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सआदत हसन मंटो, एक जीवन

August 6, 2018
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सआदत हसन मंटो, एक जीवन

“मुझे लगता है कि मैं हमेशा से ऐसा व्यक्ति रहा हूँ जो चीजों को फाड़ता रहता है और फिर वापस हमेशा की तरह उनको साथ लाके सिलता रहता है।”

समय से पूर्व एक आदमी, मंटो जिसने पूरी दुनिया को उसी तरह से देखा है जैसी वह – टूटी हुई और अँधेरे में खोई हुई। उन्होंने कभी भी अपने लेख में चिकने चुपड़े शब्दों का उपयोग नहीं किया, शायद यही कारण है कि आप उन्हें कभी बेस्ट से लिंग की श्रेणी में नहीं पाओगे। जो कि सरल शब्दों के लिए आरक्षित था और मंटो के पास कहने के लिए कोई सरल शब्द ही नहीं थे। उन्होंने अक्सर कहा कि उनकी कहानियाँ गंदी (अश्लील) नहीं थीं, लेकिन समाज कहाँ मानने वाला था।

उनकी कहानियाँ केवल एक प्रतिबिंब थीं। नंदिता दास द्वारा लिखित और सह-निर्देशित एक फिल्म मंटो, दिसंबर 2018 में सिनेमाघरों में दस्तक देने केलिए तैयार है।

जैसे-जैसे बॉलीवुड आगे बढ़ता है, आइए मंटो के जीवन को देखें जो सच बोलने से कभी नहीं डरे; हालांकि यह लोगों को अप्रिय भी लग सकता है।

मंटो और उनके शुरुआती वर्ष

सआदत हसन मंटो का जन्म 11 मई 1912 को ब्रिटिश – भारत समय के पंजाब के लुधियाना जिले में हुआ था। वह एक मुस्लिम बैरिस्टर्स परिवार से सम्बन्ध रखते थे, उनके पिता स्थानीय अदालत में एक न्यायाधीश थे। स्वाभिमानी कश्मीरी मूल के एक व्यक्ति, मंटो ने सहज पंजाबी में बातचीत की। साहित्य की दुनिया में उनके प्रवेश ने उनके मूल रूप को बदल दिया और यह सन् 1933 के अमृतसर में खोजा जा सकता है। वहाँ वह एक विद्वान और लेखक अब्दुल बारी अलीग से मिले, जिन्होंने उन्हें फ्रांसीसी और रूसी लेखकों को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। कुछ महीने बाद, उन लेखकों से प्रेरित होकर इन्होंने विक्टर ह्यूगो द्वारा लिखित उपन्यास “दि लास्टडे आँफ कंडेम्ड” का पहले से ही अनुवाद कर दिया था।

इसके तुरंत बाद, वह एक संपादक के रूप में मसावत (लुधियाना का एक दैनिक प्रकाशन ) में शामिल हो गए और वर्ष 1934 में वह अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के लिए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय गए। उन्होंने जलियाँ वाला बाग के नरसंहार पर, अपनी पहली छोटी कहानी “तमाशा” को प्रस्तुत किया। तब से, उन्होंने केवल उग्रता और ईमानदारी के साथ लिखा, जिसके बारे में कई लोगों को ज्ञात नहीं था।शराब के कारण उनकी आयु बहुत कम हो गई थी। उन्होंने अपने परिवार की परंपरा को तोड़ा। उन्होंने लघु कथाओं के 22 संग्रह, पर्सनल स्केच के दो संग्रह, पाँच रेडियो प्ले की श्रृंखला और निबंधों के तीन संग्रह प्रस्तुत किए।

विभाजन‘ से दूर व्यक्ति

मंटो को अक्सर ‘विभाजन’ का लेखक माना जाता है। उनसे पहले भी एक स्थापित लेखक थे, लेकिन उन्होंने दिल दहला देने वाली सच्ची घटनाओं पर लिखा जिससे उन्हें व्यापक लोकप्रियता प्राप्त हुई। विभाजन के बाद वह अत्यधिक दुखी हो गए, उन्हें अपना प्रिय बॉम्बे पीछे छोड़ना पड़ा। लेकिन मंटो विभाजन से अधिक एक व्यक्ति समूह थे। वह एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने उस समय सच्ची कहानियां सुनाईं जब कोई भी सुनने के लिए तैयार नहीं था। कोई भी चीज यहाँ तक कि अकेलापन भी उनकी कलम को रोक नही पाया। उन्हें अपने साहित्य में अश्लीलता के लिए 6 बार आरोपित किया गया। उनके द्वारा किये गए कार्यों को अक्सर विकृत माना जाता था। लेकिन मंटो ने जो किया वह उस वर्ग के लिए “मानवीय“ था, जिसे गिरी हुई द्रष्टि से देखा जाता था। उनके पात्र प्रमुखतः सनकी व्यक्ति, दलाल, वेश्याएं, व अपरंपरागत पत्नियां होती थीं। इस प्रकार के सभी व्यक्ति समाज के द्वारा या तो उपेक्षित थे या उन्हें समाज के लिए दूषित माना जाता था। उदाहरण के लिए, ’मम्मी’ एक वेश्यालय में सहानुभूति रखने वाली वृद्ध स्त्री के बारे में एक छोटी-सी कहानी है, जिसे आमतौर पर बाहरी लोगों द्वारा नापसंद, या वैकल्पिक रूप से गलत समझा गया। ’झूमके’ एक और कहानी, जो पत्नी द्वारा व्यभिचार की कहानी बताती है।महिलाओं के प्रति उनका उदार दृष्टिकोण उनके कथानक की प्रमुख शैली थी। मंटो ने पितृसत्तात्मक समाज को उसी प्रकार देखा जैसा वो था। उन्होंने कामुकता और व्यक्तित्व से रहित महिलाओं को पारिवारिक पदानुक्रम में और विनम्र सदस्य के रूप में देखने से व चत्रित करने से इनकार कर दिया था। उन्होंने अपनी पत्नी सफियाह मंटो से उन्हें उनके पहले नाम से पुकारने का आग्रह किया जो कि उस समय हतोत्साहित करने वाला था।

एक खोई हुई कहानी

मंटो के काम ने उनका नाम स्थापित किया था। उन्हें उनके जीते जी वह ख्याति कभी नहीं प्राप्त हुई जिसके वह हकदार थे। वह हमेशा मुसीबतों से घिरे रहते थे फिर भी उन्होंने अपनी आवाज को नहीं दबाया। उन्हें 1949 में प्रोग्रेसिव राइटर्स एसोसिएशन से निष्कासित कर दिया गया था। उनका निष्कासन उर्दू अदब और सियाह हाशिये पत्रिका के आने के बाद हुआ, यह वह पत्रिका थी जिसमें मंटो ने विभिन्न शैलियों के लेखकों का बिना किसी पक्षपात के उल्लेख किया था। दूसरी किताब में दंगों के दौरान हुई भयानक हत्याओं को लेकर खुलेतौर पर की गई चर्चा पर आधारित थी। यह पुस्तक 1948 में विभाजन के बाद, उनके बॉम्बे से लाहौर चले जाने के कुछ महीने पश्चात प्रकाशित हुई थी। मंटो ने महसूस किया कि उन्हें उनके अपने दोस्तों ने गलत समझा था और विभाजन ने वास्तव में कभी उनका पीछा नहीं छोड़ा।

अपने अंतिम दिनों में वे दुखों के चलते शराब की बुरी लत में पड़ गए और उन्होंने अपने लेखन को अस्थायी मूल्यों पर बेच दिया। लेकिन जीवन के सबसे बुरे दौर में भी मंटो के शब्दों ने कभी भी अपना साहस नहीं त्यागा। उन्होंने अपने अंतिम लेखनों में हमारी दुनिया की अज्ञानता और मानव के मस्तिष्क के बारे में बताया। 1955 में मंटो की छोड़ी गई अंतिम विरासत पर आधारित “टोबा टेक सिंह” प्रकाशित हुई। यह कहानी भारत और पकिस्तान के विभाजन के समय हुए आदान-प्रदान से विक्षिप्त व्यक्ति के इर्द गिर्द घूमती है और साथ ही हुए विभाजन का वर्णन करती है क्यूंकि मंटो ने इस विक्षप्तिता को देखा था। इस कहानी के अंत में, बिशन सिंह, एक विक्षिप्त व्यक्ति, उस भूमि पर गिरता है जिस पर किसी का नाम नहीं है अर्थात किसी भी व्यक्ति की वह भूमि नहीं है और साथ ही साथ वह यह नहीं जानता की उसका पैतृक घर कहाँ है और उसका देश कौन सा है। ऐसा लगता है की जैसे उन्होंने अपने कार्यो के निष्कर्ष में इस संसार को एक अंतिम विलाप दिया हो। 18 जनवरी, 1955 को 42 वर्ष की अल्पायु में उनकी म्रत्यु हो गई। उनका स्म्रति लेख उनके अपने शब्दों में पढ़ा जायेगा।

“यहाँ सआदत हसन मंटो को दफनाया गया है, जिनके ह्दय में सभी रहस्यों और लघु कथा लेखन की कला प्रतिष्ठापित है। धरती के ढेर के नीचे दबे हुए, वह अब भी इस बात पर विचार कर रहे हैं कि क्या वह लघु कहानी के महत्तर लेखक या भगवान हैं।”

 

 

 

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सआदत हसन मंटो, एक जीवन
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एक ऐसे व्यक्ति के जीवन पर एक झलक जो सच बोलने से कभी नहीं डरे, यहाँ तक कि अपने दुर्बल क्षणों में भी नहीं।
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