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सरदार सरोवर बांध: तथ्य, विरोध और विवाद

October 12, 2017
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सरदार सरोवर बांध

कई दशक से चले आ रहे विवाद के बाद, आखिरकार भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सरदार सरोवर बांध का उद्घाटन किया, एक ऐसी परियोजना जिसे “लाईफ लाईन ऑफ गुजरात” के नाम से भी जाना जाता है। देश के सबसे बड़े बांध के निर्माण की नींव भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1961 में रखी, लेकिन इसका उद्घाटन 17 सितंम्बर 2017 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने 67 वें जन्मदिन पर किया। सरदार सरोवर बांध विश्व का दूसरा सबसे बड़ा कंक्रीट का बांध है। इस बांध से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान सरकार के लिए एक विकास का युग प्रारंभ होगा।

सपना

नर्मदा नदी के ऊपर सरदार सरोवर बांध का निर्माण भारत के पहले उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल के दिमाग की उपज थी। राज्यों के बीच में जल वितरण की समस्या को लेकर यह महत्वाकांक्षी योजना विवादों से घिर गई और ये विवाद योजनाओं का रूप लेने लगे। 1969 में विवाद को समाप्त कर परियोजना को दोबारा शुरू कराने के उद्देश्य से नर्मदा जल विवाद प्राधिकरण का गठन किया गया। एक दशक तक योजना के संबंध में राज्यों की रिपोर्ट पर आधारित सभी याचिकाओं का अध्ययन करने के बाद, अदालत ने जल वितरण प्रणाली पर निर्णय लिया, जिसमें मध्य प्रदेश को 65 प्रतिशत, गुजरात को 32 प्रतिशत और शेष महाराष्ट्र और राजस्थान को जल वितरित किया गया। प्राधिकरण ने स्थानांतरित होने वाले लोगों के पुनर्वास के लिए भी शर्तें रखीं और बांध की ऊँचाई में वृद्धि करने के संबंध में भी पूछा। ऐसा सोचा जा रहा था कि यह महत्वाकांक्षी परियोजना 80 के दशक के अंत तक सफलता प्राप्त कर लेगी, लेकिन अभी बहुत कुछ होना बाकी था।

नर्मदा बचाओ आंदोलन

1980 के दशक के मध्य में भारत के सबसे प्रसिद्ध और सबसे दृढ़ कार्यकर्ता मेधा पाटकर सामने आईं। 1985 में पहली बार जब उन्होंने बांध स्थल का दौरा किया, तो सुश्री पाटकर और उनके सहयोगी सरदार सरोवर बांध के निर्माण और उद्घाटन के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए। नर्मदा बचाओ आंदोलन की सामने आई मुख्य शिकायत यह थी कि हजारों आदिवासी जनसमूह जो बांध के निर्माण के कारण स्थानांतरित होने वाले थे उन्हे इस बारे में पहले से कोई जानकारी नही दी गई थी और आरोप यह भी था कि उन्हे पर्याप्त मुआवजा भी नहीं दिया जा रहा था। मेधा और अन्य लोगों ने यह महसूस किया कि विश्व बैंक ने परियोजना को वित्त प्रदान करने पर सहमति जताई है, इसके बावजूद कि केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय ने इस परियोजना को आगे बढ़ाने के लिए मंजूरी अस्वीकार कर दी थी। मेधा और अन्य सहयोगियों ने कई सालों तक बड़ी – बड़ी सम्मानित मशहूर हस्तियों आमिर खान, बाबा आमटे, अरुंधति रॉय से समर्थन हासिल किया, जिससे इस मामले को अंतर्राष्ट्रीय आकर्षण प्राप्त हुआ। प्रदर्शनकारियों ने कई बार बांध निर्माण के कार्य को रोकने का प्रयास किया और उसमें कुछ हद तक सफल रहे जिसके कारण परियोजना के पूर्ण होने में देरी हुई लेकिन अब अंत में परियोजना का कार्य पूरा हो चुका है।

विकास के युग में प्रवेश

सरदार सरोवर बांध के निर्माण के लिए भारत सरकार लगातार प्रयास करती रही, परियोजना का मध्य प्रदेश, गुजरात को असीमित लाभ मिलेगा और अन्य पड़ोसी राज्य राजस्थान और महाराष्ट्र भी इससे लाभ प्राप्त कर सकेंगे। आइए हम इस बांध परियोजना से होने वाले लाभों पर नजर डालें –

  • बांध 1.2 किलोमीटर लंबा है और इसकी ऊँचाई अभी हाल ही में बढ़ाकर 138.68 मीटर तक हो गई है। इसका मतलब यह है कि बांध अब 4.73 मिलियन एकड़ फीट पानी का भंडारण कर सकेगा।
  • गुजरात में 8,00,000 हेक्टेयर भूमि और राजस्थान में 2,46,000 हेक्टेयर भूमि बांध के जल द्वारा सिंचित हो जाएगी। यह चार राज्यों के 131 शहरों और कस्बों तथा 9,633 गांवों को पेयजल प्रदान करेगा।
  • सरदार सरोवर बांध करीब 163 मीटर गहरा है और इसमें बिजली उत्पादन की दो इकाइयां स्थापित की गई हैं। इनमें 1,450 मेगावाट की बिजली उत्पादन क्षमता है। अब तक, दोनों विद्युत घरों ने 4,141 करोड़ यूनिट बिजली का उत्पादन किया है।
  • परियोजना की शर्तों के मुताबिक, महाराष्ट्र को 57 प्रतिशत बिजली मिलेगी, मध्य प्रदेश को 27 प्रतिशत और गुजरात में 16 प्रतिशत बिजली प्राप्त होगी।

निरंतर विरोध प्रदर्शन

बांध के उद्घाटन के बावजूद मेधा पाटकर और अन्य कार्यकर्ताओं ने अपने “जल सत्याग्रह” से पीछे हटने से इनकार कर दिया है। सत्याग्रह से जुड़े कार्यकर्ता दावा करते हैं कि 40,000 परिवार है, जिनके घर अब डूब जाएंगे और उन्हें अभी तक मुआवजा नहीं दिया गया है। हालाँकि, प्रधानमंत्री ने दावा किया कि कई षड्यंत्रों को रोकने के बाद उद्घाटन किया गया है।

इस बांध के उद्घाटन के बाद जो उत्तरी और मध्य भारत के लोगों को विकास और लाभ प्राप्त होगा वह आने वाले वर्षों में स्पष्ट हो जाएगा। इस बीच हमें उम्मीद है कि सरकार ने ऐसे हजारों आदिवासी लोगों को पुनर्स्थापित करने के लिए पर्याप्त कार्रवाई की है, जिन्होंने अपने घरों को खो दिया है और इस तरह के विकास के लिए अपनी भूमि का त्याग किया है।