भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु का स्मरण (शहीद दिवस)
23 मार्च 1931 का दिन प्रत्येक भारतीय को हमेशा याद रहेगा, क्योंकि इस दिन भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के तीन युवा क्रांतिकारियों भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी पर लटका दिया गया था। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को सहायक पुलिस अधीक्षक जॉन सॉन्डर्स की हत्या में शामिल होने का दोषी ठहराया गया था। यह तीनों स्वतंत्रता सेनानी उस समय के युवाओं का एक प्रेरणा स्त्रोत बन गए थे। देश के इन तीनों युवाओं भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने देश को आजाद कराने और प्रत्येक व्यक्ति को ब्रिटिश साम्राज्य के बंधन से मुक्त कराने के लिए खुद को समर्पित कर दिया था। 23 मार्च को पंजाब के हुसैनवाला (वर्तमान में पाकिस्तान में) में इन तीनों देश भक्तों भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फाँसी की सजा सुनाई गई थी, जबकि मूल रूप से यह सजा 24 मार्च को निर्धारित की गई थी। इनकी फाँसी की खबर सुनकर पूरा देश दुःख और शोक में विलीन हो गया था। इन तीनों युवा क्रांतिकारियों की फाँसी ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के अन्य क्रांतिकारियों को काफी बढ़ावा दिया था। इसलिए शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की शहादत का सम्मान करने और देश की स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन बलिदान करने के लिए, इस दिन (23 मार्च) को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।
साइमन कमीशन और हिंसक लाठी चार्ज
वर्ष 1928 में, ब्रिटिश संसद ने संवैधानिक सुधार लागू करने और भारतीय संविधान की प्रगति की समीक्षा करने के लिए एक कमीशन (आयोग) का गठन किया था। इस समिति की अध्यक्षता सर जॉन साइमन द्वारा सात ब्रिटिश सांसदों के एक दल के साथ की गई थी, लेकिन उस कमीशन में कोई भी भारतीय प्रतिनिधित्व न होने के कारण, कमीशन के प्रमुख सर जॉन साइमन को कड़े विरोध का सामना करना पड़ा था। लाला लाजपत राय सहित कई प्रमुख राष्ट्रवादी नेताओं ने मूक मार्च का नेतृत्व किया था, जबकि साइमन कमीशन के गठन का विरोध करने के लिए पूरे देश में विरोध प्रदर्शन किया गया था। पुलिस अधीक्षक जेम्स ए स्कॉट ने विरोध प्रदर्शन करने वाली भीड़ पर लाठीचार्ज करने का आदेश दे दिया, जिसका नेतृत्व लाला लाजपत राय कर रहे थे। हिंसक लाठी चार्ज में राष्ट्रवादी नेता लाला लाजपत राय में गंभीर रूप से घायल हो गए थे और 17 नवंबर 1928 को लाला लाजपत राय की चोट लगने व दिल का दौरा पड़ने कारण मृत्यु हो गई थी।
लाहौर षडयंत्र मामला
हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) के युवा क्रांतिकारी सदस्यों जैसे भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू और चंद्रशेखर आजाद ने लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए जेम्स ए स्कॉट की हत्या करने की योजना बनाई, लेकिन गलत पहचान की वजह से इन लोगों ने सहायक पुलिस अधीक्षक जॉन सान्डर्स को गोली मार दी थी। इस घटना के कारण ब्रिटिश पुलिस, पुलिस अधीक्षक जॉन सान्डर्स की हत्या के षडयंत्रकारियों की तलाश करने में जुट गई थी।
विधानसभा बमबारी और जाँच-पड़ताल
अगले वर्ष, बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने ब्रिटिश सांसदों के केंद्रीय सभा कक्ष में अशोधित बम फेंककर, लोक सुरक्षा विधेयक और व्यापार विवाद अधिनियम के खिलाफ अपना विरोध जताया था। उनका इरादा किसी को भी मारने का नहीं था, वह केवल ब्रिटिश साम्राज्य को एक संदेश देना चाहते थे, नहीं तो वह बमबारी करके वहाँ से भाग सकते थे। उन्होंने विधानसभा के सभा भवन में पत्र फेंकते हुए कहा कि “लोगों को मारना आसान है, लेकिन आप उनके विचारों को नहीं मार सकते हैं और आगे कहा कि महान साम्राज्य टूट जाते हैं, जबकि विचार बने रहते हैं”। जिसके कारण भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को गिरफ्तार कर लिया गया था और उनकी गिरफ्तारी के बाद राजगुरू और सुखदेव सहित एचएसआरए के कई अन्य सदस्यों को ब्रिटिश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त पर जनसमूह में किए गए बम विस्फोट के आरोपों का मुकदमा चलाया गया, जबकि उससे पहले राजगुरू और सुखदेव पर लाहौर षडयंत्र मामले के लिए मुकदमा चलाने की कोशिश की गई थी। इन तीन युवा क्रांतिकारियों को भारत के तत्कालीन वायसराय, लॉर्ड इरविन के निर्देश पर स्थापित विशेष न्यायाधिकरण द्वारा फाँसी पर लटकाए जाने की सजा सुनाई गई थी, क्योंकि आरोपी की मौजूदगी के बिना न्यायाधिकरण ने कार्यवाही के दौरान एक तरफा जाँच-पड़ताल की थी।
उनके बलिदान का महत्व
शहीद भगत सिंह, शहीद सुखदेव और शहीद राजगुरू के शहीद हो जाने के 87 साल बाद भी, उनके बलिदान ने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के लिए एक नई गति प्रदान की है। उनके इस बलिदान ने नए क्रांतिकारियों को आंदोलन में शामिल होने तथा भारत को ब्रिटिश शाही शासन से स्वतंत्रता प्राप्त कराने और एक समतावादी समाज की स्थापना करने के लिए प्रेरित किया था। इसलिए आज भी इस तरह के युवा युग में इन शहीदों को उनकी बहादुरी के लिए सम्मानित किया जाता है तथा मीडिया ने भी इन युवा क्रांतिकारियों के संघर्ष पर काफी ध्यान आकर्षित किया है। हालांकि इन शहीदों के कार्य करने का तरीका महात्मा गांधी के विपरीत था, लेकिन उन सभी का लक्ष्य एक ही भारत को ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्रत करवाने का था। “इंकलाब जिंदाबाद”, का नारा एचएसआरए के सदस्यों का एक प्रसिद्ध आह्वान था, जिसका आज के समय में लोगों द्वारा उपयोग उदासीनता या सरकार के अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए किया जाता है। जैसा कि भारत विकास और आधुनिकता के रास्ते पर अग्रसर है, इसलिए उन महान पुरुषों के बलिदान को महसूस करना काफी आवश्यक है, जिन्होंने अपने प्राणों को सिर्फ इसलिए न्यौछावर कर दिया, ताकि हम आजादी की ताजी हवा में साँस ले सकें।