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मार्गदर्शक सिद्धांत

October 11, 2017
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मार्गदर्शक सिद्धांत

भारतीय संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 36 से 51 तक में राज्य के नीति निर्देशक तत्व शामिल किए गए हैं, जिसमें नीतियों और कानूनों की स्थापना करते समय राज्य द्वारा व्यापक निर्देश या दिशा-निर्देश लागू किए जाते हैं। भारतीय संविधान के नीति निर्देशक तत्वों के अन्तर्गत राज्य की विधायी और कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग किया जाता है।

भारत के स्वतंत्र होने के बाद तुरंत ही भारतीय संविधान लिखा गया था और संविधान के योगदानकर्ता भारतीय अर्थव्यवस्था की बुरी स्थिति तथा राष्ट्रीय एकता की नाजुक स्थिति से अच्छी तरह परिचित थे। अतः उन्होंने समाज के समग्र विकास के लिए नीति निर्देशक तत्व शीर्षक के तहत दिशा निर्देशों का एक संग्रह बनाया।

आयरलैंड के संविधान से प्रभावित होकर, भारत के संविधान से नीति निर्देशक तत्वों का मौलिक ज्ञान प्राप्त होता है और इसके अन्तर्गत आने वाले सामाजिक न्याय, आर्थिक कल्याण, विदेश नीति और कानूनी तथा प्रशासनिक मामलों से संबंधित दिशा निर्देशों के माध्यम से ही राष्ट्र का सम्पूर्ण विकास होता है। निर्देशक सिद्धांत लोकतांत्रिक समाजवादी आदेश के विधिवत प्रारुप हैं, जिसकी कल्पना नेहरू ने गांधीवादी विचारों के साथ मिलकर की थी।

हालाँकि, नीति निर्देशक तत्वों को किसी अदालत में लागू नहीं किया जा सकता और उनके अनुपालन के लिए राज्य पर भी अभियोग नहीं लगाया जा सकता है। निर्देशक सिद्धांत वास्तव में संविधान का एक बहुत दिलचस्प और आकर्षक हिस्सा हैं क्योंकि ये देश के आदर्शों के प्रतीक हैं, जबकि इन आदर्शों को आवश्यक नहीं माना गया है।

विभाजित वर्ग

निर्देशक सिद्धांत निम्नलिखित तीन वर्गों में विभाजित हैं:

  • समाजवादी सिद्धान्त: इस भाग में भारत के लोगों का कल्याण, देश के भौतिक संसाधनों का बराबर वितरण, बच्चों और युवाओं के मौलिक अधिकारों की रक्षा, समान कार्य के लिए समान वेतन और शिक्षा आदि के लिए निर्देश दिए गए हैं।
  • गांधीवादी सिद्धान्त: इन निर्देशों के अन्तर्गत ग्राम पंचायतों को संगठित, मादक पेय और गौ-हत्या, सुरक्षित जीवन, सभ्य जीवन, कुटीर उद्योगों को बढ़ावा और 14 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा आदि के लिए दिशानिर्देश हैं।
  • उदार लोकतांत्रिक सिद्धान्त: इस खंड में पूरे देश में एक समान नागरिक संहिता के लिए दिशानिर्देश दिए गए हैं और विधानसभा के लिए आदेश जारी करने या कानून बनाने और उनका पालन करने के लिए विधायिकाओं का निर्माण किया गया हैं।

विशेषताएं

संक्षेप में, निर्देशक सिद्धांतों में राज्यों के लिए निम्न दिशानिर्देश दिए गए हैं:

  • राज्य लोगों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए प्रयास करें।
  • सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय के माध्यम से सामाजिक व्यवस्था बनाए रखें।
  • आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए राज्य प्रयास करें।
  • स्थिति और अवसरों में असमानता को हटाएं।
  • नागरिकों के लिए आजीविका के पर्याप्त साधन सुरक्षित करें।
  • पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए समान कार्यों के अवसर प्रदान करें।
  • समाज के सभी वर्गों के बीच भौतिक संसाधनों के समान वितरण के माध्यम से विशिष्ट व्यक्तियों के पास धन संग्रह होने से रोकें।
  • बाल दुर्व्यवहार और श्रमिक शोषण की रोकथाम करें।
  • भौतिक और नैतिक परित्याग के विरूद्ध बच्चों का संरक्षण करें।
  • आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग द्वारा न्याय प्राप्त करने के समान अवसरों के लिए नि:शुल्क कानूनी सलाह प्रदान करें।
  • ग्राम पंचायतों का संगठन करना, जो न्याय देने के लिए एक स्वायत्त संस्था के रूप में काम करे।
  • बेरोजगार, बीमार, विकलांग, बुजुर्ग और जरूरतमंदों की सहायता करें।
  • उचित कामकाजी परिस्थितियां और जीवन निर्वाह के लिए मजदूरी सुनिश्चित करें।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर उद्योगों का प्रसार करें।
  • राज्य को भारत के सभी नागरिकों के लिए एक समान व्यवहार संहिता अपनाने का प्रयास करना चाहिए।
  • 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करें।
  • समाज के अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य कमजोर वर्गों का आर्थिक और शैक्षिक उत्थान करें।
  • मादक पेय, बेहोशी की दवा और गौ-हत्या को निषेध करें।
  • जंगलों और जंगली जीवों की सुरक्षा करके पर्यावरण का संरक्षण करें।
  • ऐतिहासिक और कलात्मक स्मारकों, स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण करें और नष्ट होने से बचायें।
  • अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा का संवर्धन और रखरखाव, राष्ट्रों के बीच न्यायसंगत और सम्मानपूर्ण संबंध, अंतर्राष्ट्रीय कानून और संधि दायित्वों के लिए सम्मान और मध्यस्थता द्वारा अंतर्राष्ट्रीय विवादों का हल सुनिश्चित करें।

निर्देशक सिद्धांतों का कार्यान्वयन

जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, मौलिक अधिकारों के विपरीत जो भारतीय संविधान द्वारा प्रत्याभूत हैं, नीति निर्देशक तत्व के अंतर्गत वैधानिक स्वीकृत नहीं हैं और इन्हें कानून की अदालत में लागू नहीं किया जा सकता है। हालाँकि, राज्य यथासंभव निर्देशक सिद्धांतों को लागू करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। 2002 में किए गए 86वेँ संवैधानिक संशोधन में एक नए उल्लेखनीय लेख, अनुच्छेद 21-ए को सम्मिलित किया गया है, जिसमें 14 वर्ष तक की उम्र के बच्चों के लिए नि: शुल्क शिक्षा अनिवार्य की गई है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के हितों की सुरक्षा के लिए अत्याचार अधिनियम की रोकथाम, पृथक भूमि सुधार अधिनियम और न्यूनतम मजदूरी अधिनियम (1948) आदि निर्देशक सिद्धांतों के कार्यान्वयन के कुछ अन्य उदाहरण हैं। निर्देशक सिद्धांतों के दिशानिर्देशों के आधार पर, भारतीय सेना ने 37 संयुक्त राष्ट्र शांति-स्थापना अभियानों में भाग लिया है।

निष्कर्ष

इस तथ्य के बारे में कोई संदेह नहीं है कि भारतीय संविधान के निर्देशक सिद्धांत एक प्रकार से शिक्षाप्रद निधि और नैतिक अनुदेश हैं और इस महान राष्ट्र के आदर्शों के प्रतीक हैं। अम्बेडकर ने उन्हें भारत के राजनीतिक लोकतंत्र से आर्थिक लोकतंत्र में परिवर्तन के लिए शक्तिशाली उपकरण माना है। एक उज्जवल भविष्य के लिए ये निर्देश व्यक्तिगत और जनहित स्वतंत्रता दोनों के संतुलित समावेश के माध्यम से सही तरीके को खोजने में मदद करेंगे। शिक्षा के इस साधन को पूर्ण मन से अपनाया जाना चाहिए जिससे कि भारत को शक्तिशाली बनने में मदद मिल सके।