“भूमि” मूवी रिव्यू – एक घिसी-पिटी कहानी का सुस्त प्रतिपादन
कलाकार- संजय दत्त, अदिति राव हैदरी, शेखर सुमन, शरद केलकर
निर्देशक – ओमंग कुमार
डायरेक्टर – भूषण कुमार, संदीप सिंह, ओमंग कुमार
कहानी – संदीप सिंह
पटकथा – राज शांडिल्या
छायांकन – आर्टुर ज़ुरावस्की
संपादन – जयेश शिखरखने
बैकग्राउंड स्कोर – इस्माइल दरबार
प्रोडक्शन हाउस – टी-सीरीज, लेजेंड स्टूडियोज
अवधि – 2 घंटे 15 मिनट
सेंसर रेटिंग – यू / ए
बॉलीवुड की फिल्म में फिर से बलात्कार और बदला लेने की कहानी को दोहराया गया है। मातृ और मॉम फिल्म के बाद, भूमि तीसरी फिल्म है जिसमें एक जवान महिला के बलात्कार की दयनीय कहानी है और उसके पिता द्वारा बदला लेने को दर्शाया गया है। चूँकि इसका कथानक कोई नया नहीं है, हम बहुत उम्मीदों के साथ फिल्म में संजय दत्त की वापसी का इंतजार कर रहे थे, इस फिल्म में एक पिता-बेटी के रिश्ते की बरीकियों, पीड़ित महिला का दर्द या उसका बदला लेने की कहानी है। अफसोस की बात है, भूमि फिल्म इन सभी मामलों को सही तरीके से दर्शाने में विफल हो गई है। वास्तव में बहुत अच्छे मुद्दे को उजागर करने के बावजूद, फिल्म लोगों प्रभावित करने में विफल रहती है।
कथानक
वही पुराना घिसा-पिटा कथानक है। इस फिल्म में अरुण (संजय दत्त), जोकि एक विधुर है, एक छोटे से शहर (आगरा) की लड़की भूमि (अदिति राव हैदरी) को मुख्य भूमिका में दिखाया गया है। फिल्म भूमि में पिता और बेटी असाधारण रूप से एक – दूसरे से जुड़े हुए हैं और अरुण के मित्र (शेखर सुमन) का भी अहम किरदार निभाया है। इसके अलावा पड़ोस में रहने वाला एक युवा विशाल (पुरु छिब्बर) भूमि से एकतरफा प्यार करता है और अस्वीकृति मिलने पर उसके दिल को ठोस पहुँचती है। विशाल अपने दबंग चचेरे भाई धौली (शरद केलकर) और एक दोस्त गुलाब की मदद से, शादी से ठीक एक दिन पहले भूमि का अपहरण करके उसके साथ बलात्कार करता है। जिसके बाद, उसकी शादी टूट जाती है और न्याय पाने के लिए वह अदालतों तक पहुँचती है। भूमि एक अश्लील अपहरण और एक अन्य हमले के बाद भी न्याय पाने में असफल हो जाती है। अरूण और भूमि सब कुछ भूलकर अपनी जिन्दगी में आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं लेकिन समाजिक दबाव उनके घावों को जिन्दा रखते हैं। अंत में, पिता और बेटी कानून अपने हाथों में ले लेते है और बलात्कारियों को दंडित करते हैं।
समीक्षा
अगर आपने भूमि का ट्रेलर देखा है, तो कथानक बिल्कुल स्पष्ट रूप से नजर आता है। निर्देशक ओमंग कुमार ने फिल्म की शुरूआत भूमि के अपहरण के एक दिलचस्प रोमांच से शुरू की है। इंटरवल के बचे हुए हिस्से में बैक स्टोरी को दिखाया गया है। इसके साथ ही समस्या यह है कि अब इस फिल्म से हमारी उम्मीदें बहुत अधिक हैं। हालांकि फिल्म इंटरवल से पहले काफी अच्छी दर्शायी गई है, जो उम्मीद के मुताबिक है। हम हमेशा उस मोड़ का इंतजार करते रहते हैं, जिसमें भूमि के लिए हमारी आँखों में आँसू आए। यह फिल्म हमें याद दिलाएगी कि यह फिल्म उसी निर्देशक की है, जिसने हमें मैरी कॉम (2014) और सरबजीत (2016) जेैसी बेहतरीन फिल्म दी थी।
फिल्म में हैदरी का अभिनय काफी प्रशंसनीय है, जो उन्होंने एक आत्मविश्वास से भरी हुई लड़की के रूप में अविश्वसनीय रोल में निभाया है, इस दुखद स्थिति में अपने पिता को साहस दिलाती है और इससे उबरने की कोशिश करती है। संजय दत्त की वापसी, यही एकमात्र तथ्य है कि उनके बढ़िया अभिनय से हमें खुशी मिलती है, उन्होंने अपनी उम्र के हिसाब से भूमिका निभाने को चुना है। हालांकि, यह अभिव्यक्तों के घिसे-पिटे संग्रह में सुधार नहीं करता है, जिसकी उम्मीद हमने उनसे लगाकर रखी थी। फिल्म का संगीत काफी मनोरंजक है लेकिन फिर भी यह भूमि को बेहतर नहीं बनाता है। इंटरवल के बाद, फिल्म पूरी तरह से नीरस हो जाती है। ग्राफिक हिंसा के दृश्य नीरसता को गायब करने में सफल हो जाते हैं लेकिन सबसे अच्छी बात यह है कि फिल्म के आधे भाग के बाद, आपको अंत तक पॉपकॉर्न की चाहत होगी।
पिछले कुछ हफ्तों में सचिन-जिगर के कई गीत रिलीज हो चुके हैं लेकिन शायद यह जोड़ी हालिया के एलबमों में सबसे बेहतरीन है। फिल्म का “ट्रिप्पी-ट्रिप्पी” (निराशाजनक) गीत को सबसे अच्छा नहीं कह सकते हैं, ‘लग जा गले’ सर्वश्रेष्ठ गीत है और ‘विल यू मैरी मी?’ एक शानदार गीत है, जो थिरकने पर मजबूर कर सकता है।
अच्छा क्या है, बुरा क्या है?
भूमि फिल्म में अदिति राव हैदरी ने सबसे शानदार अभिनय किया है और अपनी भूमिका को बखूबी से निभाया है। इन्होंने यह साबित कर दिया है कि वह एक बेहतरीन अभिनेत्री हैं, हम केवल यही आशा करते हैं कि आने वाले वर्षों में इनके लिए बॉलीवुड में विकल्प बनते रहे। हालांकि, वेशभूषा (कॉस्ट्यूम) के मुद्दों पर विभिन्न समाचार रिपोर्टों के बावजूद, वेशभूषा डिजाइनर चंद्रकांत सोनवणे ने एक असाधारण काम किया है। फिल्म की कोरियोग्राफी एक अन्य आकर्षण उत्पन्न करती है- कुछ पूरी तरह से भूमि को असफल होने से बचाता है।
हमें फिल्म का निर्देशन भ्रमित करता है और इसलिए जब दत्त, खलनायकों को डराने की कोशिश करते हुए दिखाई देते हैं, तो जल्द ही वह बॉलीवुड शैली के रक्तपात के पैमाने से नीचे पहुँच जाते है। फिल्म का संपादन भी ढीला-ढाला है।
हमारा फैसला
इस वीकेंड पर आप घर पर रहें, शॉपिंग करने के लिए जा सकते हैं, गरबा और डंडिया के कार्यक्रमों में भाग लेने की योजना बनाएं, अपने इलाके में माता का जगराता और चौकी में भाग लें और अगर कुछ भी करने को नहीं है, तो टेलीविजन पर कुछ पुरानी बेहतरीन फिल्म देखें। भूमि वीकेंड को अच्छा बनाने वाली फिल्म नहीं है।