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मुक्काबाज – अनुराग कश्यप की वापसी

January 13, 2018
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मुक्काबाज - अनुराग कश्यप की वापसी

अनुराग कश्यप को सबसे बेहतरीन काम के लिए जाना जाता है, वो एक ऐसे व्यक्ति है, जिन्होंने हमें ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ और ‘ब्लैक फ्राइडे’ जैसी बढ़िया फिल्में दी हैं, आमतौर उनकी फिल्मों में सामाजिक मुद्दों पर प्रकाश डाला जाता है। वास्तव में, समकालीन सामाजिक मुद्दे उनकी फिल्मों में गंभीरता से चित्रित किए जाते हैं। वह इन समायोजनों के साथ अपने दृढ़ कथानकों को एक साथ मिलाकार दर्शाते हैं, अगर मोटे तौर पर कहा जाए तो वह दर्शकों पर एक अमिट छाप छोड़ने के लिए ऐसा करते हैं जो कि उनकी तकिया कलाम जैसी आदत है। उनकी पिछली कुछ फिल्मों में एक – रमन राघव और अग्ली, जो डायस्टोपिया के नाटकीय कार्यों से कहीं अधिक थे, विशेष रूप से यह गुमनाम फिल्म है। हालांकि, मुक्काबाज के साथ, कश्यप अपने मूल रूप में वापस आए हैं, इस फिल्म में वर्तमान समाज के दोषों को दर्शाया गया है।

कोमल कथानक

यह फिल्म विविध प्रकार की शैलियाँ जैसे – रोमांस और खेल – लिंग, जाति, विकलांगता और वर्ग जैसे मुद्दों को जोड़ती है, जिसमें कुछ नाम एक मनोरम सम्मिश्रण के साथ दिखाई पड़ते हैं। एक युग में, जब हम बॉलीवुड में कुछ अच्छा देखने का इरादा रखते हैं, तो विलक्षण विषयों की खोज करने वाले एक उम्दा निर्देशक अनुराग कश्यप की फिल्में देखें, क्योंकि उनके अन्दर प्रिय या अप्रिय विषयों पर स्पष्ट बोलने की क्षमता है। वह यह भी भरोसा दिलाते है कि समस्याग्रस्त मुद्दों को उचित संदर्भ में रख सकते हैं। यह फिल्म उसी संदर्भ में है। कश्यप की इस फिल्म में मुक्केबाजी मात्र एक खेल से कहीं ज्यादा मायने रखती है।

समाज की समीक्षा

कश्यप ने प्रभावी रूप से एक खेल फिल्म की आड़ में आज के भारतीय समाज की आलोचना की हैं। फिल्म की कहानी मुख्य रूप से श्रवण से संबंधित है, जो एक निचली जाति का मुक्केबाज है, वह मुक्केबाजी का प्रशिक्षण अपने कोच से लेता है, जिसका बड़े-बड़े लोगों से संबंध है और संयोगवश कोच की एक गूंगी भतीजी है, और उसी के प्यार में श्रवण पालग हो जाता है। फिल्म कट्टर यथार्थवाद से भरी हुई है क्योंकि कश्यप जैसे व्यक्ति से इस तरह उम्मीद की जा सकती है। इस फिल्म में प्रचुर मात्रा में अपशब्द और गलियों का प्रयोग किया गया है। फिल्म में घूसे मारे गए हैं, जिन्हें देखकर आप विचलित हो सकते हैं। इस फिल्म के गाने ने भावों को उभारा है, क्योंकि गीत के शब्दों में काव्य को मिश्रित किया गया है।

अभिनेता

फिल्म की मुख्य जोड़ी ने निश्चित रूप से अपने रोल को बखूबी निभाया है। गूंगी सुनयना की भूमिका को जोया हुसैन ने बहुत ही उम्दा तरीके से निभाया है। मुख्य भूमिका को विनीत कुमार सिंह ने जिस तरह से जिया है, वह काफी सराहनीय है। वह दर्शकों को समझाने में सफल रहे हैं कि किस तरह वह किसी भी समय ठग होने के लिए उतर सकता है, लेकिन वह अपने अभिनय को भी ठीक उसी तरह दे सकता है अगर उसे ऐसा करने का अवसर दिया जाए तो। कश्यप द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला ध्वनि (साउंड) डिजाइन, बॉलीवुड में पारंपरिक स्वरूप का है। यह एक और पहलू है जो फिल्म को इस हद तक सफल बनाने में मदद करता है। श्रवण के कोच के रूप में रवि किशन की संवेदनशील भूमिका निभाई है, जो श्रवण के साथ हर मुसीबत में साथ खड़े रहते हैं।

गैंग्स ऑफ वासेपुर के साथ समानताएं

कई मायनों में, फिल्म मुक्काबाज की गैंग्स ऑफ वासेपुर के साथ तुलना की जा सकती है, जो कश्यप की अभी तक की सबसे ज्यादा लाभ कमाने वाली फिल्म है। फिल्म भावों से भरी हुई है और इसका प्रत्येक दृश्य इस बात को दर्शाता है। एक मायने में, फिल्म में अधिक से अधिक लक्ष्य (हिट होने) प्राप्त करने का प्रयास किया है, जो वास्तविक रूप से संचालित लक्ष्य को प्राप्त कर सकता था। फिल्म की कहानी में कभी-कभी सामंजस्य की कमी दिखाई देती है, लेकिन फिल्म की ऊर्जा में कोई कमी नहीं आती है। लेकिन वास्तव में यह सब संपादन और कैमरे के कारण ही हो पाया है। एक आइटम गाने में नवाजुद्दीन सिद्दीकी भी धमाल मचाते हैं।