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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2018: किंवदंती, महत्व और समारोह

August 30, 2018
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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2018

‘वह जन्म जिसमें प्यार, ज्ञान और शरारत सभी एक साथ आते हैं उसे भगवान कृष्ण के जन्म के रूप में माना जाता है’ – गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को गोकुलष्टमी भी कहा जाता है, यह एक ऐसा त्यौहार है जो पूरे देश में श्रीकृष्ण के भक्तों द्वारा पूरे जोश और उत्साह के साथ भगवान कृष्ण के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। भगवान कृष्ण का अवतार पृथ्वी से सभी अंधकारों का अंत करने और बुराई को नष्ट करने का प्रतीक माना जाता है। यह त्यौहार दुनिया भर के अधिकतर हिंदुओं द्वारा मनाया जाता है। लोग अपने व्यस्त जीवन से समय निकालकर कृष्ण जन्माष्टमी का त्यौहार हर्षोल्लास से एक साथ मिलकर मनाते है। हिंदू कैलेंडर या पंचांग के अनुसार, यह त्यौहार सावन माह की समाप्ति के बाद आठवें दिन (अंधेरे पखवाड़े) कृष्ण पक्ष में पड़ता है।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2018: किंवदंती

कृष्ण के जन्म के पीछे की पौराणिक कथा (किवदंती) उनके जीवनकाल में होने वाली घटनाओं बहुत ही दिलचस्प है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब पापी और दुष्ट शक्तियों ने दुनिया भर में विनाश करना शुरू कर दिया, तो माँ पृथ्वी ने भगवान ब्रह्मा से आक्रामक परिस्थितियों को समाप्त करने का अनुरोध किया। भगवान ब्रह्मा ने माता पृथ्वी की इस चिंता को भगवान विष्णु के समाने रखा, जिसके फलस्वरूप उन्होंने पृथ्वी पर मौजूद सभी बुराइयों को मिटाने के लिए धरती पर जन्म लेने का आश्वासन दिया।

जैसा कि आश्वासन दिया गया था, भगवान विष्णु ने सावन की समाप्ति के बाद 8 वें दिन (अष्टमी) पर आधी रात को पृथ्वी पर कृष्ण के रूप में जन्म लिया। भगवान विष्णु के आठवें अवतार कृष्ण का जन्म मथुरा के एक कारागार में देवकी और वासुदेव के पुत्र के रूप में हुआ था। कृष्ण का जन्म उस समय हुआ जब धरती पर चारों तरफ उथलपुथल, अत्याचार, स्वतंत्रता की कमी और बुरी शक्तियां शासन कर रही थीं। भगवान कृष्ण के मामा राजा कंस के लिए भविष्यवाणी हुई थी कि उसकी मृत्यु उनके भांजे के हाथ होगी। कृष्ण के जीवन पर आने वाले संकट को जानकर उनके पिता वासुदेव ने, उन्हें तुरंत राजा कंस से दूर रखने के लिए गोकुल में यशोदा और नंद को सौंप दिया। इस लोककथा को उनके भक्तों द्वारा जन्माष्टमी के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है जो व्रत रखते हैं, कृष्ण के भक्ति गीत गाते हैं और कृष्ण के मंदिरों का भ्रमण करते हैं।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2018: महत्व

जन्माष्टमी का त्यौहार हिंदुओं द्वारा दुनिया भर में बहुत धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है, इसी तथ्य के कारण श्री कृष्ण भगवान विष्णु के सबसे शक्तिशाली मानव अवतारों में से एक है। भगवान श्रीकृष्ण हिंदू पौराणिक कथाओं में एक ऐसे भगवान है, जिनके जन्म और मृत्यु के बारे में विस्तृत से लिखा गया है। जब से श्रीकृष्ण ने मानव रूप में धरती पर जन्म लिया, तब से इन्हें लोगों द्वारा भगवान के पुत्र, एक प्यारा शरारती, एक मोहनी सूरत वाला प्रेमी, एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक और मुख्य शक्ति के रूप में पूजा जाता है। पृथ्वी पर श्रीकृष्ण के जन्म का मुख्य उद्देश्य उस समय व्याप्त सभी बुराइयों को खत्म करना, धरती से सभी बुरी शक्तियों को दूर करना और उस समय ‘धर्म’ की स्थापना करना जब इनके मामा कंस ने लोगों के जीवन को दुखदायी बना रखा था।

भगवद् गीता में एक लोकप्रिय कथन है- “जब भी बुराई का उत्थान और धर्म की हानि होगी, मैं बुराई को खत्म करने और अच्छाई को बचाने के लिए अवतार लूँगा।” जन्माष्टमी का त्यौहार सद्भावना को बढ़ाने और दुर्भावना को दूर करने को प्रोत्साहित करता है। यह दिन एक पवित्र अवसर के रूप में मनाया जाता है जो एकता और विश्वास का पर्व है।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2018: पूरे भारत में समारोह

श्रीकृष्णा का जन्मदिन देश में हर किसी के द्वारा बहुत ही उत्साह, भक्ति और उमंग के साथ मनाया जाता है। देश भर के शहरों में लोग उल्लास की भावना से अभिभूत हो जाते है। भक्तगण पूरे दिन उपवास रखते हैं। श्रीकृष्णा के जन्म की लोककथाएं मंदिरों और पूजा के समय परिवारों में सुनाई जाती है। देश के ओजस्वी युवा, आनंद में पूरी तरह से डूबे हुए, दही हांडी फोड़ने में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। कुछ जगहों पर, लोग भगवान कृष्ण के जीवन की घटनाओं पर आधारित रासलीला करते हैं। श्रीकृष्ण के जीवन पर आधारित नाटक और नृत्य प्रदर्शन भी आयोजित किए जाते हैं।

इस शुभ अवसर पर श्रीकृष्णा की मूर्ति को पालने में रखा जाता है और घी, दूध, गंगाजल, शहद, तुलसी पत्तियों से बने पंचामृत से नहलाया जाता है। यह पंचामृत भक्तों में प्रसाद के रूप में भी वितरित किया जाता है। भक्त खुशी से पालने को झुलाते है हैं और अपने जीवन में श्रीकृष्ण के आशीर्वाद का अभिनंदन करते हैं। जहां समारोह हो रहे होते हैं वहाँ आरती, मंत्र, शंख की ध्वनि, भजन, कीर्तन हर जगह एक आम परिदृश्य बन जाता है।

मंदिरों में समारोह  

जन्माष्टमी के अवसर पर कृष्ण मंदिरों को रोशनी और फूलों से बहुत ही खूबसूरती से सुसज्जित किया जाता है जिससे रात में एक शानदार दृश्य दिखाई देता हैं। इस त्योहार में लोग नए कपड़े पहनते हैं और अपने परमप्रिय भगवान श्री कृष्ण के मंदिर में बड़े ही समर्पण भाव के साथ पूजा तथा दर्शन करने के लिए जाते हैं। मंदिरों में पुजारी स्तुति और भजन मंत्रों का गुणगान करते हैं। भारत के कुछ मंदिरों में भगवत गीता का पाठ भी किया जाता है। फूलों की बढ़िया सुगंध, कपूर जलने की सुखदायक सुगंध और मंदिरों में बजने वाली घंटियों की आवाज संपूर्ण वातावरण में पवित्रता से समाहित हो जाती है।

मथुरा और वृंदावन में समारोह

मथुरा और वृंदावन में मनाए जाने वाले जन्माष्टमी के समारोहों की सभी व्यक्तियों के द्वारा बार-बार प्रशंसा की जाती है। यहाँ इस त्योहार को बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है और उन स्थानों को भी दिखाया जाता है जहाँ भगवान श्री कृष्ण ने अपना अधिकांश जीवन व्यतीत किया था। मथुरा और वृंदावन के मंदिरों में रात में भगवान श्री कृष्ण के बचपन पर आधारित, नाटक, नृत्य प्रदर्शन और जागरण के समारोह प्रदर्शित किए जाते हैं।

महाराष्ट्र और गुजरात में समारोह

जन्माष्टमी के पर्व को मुख्य रुप से पुणे और मुंबई (महाराष्ट्र) में मनाया जाता है और गुजरात राज्य के द्वारका में बड़े पैमाने पर लोगों की समूह इस त्यौहार को मनाने के लिए एकत्रित होता है। यहाँ कई जगहों पर दही हांडी प्रतियोगित का आयोजन भी किया जाता है और जहाँ इस प्रतियोगिता में बहुत से लोग भाग लेते हैं। कुछ स्थानों पर, समय के साथ मटकी में मक्खन के बदले पैसे रखे जाते थे। इस प्रतियोगित में हांडी तोड़ने का प्रबंध किया जाता है जिसमें जीतने वाली टीम को पुरुस्कार दिया जाता है।

दक्षिण भारत में समारोह

यहाँ बहुत से भक्त, चावल के आटे से बनी रंगोली जमीन पर बनाते हैं और अपने घर के प्रवेश द्वार पर छोटे श्री कृष्ण के पैरों के पदचिन्हों बनाते हैं। यह घरों में भगवान श्री कृष्ण के स्वागत के चित्रण को दर्शाता है।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2018: मुहूर्त

तिथि: 03 सितंबर 2018

निशिता पूजा का समय: 11:57 अपराह्न से 12:43 पूर्वाह्न तक

पराना समय: 8:05 अपराह्न के बाद (3 सितंबर)

रोहिणी नक्षत्र का समापन: 8:05 अपराह्न

जन्माष्टमी तिथि समरोह का प्रारंभ: रात 8:47 (2 सितंबर)

जन्माष्टमी तिथि समारोह का समापन: रात 07:19 (3 सितंबर)

दही हांडी फोड़ प्रतियोगिता: 3 सितंबर 2018

कृष्णा जन्माष्टमी 2018: दर्शन करने योग्य श्रीकृष्ण मंदिर

इस्कॉन मंदिर

बांके बिहारी मंदिर, वृंदावन

द्वारकाधीश मंदिर द्वारका

कृष्ण बलराम मंदिर, वृन्दावन

उडुपी कृष्ण मंदिर

गुरुवायूर मंदिर, केरल

गोविंद देव जी मंदिर, जयपुर

राजगोपाला स्वामी मंदिर, तमिलनाडु

जगन्नाथ मंदिर, पुरी, ओडिशा

प्रेम मंदिर वृंदावन

श्री नाथजी मंदिर, नाथद्वारा, राजस्थान

 

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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी 2018: किंवदंती, महत्व और समारोह
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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को गोकुल अष्टमी भी कहा जाता है, यह एक ऐसा त्योहार है जिसमें पूरे देश में भक्तों द्वारा पूर्ण जोश और उत्साह के साथ भगवान श्री कृष्ण के जन्म का जश्न मनाया जाता है।
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