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भारत में सरोगेसी कानून क्या है?

February 28, 2018
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बॉलीवुड निर्माता व निर्देशक करण जौहर, 7 फरवरी 2017 को सरोगेसी के माध्यम से जुड़वा बच्चों (एक लड़का और एक लड़की) के एकल अभिभावक बन गए हैं। यश और रोही नाम के इन जुड़वां बच्चों का जन्म मसरानी अस्पताल में हुआ था। इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) विशेषज्ञ डॉ. जतिन शाह, जो मुंबई में ग्रांट रोड पर एक क्लिनिक चलाते हैं, ने इस कार्यप्रणाली को पूरा किया था।

संयोग से, बॉलीवुड अभिनेता तुषार कपूर भी इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) और सरोगेसी के माध्यम से, जून 2016 में एकल अभिभावक बने हैं। जून 2013 में, अभिनेता शाहरुख खान के तीसरे बच्चे का जन्म भी उसी अस्पताल में एक सरोगेट माँ (किराये की कोख) की सहायता से हुआ था। करण जौहर और तुषार कपूर दोनों के मामले में यह कहा गया है कि शुक्राणु इनके थे, परन्तु अंडाणु दाता अर्थात् सरोगेट माँ के थे।

सरोगेसी और सरोगेट माँ क्या है?

जब एक बच्चे की चाह रखने वाले दम्पति के लिए कोई अन्य औरत गर्भावस्था धारण करती है और बच्चे को जन्म देती है, तो उसे सरोगेसी कहते हैं। सरोगेसी दो प्रकार की पूर्ण और आंशिक हो सकती हैं:

पूर्ण सरोगेसी

इसे ‘पोषिता’ या ‘जैस्टेशनल’ के रूप में भी जाना जाता है। पूर्ण सरोगेसी तब होती है, जब भ्रूण को एक सरोगेट माँ (किराए की माँ) के गर्भ में स्थापित किया जाता है। भ्रूण निम्न विधियों में से किसी के द्वारा भी बनाया जा सकता है:

  • अंडाणु और शुक्राणु दोनों वाँछित माता-पिता के होते हैं।
  • वाँछित पिता के शुक्राणु के साथ दाता के अंडाणु को निषेचित किया जाता है।
  • जब दाता से प्राप्त अंडाणु और शुक्राणु दोनो का उपयोग करके भ्रूण बनाया जाता है।

आंशिक सरोगेसी

‘स्पष्ट’ या ‘पारंपरिक’ सरोगेसी के नाम से जाने जानी वाली आंशिक सरोगेसी में कृत्रिम वीर्य रोपण या अंतर्गर्भशयी वीर्य रोपण की प्रक्रिया शामिल होती है, जिसमें वाँछित पिता के शुक्राणु तथा सरोगेट के अंडाणु का उपयोग किया जाता है।

भारत में सरोगेट कानून

भारत अपने यहाँ के सरोगेसी की प्रक्रिया के कम लागत वाले फैक्टर के कारण अंतरराष्ट्रीय सरोगेसी में, एक नेता के रूप में उभर कर सामने आया है और इस प्रकार यह प्रजनन पर्यटन में भी सबसे शीर्ष पर है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा वर्ष 2002 में इसे निर्धारित दिशा निर्देशों के जरिए कानूनी तौर पर वैध बना दिया गया था। वास्तव में वर्ष 2008 में सुप्रीम कोर्ट ने सरोगेसी के मामले में, तिजारती सरोगेसी को अनुमति प्रदान कर दी थी। पूरे भारत में 3,000 से अधिक प्रजनन वाले क्लीनिकों के साथ सरोगेसी व्यवसाय की कीमत 400 मिलियन अमरीकी डॉलर से भी अधिक है।

हालांकि, तुषार कपूर द्वारा सरोगेसी के माध्यम से एकल अभिवावक बनने का निर्णय लेने के बाद, केंद्र सरकार ने बाँझपन उपचार के सरोगेसी से गमेंट के लिए नए दिशा निर्देश तैयार करने का निर्णय लिया है। नए प्रस्तावित विधेयक के दिशा निर्देशों के अनुसार, करण जौहर सरोगेसी का लाभ लेने वाले आखिरी एकल पुरुष (या महिला) में शामिल हो सकते हैं, क्योंकि पिछले साल अगस्त में केंद्रीय मंत्रि मंडल द्वारा पारित एक बिल के अनुसार, एकल पुरुष, महिला और समलैंगिक जोड़ों को सरोगेसी का चयन करने से प्रति बंधित कर दिया गया है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा द्वारा प्रस्तावित की गई सरोगेसी (विनियमन) विधेयक की विशेषताएं निम्न लिखित हैं:

  • मसौदा विधेयक के अनुसार, वाणिज्यिक सरोगेट पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। एक सरोगेट माँ को चुनने वाली महिला को कोई भी भुगतान करना वर्जित है।
  • नए प्रस्तावित विधेयक के अनुसार एकल, विदेशी और भारतीय मूल के लोगों के लिए भी सरोगेट पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
  • केवल 25 से 35 साल के सगे-संबधी ही सरोगेट प्रक्रिया में भाग ले सकते हैं।
  • एक सरोगेट माँ बनने वाली महिला का विवाह होना चाहिए और उसका अपना एक बच्चा होना चाहिए।
  • मसौदा बिल ने अंडाणु प्रतिदान पर भी रोक लगाई है।
  • दूसरे शब्दों में, सरोगेसी को केवल एक परोपकारी रूप में अनुमति प्रदान की जाएगी और किराए की माँ अर्थात् सरोगेट को कोई भी मौद्रिक लाभ नहीं दिया जाएगा।

जनवरी में, राज्य सभा के अध्यक्ष ने संसदीय स्थायी समिति को स्वास्थ्य पर आधारित विधेयक प्रस्तुत किया और तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा। यह विधेयक वर्तमान में समिति के साथ विचाराधीन है। पिछले साल मसौदा विधेयक पारित होने के बाद डॉक्टरों ने एकल पुरुष और महिलाओं के लिए 95 प्रतिशत सरोगेट प्रक्रिया को बंद कर दिया है।

सरोगेसी को नए विधेयक से नुकसान

नए विधेयक में सब होगा, लेकिन यह भारत में सरोगेसी को पूर्ण रूप से गायब कर देगा। इस प्रक्रिया का व्यवसाय करने वाले डॉक्टरों के अनुसार, चिकित्सा की दृष्टि से सरोगेसी में काफी संख्या में लोग अभिप्रेत हैं और एकल पुरुष या  महिलाओं के मामलों में सरोगेसी को नग्ण्यकर दिया गया है। विधेयक की सीमाएं केवल एकल और समलैंगिकों को ही माता-पिता बनना असंभव नहीं बनाएंगीं, बल्कि यह बाँझपन के मामलों के साथ-साथ विषमलैंगिक जोड़ों के लिए भी सरोगेसी के माध्यम से बच्चे पाने की आशाओं को दुष्कर करेंगी।

नए विधेयक में केवल सगे-संबधी और वह भी जो 25 से 35 साल की उम्र के बीच के हैं, को ही सरोगेट माँ बनने की अनुमति दी गई है, लेकिन बाँझपन के मामलों के साथ-साथ विषमलैंगिक जोड़ों के लिए माता-पिता बनने की इस प्रक्रिया का उपयोग करना दुष्कर है।

वर्ष 2002 के बाद से आज तक विदेशी भारत में सरोगेसी के माध्यम से बच्चा प्राप्त करने के लिए आते थे, लेकिन अब भारतीय दम्पत्ति के साथ-साथ एकल और समलैंगिक भी देश से बाहर जाने के लिए मजबूर हो जाएंगे, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका में जहाँ यह सरोगेसी प्रक्रिया का अनुसरण करना वैध हैं। इससे मध्यवर्गीय आबादी सबसे अधिक प्रभावित होगी, क्योंकि वह विदेशों से इस कार्य प्रणाली को अपनाने में समर्थन हीं हैं।

गुजरात के आनंद नगर की एक सरोगेसी विशेषज्ञ डॉक्टर नयना पटेल के अनुसार, “भारत को इस क्षेत्र में विश्व का नेता बनने का अवसर मिला है, लेकिन सरकार ने इसकी बजाय कठोर कानून के साथ एक प्रतिगामी कदम उठाने का फैसला किया है।”

प्रस्तावित विधेयक के कारण परिवारों में भावनात्मक ब्लैकमेल जैसे नकारात्मक परिणाम के साथ-साथ सरोगेसी में अनियमित काले बाजार को बढ़ावा मिलेगा।

इंडियन सोसाइटी फॉर असिस्टेड रिप्रोडक्शन (आईएसएआर) के महासचिव डॉ. ऋषि केशपई ने कहा कि वह संसदीय समिति के लिए एक विरोध-पत्र प्रस्तुत करने की प्रक्रिया में थे। डॉ. पई ने कहा कि “हमें एक सहमति लक्ष्य प्राप्त करने और अच्छा कानून लागू करने की जरूरत है।”

सरोगेसी की बजाय गोद लेना की प्रकिया?

आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2016 तक भारत  में अनाथ बच्चों की संख्या 50,000 है, जिन्हें गोद लियाजा सकता है। शायद, केंद्रीय मंत्रालय द्वारा  प्रस्तावित नया  विधेयक आर्थिक रूप से विषमलैंगिक जोड़ों, एकल और समलैंगिकों को अनाथों  को  अपनाने का विकल्प चुनने के लिए प्रोत्साहित  करेगा। इस दुनिया में एक नया जीवन लाने के बजाय,क्यों न हम उन बच्चों को एक नया जीवन दें, जिनका इस दुनिया  में कोई नहीं है।