघर्ष कर रहा है। हम यहाँ भारत की राजधानी के मौजूदा हालातों के बारे में बात कर रहे हैं, जो कि अत्यन्त खराब हैं, तो अन्य शहरों के विषय में हम क्या कह सकते हैं। ये चीजें स्वचालित रूप से, भारत के समग्र मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) को नीचे लाने का कार्य करती हैं। इसके बाद, यदि हम भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं की बात करे तो वह भी बहुत खराब है। भारत के अधिकांश सरकारी अस्पतालों और चिकित्सालयों के मौजूदा हालात और स्थितियां किसी योग्य नहीं है। एक व्यक्ति, जिसकी आमदनी अच्छी है, वह कभी भी, किसी भी कारण से इन सरकारी अस्पतालों में इलाज करवाने नहीं जाएगा। तो सवाल यह है कि सरकार अपनी आम जनता को क्या सुविधाएं दे रही है। यदि व्यावहारिक रूप से देखा जाएं तो कुछ भी नहीं।

ऐसा नहीं है कि भारत, इन सब स्थितियों में सुधार करने के लिए कोई प्रयास नहीं कर रहा है। कई ऐसी योजनाएं और प्रोग्राम हैं, जो मूल स्तर पर आरंभ किए जा चुके हैं। लेकिन अभी भी इन मामलों को गति प्रदान करने और इनको और अधिक सफल बनाने की आवश्यकता है। भारत सरकार ने कई नए कानूनों और नीतियों द्वारा गरीबी, कुपोषण, स्वास्थ्य और स्वच्छता से संबंधित आदि समस्याओं के समाधान का पूर्ण प्रयास किया है। लेकिन उन कानूनों और नीतियों का कार्यान्वयन सही ढंग से न होने के कारण असंतोषजनक परिणाम सामने आ रहे हैं।

भारत, गेहूं और अन्य खाद्य पदार्थों के एक सबसे बड़े उत्पादक देश के रूप में जाना जाता है। लेकिन फिर भी भारत में कुपोषित लोगों की संख्या सबसे अधिक है। भारत में जन्म लेने वाले बच्चों में से लगभग 42% बच्चे ऐसे होते हैं जिनका वजन जन्म के समय काफी कम होता है। इसलिए समस्या भोजन का उत्पादन नहीं, बल्कि भोजन का सही वितरण है।

यह स्पष्ट है कि भारत में मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) और जीवन की गुणवत्ता में वृद्धि किए बिना, मानव का आर्थिक विकास और व्यक्तिगत विकास पूर्णता अधूरा है। वर्तमान समय में, आर्थिक विकास से हो रहे अधिकतम लाभ से हमें शिक्षा, स्वास्थ्य, बच्चे के पोषण, पेयजल की सुविधा, सड़कों आदि जैसी सामाजिक समस्याओं के निराकरण का प्रयास करना चाहिए और मानव के विकास से सम्बन्धित, विभिन्न पहलुओं के लिए एक उपयुक्त ढाँचा तैयार करना चाहिए। सरकार द्वारा, ऐसे कार्यों को करने के लिए, सक्रिय और साहसिक कदम उठाए जाने चाहिए। आइए, हम सभी मिलकर अपने भारत देश को एक ऐसा देश बनाए, जहाँ जीवन की गुणवत्ता पर किसी प्रकार कोई प्रश्न न उठें, ताकि हम गर्व से कह सकें- “मेरा भारत महान।”