Home / India / प्रदूषण को कहें न

प्रदूषण को कहें न

April 7, 2018
by


महात्मा गांधी ने कहा था कि “प्रकृति सभी की जरूरतों को पूरा करने के लिए तो पर्याप्त है, लेकिन मनुष्य के लालच को पूरा करने के लिए काफी नहीं है।”

भारत में बढ़ती आबादी और औद्योगिक विकास के परिणामस्वरूप गंभीर पारिस्थितिक असंतुलन और पर्यावरणीय परिवर्तन हो रहे हैं। औद्योगिकीकरण ने शहरीकरण को जन्म दिया, जिसके कारण प्रदूषण की समस्या में बढ़ोत्तरी हुई है। हम लोग प्रदूषण की इस समस्या में योगदान दे रहे हैं, क्योंकि हम लोग कूड़ा-कचरा को कहीं पर भी खाली दिखाई देने वाले स्थानों पर फेंक देते हैं। हालांकि प्लास्टिक की थैलियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, फिर भी हम इन का उपयोग करते हैं या सब्जी विक्रेता इन प्लास्टिक की थैलियों में सब्जियाँ रखकर लोगों को देते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, लुधियाना भारत का सबसे प्रदूषित शहर है, उसके बाद कानपुर, दिल्ली, लखनऊ और इंदौर का नंबर आता है। विभिन्न राज्यों में पर्यावरण की रक्षा और प्रदूषण नियंत्रण के लिए कई कानून निर्धारित किए गए हैं, लेकिन इन सभी कानूनों का सख्ती के साथ पालन नहीं किया जाता है।

इन दिनों वायु प्रदूषण सबसे बड़ी चिंताओं में से एक है और यह अस्थमा, फेफड़ों के संक्रमण और यहाँ तक ​​कि कैंसर जैसी कई बीमारियों की जड़ है। ग्रीनहाउस गैसें गंभीर रूप से जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनती हैं। वायु प्रदूषण सीधे जनसंख्या, वाहनों की संख्या और कारखानों से निकलने वाले धुएं से संबंधित है। भारत में वर्ष 1950 के बाद से वायु प्रदूषण बढ़ने के कारण, यहाँ के मौसम में भी बदलाव देखने को मिले हैं। जहाँ उद्योग-धंधे जो कि काफी समस्या पैदा कर रहे हैं, वहीं हम हमेशा यह कहते हैं कि प्रदूषण में मेरा कोई हाथ नहीं है, लेकिन यहाँ आपको गलत साबित करने के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत है। हम सभी इस तथ्य से अवगत हैं कि जल ठहराव मच्छर से होने वाली कई घातक बीमारियों का कारण बनता है और हम घर पर मच्छरों से छुटकारा पाने के लिए मच्छर कॉइल अर्थात् मार्टीन के विभिन्न रूपों को जलाते हैं। लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि एक कॉइल जलने के बाद खतरनाक धुआँ पैदा करती है, जो 100 सिगरेट के बराबर होता है। हम कुछ भी नहीं कर रहे हैं, लेकिन फिर भी हम प्रदूषण और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में अपना योगदान दे रहे हैं। लोग सीसे के उत्पादों जैसी बैटरी को एक बहुत ही खतरनाक तरीके से फेंक देते हैं। कचरे के ढेर में डाली गई इन बैटरियों के कारण हजारों लोग जहरीली धूल और गैसों से प्रभावित होते हैं।

कई अनियोजित क्षेत्रों में अभी भी उचित मलजल प्रणाली का अभाव है, इसलिए प्रत्येक घर में कचरे को एकत्र करने के लिए सेप्टिक टैंक होना चाहिए। शरीर के विषाक्त अपशिष्ट और मानव मल भूमिगत पीने के पानी के साथ मिश्रित हो जाते हैं और उसे दूषित कर देते हैं। इस प्रकार, हम कई तरह से प्रदूषण में योगदान दे रहे हैं। औद्योगीकरण के कारण पीने का पानी काफी हद तक दूषित हो जाता है, क्योंकि नदी के पानी में अनुपचारित कचरे को डाल दिया जाता है, इन्हीं कारणों की वजह से यमुना नदी के 70 प्रतिशत कचरे का संसोधन नहीं हो पाता है। इसके अलावा औद्योगिक अपशिष्ट की पाइपलाइनों में जाम लगने के कारण, पाइपें लीक भी हो जाती हैं, जिसके कारण पीने योग्य शुद्ध भूमिगत पानी दूषित हो जाता है।

ध्वनि प्रदूषण के कारण पागलपन, कम सुनाई पड़ना और चयापचय संबंधी विकार पैदा होते हैं और इससे हमारा तंत्रिका तंत्र भी बुरी तरह प्रभावित होता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि हम लगातार हार्नों की आवाज और घर पर टीवी की आवाज सुनते हैं। इस वजह से मन भी अशांत रहता है। इसके अलावा हमारी गतिविधियाँ मृदा (मिट्टी) और इलेक्ट्रॉनिक प्रदूषण में भी योगदान दे रही हैं।

ऐसा माना जाता है कि रक्तचाप, कुपोषण, धूम्रपान और घर के अंदर के होने वाले प्रदूषण के बाद, भारत में होने वाली मौतों का पाँचवां प्रमुख कारण वायु प्रदूषण है। इसके अलावा, वायु प्रदूषण की वजह से समय से पूर्व ही काफी मौतें हो जाती हैं। विश्वभर में दिल्ली को चौथा सबसे अधिक प्रदूषित शहर के रूप में गणना की जाती है। वर्ष 1947 और वर्ष 1995 के बीच इसकी स्थिति बहुत ही खराब थी, लेकिन पर्यावरण की रक्षा के लिए किए गए प्रगतिशील प्रयासों ने कुछ हद तक पर्यावरण की गुणवत्ता में सुधार किया है। कुछ दशक पहले दिल्ली में एक बड़े स्तर पर वायु प्रदूषण समस्या थी, लेकिन सीएनजी बसों और ऑटो के इस्तेमाल से यह समस्या काफी हद तक कम हो गई है।

हरित संसाधनों का उपयोग करके काफी हद तक इस समस्या का समाधान किया जा सकता है। हरित उपाय और इससे संबंधित अवधारणा आज की जरूरत हैं, क्योंकि सभी प्रकार के पर्यावरणीय प्रदूषण हर जीवित जीव के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। इसलिए अब हरित निर्माण की अवधारणा को ध्यान में रखना और घर पर हरित उपायों को अपनाना, इन्हें लंबे समय से चलने वाले एक फैशन के रूप में नहीं माना जा सकता है। इंडियन ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल (आईजीबीसी) ने आवासीय क्षेत्रों के लिए, ग्रीन होम रेटिंग प्रणाली का शुभारंभ किया था। इस रेटिंग प्रणाली की सहायता से आप आसानी से अपने घर को चाहे वह हरियाली से परिपूर्ण हो या न हो, उसकी रेटिंग कर सकते हैं। रेटिंग के लिए कई कारकों जैसे प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, घरेलू कचरे का कैसे प्रबंधन किया जाता है, यहाँ रहने वाले कितने लोग स्वस्थ हैं और किस तरह से भवन आदि का निर्माण किया गया है, इन सब को दर्ज किया जाता है। ऐसे हरे घरों के साथ वास्तविक और अवास्तविक दोनों लाभ जुड़े हुए हैं। हरे घरों में 20-30 प्रतिशत तक ऊर्जा और 30-50 प्रतिशत तक पानी की बचत की जा सकती है। इसके अलावा आप इन घरों में उत्कृष्ट हवा की गुणवत्ता, दिन की रोशनी, रहने वालों के बेहतर स्वास्थ्य और राष्ट्रीय संसाधनों का विशाल संरक्षण प्राप्त कर सकते हैं।

पर्यावरण को सुरक्षित रखना हमारी जिम्मेदारी है और आम आदमी से लेकर नौकरशाहों, राजनेताओं और उद्योगों आदि सब को इसका पालन करना चाहिए। हर किसी के द्वारा पालन किया जाने वाला संचायी प्रभाव अंतर पैदा करेगा। इसके लिए कुछ सुझाव प्रस्तुत हैः

  • जब भी संभव हो अपने वाहन के बजाय, सार्वजनिक परिवहनों का उपयोग करें।
  • नजदीकी स्थानों पर जाने के लिए मोटरसाइकिल या कार उपयोग न करके, पैदल चलने पर जोर दें।
  • हवा को शुद्ध रखने के लिए अपने घर के करीब पेड़ या झाड़ियाँ लगाएं। आपको घर के अन्दर भी पौधों को लगाना चाहिए, लेकिन यह ध्यान रखें कि बर्तन में पानी न रहे, क्योंकि यह पानी मच्छरों का प्रजनन स्थल बन सकता है, जिससे कई रोग भी उत्पन्न हो सकते हैं।
  • घर में कपड़े के साथ-साथ बर्तन धोने के लिए पर्यावरण के अनुकूल सफाई करने वाले उत्पादों का उपयोग करना चाहिए।
  • दाँतों को साफ करते समय या अन्य सफाई का कार्य करते समय नल को खोलें और काम हो जाने के बाद नल को बंद कर दें।
  • यहाँ-वहाँ कूड़ा-कचरा न डालें।
  • काम न होने पर या आप घर के जिस कमरे में कार्य कर रहे होते हैं, उसी कमरे की लाइट और बिजली के उपकरणों का उपयोग करें तथा बाकी जगह के बिजली के उपकरणों व लाइटों को बंद कर दें।
  • उद्दीप्त प्रकाश बल्बों के स्थान पर सीएफएल का उपयोग करें, क्योंकि यह कम ऊर्जा का उपभोग करते हैं।
  • उन हरे उत्पादों को खरीदें, जिनपर ऊर्जा के स्टार बने हों।
  • एयर कंडीशनर (एसी), एलसीडी, माइक्रोवेव ओवन, गीजर का सीमित उपयोग करें।
  • खाना पकाने के लिए सौर कुकरों का उपयोग करें, क्योकि भारत में सर्दियों के दौरान भी पर्याप्त धूप रहती है।
  •  गीजर की बजाय, गर्म पानी के लिए घर की छत पर सौर पैनल स्थापित किए जा सकते हैं।