Home / Movies / मूवी रिव्यू: वोदका डायरीज

मूवी रिव्यू: वोदका डायरीज

January 20, 2018
by


वोदका डायरीज

कलाकारः के के मेनन, राइमा सेन, मंदिरा बेदी, शारिब हाशमी

निर्देशकः कुशल श्रीवास्तव

निर्माताः विशाल कारेरा, विशाल राज, कुशल श्रीवास्तव, अतुल पुन्ज, विवेक सुधींद्र, कुलश्रेष्ठ

प्रोडक्सन हॉउसः केस्कोप एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड, विशालराज फिल्म्स एंड प्रोडक्शन प्राइवेट लिमिटेड

लेखक: वैभव बाजपेयी

सिनेमेटोग्राफी: मनीष चंद्र भट्ट

संगीत: संदेश शांडिल्य, हैरी आनंद और परवेज़

शैली: थ्रिलर

कथानकः कुशल श्रीवास्तव द्वारा निर्देशित “वोदका डायरीज”, एक रहस्यमयी थ्रिलर फिल्म है। फिल्म की कहानी एक पुलिस अधिकारी एसीपी अश्विनी दीक्षित (मेनन) और उनके जीवन के चारों ओर घूमती है। अश्विनी दीक्षित के परिवार में उनकी सुंदर पत्नी शिखा (मंदिरा बेदी) है, जिसके साथ वह सामान्य जीवन जी रहे हैं, एक दूसरे से पेय साझा करते हैं और साहित्यक विषयों पर चर्चा करते हैं। उनके जीवन में एक अन्य साथी उनका ऑसिस्टेंट (शारिब हाशमी) हैं जिनके साथ वह हर मामले की चर्चा करते हैं। अश्विनी दीक्षित को एक लड़की की हत्या की गुत्थी सुलझाने का मामला (केस) दिया जाता है। बाद में, अश्विनी को चार और मृत शरीर मिलते है, जिनकी हत्या की गई है, इन सभी हत्याओं में एक चीज आम है, वो यह है कि ये सभी लोग सालगिरह की पार्टी मानने के लिए “वोदका डायरीज” होटल में एकत्र हुए थे। कहानी में मोड़ तब आता है जब अश्विनी की व्यक्तिगत जिन्दगी में इस के कारण असर पड़ने लगता है क्योंकि हत्याओं की गुत्थी सुलझाते समय अश्विनी की पत्नी एकाएक गायब हो जाती है।

मूवी रिव्यूः इस फिल्म में, के के मेनन एक साधारण पुलिस अधिकारी बने है, जैसा कि रहस्यमयी उपन्यासों में बताया जाता हैं। वह विशिष्ट बॉलीवुड अभिनेता नहीं हैं, जिनसे बहुत ज्यादा एक्शन की उम्मीद की जाए। फिल्म की शुरूआत के दृश्यों में सुंदर प्राकृतिक दृश्य, बड़े वृक्ष और बर्फ दिखाई पड़ती है, जब के के सड़कों पर दौड़ते हुए दिखाई देते है, तो हमें एहसास होता है कि फिल्म की शूटिंग मनाली में की गई है। फिल्म में मेनन का अभिनय बेहद दमदार और उत्कृष्ट है। फिल्म की कहानी विस्मयकारी और रहस्य से भरी हुई है। फिल्म की कहानी आपको बांधे रखती है और आप इंटरवल (फर्स्ट हाफ) से पहले एक बेक्र भी नहीं लेना चाहेगें।

फिल्म में मंदिरा का रोल ज्यादा नहीं है, लेकिन जितना भी रोल मिला है, उतने ही रोल को सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए कड़ी मेहनत की है। लेखक वैभव बाजपेयी ने पुलिस पेंटा-हत्या के रहस्य को सुलझाने की कोशिश करते हुए घटनाओं पर काबू पाने और कथानक को ठीक से संतुलित करने का अधिकतम प्रयास किए हैं।

फिल्म में के के को एक सामान्य इंसान दर्शाया गया है, जिसे अपने जीवन में होने वाली असामान्य घटनाओं से भी डर लगने लगता है। इन असामान्य घटनाओं के कारण उसके जीवन में भावनात्मक रूप से उथल-पुथल मच जाती है। वह शांत रहकर परिस्थितियों को बुद्धिमानी से संभालना चाहता है और अपने भीतर के राक्षसों से लड़ना चाहता है। वह पूरी तरह मजबूत बनने की कोशिश करता है। फिल्म एक्शन थ्रिलर की बजाय एक मनोवैज्ञानिक थ्रिलर लगती है। कथानक का मुश्किल रहस्य हैरानी में डाल देता है, साथ ही फिल्म का क्लाइमैक्स ऐसा है, जिसके बारे में आप सोच नहीं सकते हैं।

हमारा फैसलाः आप यह फिल्म देखने के लिए जा सकते हैं यदि आप थ्रिलर शैली की फिल्मों के प्रशंसक हैं और अपने सप्ताहांत का आनंद लेना चाहते हैं। लेकिन अगर आप रहस्य और थ्रिलर जैसी फिल्मों के प्रेमी नहीं हैं, तो निश्चित रूप से यह फिल्म आपको निराश करेगी। यह एक ही बार देखने वाली फिल्म है। यदि आप एक संगीत प्रेमी हैं और अपने कानों को आनांदित करना चाहते हैं तो रेखा भारद्वाज और उस्ताद रशीद खान की आवाज को सुनने के लिए, आपको फिल्म के अंत तक रूकना चाहिए।