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मूवी रिव्यूः पैडमैन

February 12, 2018
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मूवी रिव्यूः पैडमैन

कलाकारः अक्षय कुमार, सोनम कपूर, राधिका आप्टे

निर्देशकः आर. बाल्की

प्रोडूयसरः ट्विंकल खन्ना

प्रोडक्शन हाउसः कोलंबिया पिक्चर्स, होप प्रोडक्शंस, क्रियाज एंटरटेनमेंट, मिसेजफनीबोन्स मूवीज

लेखकः आर. बाल्की

सिनेमेटोग्राफीः पी.सी. श्रीराम

संगीतः अमित त्रिवेदी

शैली: जीवनी कॉमेडी ड्रामा

कथानकः आर. बाल्की द्वारा निर्देशित फिल्म पैडमैन आज के समाज में मेंस्ट्रुअल हाइजीन (मासिक धर्म) की स्वच्छता के बारे में बताती है। यह फिल्म “द सैनिटरी मैन ऑफ सेक्रेड लैंड” पर आधारित है, बॉलीवुड अभिनेत्री ट्विंकल खन्ना द्वारा लिखी एक छोटी कहानी है, जो इस फिल्म की निर्माता भी हैं। ट्विंकल की यह फिल्म अरुणाचलम मुरुगनाथम के जीवन से प्रेरित है, जो तमिलनाडु के कोयम्बटूर में एक साधारण धातुकर्मी (लोहार) है, बाद में यह एक सामाजिक कार्यकर्ता बन जाता है और ग्रामीण भारत में मेंस्ट्रुअल हाइजीन (मासिक धर्म) की स्वच्छता की अवधारणा को ध्यान में रखकर कम लागत वाली सैनिटरी नैपकिन बनाने के लिए क्रांतिकारी बदलाव लाता है। उन्होंने भारत में इस मुद्दे को उस समय एक स्पष्टवादी और दृढ़ संकल्प वक्ता के रूप में उठाया, जब प्रगतिशील दुनिया भर के लोग इसके बारे में बात करने में भी शर्म करते थे और यह कार्य करके उन्होंने समाज की पुरानी और शर्म भरी रूढ़िवादी सोच को चुनौती दी। अरुणाचलम मुरुगनाथम ने सैनिटरीपैड बनाने की मशीन निर्मित की, इस आविष्कार के लिए उनको पुरस्कार भी मिला और इन सैनिटरी पैडों ने महिलाओं को सशक्त बनाने में योगदान दिया है क्योंकि यह स्वतंत्र रूप से जिंदगी बिताने में सहायता करते हैं।

मूवी रिव्यूः इस फिल्म में, अक्षय कुमार ने मध्य प्रदेश के एक गांव में रहने वाले एक मैकेनिक लक्ष्मीकांत चौहान की भूमिका निभाई है। गांव के लोगों द्वारा लक्ष्मीकांत को एक पागल का नाम दिया जाता है क्योंकि वह महिलाओं और उनकी समस्याओं पर बहुत ज्यादा ध्यान केंद्रित करने लगता है। लक्ष्मीकांत को गायत्री (राधिका आप्टे) से शादी करने के बाद पता चलता है कि कैसे उसकी पत्नी को मासिक धर्म के दौरान अपने घर से अलग रहना पड़ता है। फिर उसे धीरे-धीरे यह भी पता चलता है उनकी पत्नी मासिक धर्म के दौरान गंदे कपड़े का इस्तेमाल करने पर पूर्णता निर्भर है, जिसके प्रयोग से विभिन्न स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों का खतरों हो सकता है और उसकी पत्नी स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रसित हो सकती है। लक्ष्मीकांत को यह भी पता चलता है कि उसकी पत्नी ने सैनिटरी पैड का इस्तेमाल कभी नहीं किया है क्योंकि वे अत्याधिक कीमती थे। इस लिए, वह अकेले ही सस्ते सैनिटरी पैड बनाने के कयावद में जुट जाता है।

इस फिल्म में कई ऐसे दृश्य हैं जो न केवल हास्य पैदा करते हैं बल्कि व्यंग्यपूर्ण भी प्रतीत होते हैं। उदाहरण के लिए, एक दृश्य में, लक्ष्मीकांत से औषधि-विक्रेता “सैनिटरी पैड” को धीरे से माँगने के लिए कहता है और औषधि विक्रेता आगे कहता है कि इसका नाम जोर से नहीं बोलना चाहिए क्योंकि महिलाएं मौजूद हैं, तो लक्ष्मीकांत इसका जवाब देता है कि ­“यही तो इसका उपयोग करती हैं।” एक अन्य दृश्य में, उसकी माँ घर छोड़ने की धमकी देती है और कहती है कि वह उन्हें इंदौर जाने के लिए मजबूर कर रहा है। इनके अलावा फिल्म में कई दृश्य हैं, जो ऐसी ही सामग्री से भरे हैं।

सोनम कपूर के किरदार ने लक्ष्मी प्रसाद के लिए शानदार उत्प्रेरक के रूप में कार्य किया है। वह एक ऐसी महिला के रूप में दिखाई देती है, जिसके अंदर शहरी, तर्कसंगत और मानवीय संवेदनाएं विद्यमान हैं। सोनम कपूर के किरदार को आर.बाल्की ने वास्तव में बहुत ही शानदार ढ़ंग से तैयार किया है। इस फिल्म में बाल्की ने मुख्य रूप से मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता पर प्रकाश डाला है।

हमारे फैसला: अक्षय कुमार ने कई मुसीबतों में घिरे एक आदमी का किरदार बखूबी निभाया है। उनकी इन मुसीबतों में संदेह, अंधविश्वास, उपहास, निंदा और यहाँ तक कि गांव से बहिष्कार भी शामिल है। सोनम कपूर का अभिनय भी अनूठा है क्योंकि उन्होंने अपनी भूमिका को बहुत ही शानदार ढंग से निभाया है। राधिका आप्टे को अगर और मौका दिया जाता तो वे अपने शानदार कौशल को और अधिक दिखा पातीं। लेकिन कुल मिलाकर फिल्म देखने योग्य है, मुख्यधारा की यह एक ऐसी पहली फिल्म है जिसमें पैड के बारे में बात करने की हिम्मत की गई है।

फिल्म का पहला हाफ ऐसा लगता है कि किसी चीज को बार-बार दिखाया जा रहा है, लेकिन दूसरा हाफ इसका बेहद मनोरंजक और रोचक लगता है।