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उत्तर प्रदेश के ‘शिक्षा मित्र’

October 17, 2017
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उत्तर प्रदेश के 'शिक्षा मित्र': भविष्य की चिंता में राजनीतिक फायदे

शिक्षा मित्रों ने अनेक अलग-अलग तरीकों से विरोध प्रदर्शन करके उत्तर प्रदेश के शैक्षिक और सामाजिक-राजनीतिक वातावरण को हिलाकर रख दिया है, लेकिन राज्य सरकार द्वारा नियोजित 1.7 लाख से अधिक “पैरा-शिक्षकों” की चिंताओं का समाधान नहीं किया गया है। योगी आदित्यनाथ की सरकार, शिक्षा मित्रों को नियुक्ति से हटाने के कारण होने वाले उपद्रव (जुलाई-अगस्त) का समाधान करने में कामयाब नहीं रही है, लेकिन सरकार अभी तक एक उचित प्रस्ताव प्रदान करने या इस गतिरोध के घावों को भरने में सफल नहीं हो पाई है। इस मामले को केवल शिक्षा से संबंधित मामलों के रूप में ही माना जाना चाहिए, क्योंकि राज्य में बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार की सफलता के बाद, इस मुद्दे को राजनीतिक मकसद के रूप में सुलझाने की कोशिश की गई है।

शिक्षा मित्रों की भर्ती

वर्ष 1999 तक, उत्तर प्रदेश की सरकार साक्षरता में वृद्धि करने और शिक्षा को सर्वत्र जगह सुलभ बनाने के प्रयासों में एक प्रमुख रुकावट महसूस कर रही थी। पूरे राज्य के सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले योग्य शिक्षकों की संख्या बेहद कम थी। इसलिए सरकार ने उस समय प्रत्येक विद्यालय में 2 शिक्षा मित्रों को नियुक्त करने का फैसला लिया था। शिक्षा मित्र के पद के लिए उम्मीदवारों को न्यूनतम योग्यता के रूप में 12 वीं पास होना आवश्यक था। शिक्षा मित्रों की नियुक्ति ग्राम पंचायत और नगरपालिका परिषद के द्वारा की गई थी। इन शिक्षा मित्रों का प्रारंभ में वेतन 2,250 रुपये प्रति माह तय किया गया था, लेकिन शिक्षा मित्रों का वर्ष 2010 में वेतन वृद्धि के साथ 3,500 रुपये प्रति माह कर दिया गया था। वर्ष 2011 में, मायावती सरकार के मंत्रिमंडल ने राज्य में प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत 1.24 लाख शिक्षा मित्रों की सेवाओं के नियमितकरण के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी। उस प्रस्ताव ने राष्ट्रीय शिक्षक शिक्षा बोर्ड के नियमों के अनुसार, शिक्षा मित्रों को 2 वर्ष अनिवार्य प्रशिक्षण प्राप्त करने का एक जरिया भी प्रदान किया था।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला

हालाँकि, वर्ष 2015 तक उत्तर प्रदेश राज्य सरकार के खिलाफ योग्य शिक्षा मित्रों की भर्ती और सहायक शिक्षक की भूमिका में शिक्षा मित्रों की पदोन्नति के खिलाफ कई याचिका दायर की गईं। आलोचकों ने दावा किया कि राज्य की प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता में काफी कमी आ रही है और यह शिक्षा के लिए खतरनाक साबित होगा।

12 सितंबर 2015 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि राज्य सरकार ने इन पैरा शिक्षकों को नियमित करने के लिए असंवैधानिक कार्यवाही का प्रतिपालन किया है। इस समय राज्य सरकार की बागडोर समाजवादी पार्टी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के हाथों में थी। अदालत ने सहायक शिक्षकों के पद पर करीब 1.78 लाख शिक्षा मित्रों की नियुक्ति रद्द कर दी थी।

अदालत ने बेसिक टीचर सर्टिफिकेट (बीटीसी) और टीचर्स एलिजिबिलिटी टेस्ट (टीईटी) के योग्य पदों के उम्मीदवार की जगह, अयोग्य अनुबंधित पैरा-शिक्षकों की नियुक्ति पर कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की है।

सर्वोच्च न्यायालय का फैसला

देश के शीर्ष न्यायालयों में शुमार, भारत के सर्वोच्च न्यायालय में इस मामले की अपील की गई थी। 25 जुलाई को, एससी (सुप्रीम कोर्ट) ने उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा। इसके बाद, योगी आदिनाथ के नेतृत्व वाली सरकार ने राज्य के प्राथमिक विभाग में नियमित शिक्षक के रूप में काम करने वाले सभी शिक्षा मित्रों को समायोजित करने और खाली पदों पर नई नियुक्तियाँ करने का फैसला लिया। उसमें शिक्षा मित्रों के लिए प्रति माह 10,000 रुपये के वेतन का प्रावधान रखा गया।

एससी (सुप्रीम कोर्ट) ने फैसला किया कि शिक्षा मित्रों को हटाया नहीं जाएगा, लेकिन सहायक शिक्षक के पद पर बने रहने के लिए उन्हे पहले दो प्रयासों में टीईटी की परीक्षा उर्त्तीण करनी होगी। शिक्षा मित्रों को अनुभव के कारण एक सुविधा प्रदान की जाएगी कि पैरा शिक्षकों को प्रत्येक वर्ष शिक्षण में अनुभव के हिसाब से अतिरिक्त 2.5 अंक दिए जाएंगे। इस प्रकार टीचर्स एलिजिबिलिटी टेस्ट (टीईटी) में उर्त्तीण योग्य उम्मीदवार, शिक्षकों की रिक्तियों के लिए आवेदन करने के पात्र होंगे और उन्हें टीईटी में आयु प्रतिबंध में भी छूट प्रदान की जाएगी।

इन रियायतों के बावजूद, राज्य के शिक्षा मित्रों को सर्वोच्च न्यायालय का फैसला रास न आया और उन्होने लखनऊ और उत्तर प्रदेश के अन्य हिस्सों में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन करके अपनी भड़ास निकाली। सैकड़ों हजार पैरा शिक्षकों ने सड़कों पर विरोध प्रदर्शन करके, स्कूलों की कार्य पद्धति को काफी बाधित किया। मुख्यमंत्री योगी आदिनाथ ने आश्वासन दिया है कि सरकार के प्रयासों का विरोध केवल स्वीकार्य समाधान खोजने के लिए किया गया था। शिक्षा मित्रों के प्रतिनिधियों ने उनके अधिकार के लिए सरकार के साथ नियमित बहसें भी की हैं।

जब तक सरकार शिक्षा मित्रों के लिए कोई उचित समाधान पेश नहीं करती है, शिक्षा मित्रों से जुड़ा संकट, संभावित खतरा बना रहेगा और अगर इसके लिए उचित प्रक्रिया नहीं अपनाई गई, तो यह एक बार फिर सैकड़ों स्कूलों के कामकाज बाधित हो सकते हैं। हालाँकि, राज्य में बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार को पद पर आसीन हुए कुछ ही महीने हुए हैं, इसलिए सरकार को स्थिति को उचित तरीके से संभालने के लिए बहुत आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। यह वह समय है कि जब हम भारतीयों को राजनीति से सामाजिक मुद्दों का विखंडन करने की सीख मिलती है।