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पद्मावत – हमेशा की तरह संजय लीला भंसाली सफल

January 30, 2018
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पद्मावत - हमेशा की तरह संजय लीला भंसाली सफल

आधुनिक इतिहास में बहुत कम ऐसी फिल्में हैं जिन्हें फीके तरीके से सार्वजनिक सोच को उभारा है जैसा संजय लीला भंसाली ने ‘पद्मावत’ में किया है। इस फिल्म के रिलीज होने से पहले, शूटिंग के दौरान निर्देशक को थप्पड़ मारा गया था और फिर फिल्म के पोस्टर को भी उन लोगों द्वारा जला दिया गया था, जिनका यह मानना था कि फिल्म में इतिहास को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया था। फिल्म के पक्ष और विपक्ष में कई तर्क दिए गए। लोगों को शो देखने से रोक दिया गया, इस मामले में कई लोगों की जान तक चली गई। इसलिए, आमतौर पर यह देखने में बहुत ज्यादा दिलचस्पी होगी कि फिल्म में आखिरकार ऐसा है क्या, जिसके कारण देश भर में इसका विरोध किया जा रहा है। फिल्म का पहला शो रिलीज हो चुका है, तो अब यह कहा जा सकता है कि संजय लीला भंसाली ने हाल ही में एक ऐतिहासिक मशहूर रचना को फिल्म में बदल दिया है।

तकनीकी पहलू

बाजी राव मस्तानी की तरह, भंसाली ने इस फिल्म के जरिए एक महाकाव्य को दुनिया के समाने प्रस्तुत किया है साथ ही साथ राजाओं, रानियों और अभिलाषी विजेताओं के एक युग को दिखाया गया है कि किस तरह उन पर कब्जा करने के लिए, वे कुछ भी कर सकते हैं। इस फिल्म को देखने से ऐसा लगता है कि कम से कम वर्णन करने के लिए शानदार है- युद्ध के दृश्य विशेष रूप से पूरी फिल्म के दृश्यों से बेहतरीन हैं, जिनको अच्छी तरह से दर्शाया गया है। जहाँ तक फिल्म के संगीत का संबंध है, तो पिछली फिल्म के मुख्य आकर्षण में से एक था, परन्तु इस फिल्म में ‘घूमर’ शायद एकमात्र गीत है, जो फिल्म समाप्त होने के बाद दर्शकों को याद रहेगा।

चरित्र चित्रण

चरित्र चित्रण इस फिल्म के लिए एक समस्या ग्रस्त मुद्दा है, जो कि चरित्र चित्रण के हिसाब से काफी फीका और असंगत है। कहीं न कहीं दोनों अभिनेताओं के चित्रण की तुलना में एक अधिक स्पष्ट है। खलनायक की भूमिका में अलाउद्दीन खिलजी को बहुत ही बेहतरीन और स्पष्ट रूप से दिखाया गया है। फिल्म में अलाउद्दीन के जैसा कोई चरित्र नहीं है, जैसा कि वह सब करता है। दूसरी तरफ, नायक महराज रतन सिंह हैं, जो आदर्शवादी गुण वाले हैं, जिनको एक सैनिक के रूप में चित्रित किया गया है, वह खिलजी के खिलाफ सैन्य कार्रवाई पर फैसला करने के लिए काफी समय लेते हैं।

पद्मावत

चित्रण के दृष्टिकोण से, पद्मावती इस फिल्म का सबसे अधिक उद्धारक पहलू है। पद्मावती को अपने पति से ज्यादा होशियार और व्यावहारिक दिखाया गया है, प्रत्यक्ष रूप से फिल्म के अंतिम चरण में वह अपने पति से जौहर करने की अनुमित मांगती है और इस तरह से अपनी मृत्यु के बाद राजपूताना सम्मान को बरकरार रखना चाहती है। वह उदास होकर अपने पति से कहती है कि वह उनकी इजाजत के बिना जौहर नहीं कर सकती है। फिल्म के एक अन्य दृश्य में, रतन सिंह के कब्जे के लिए अपने पति की पहली पत्नी द्वारा दंडित होने पर वह अपनी सुंदरता को इसके लिए दोषी ठहराती है। वह (पद्मावती) कहती है कि इस के लिए उसकी सुंदरता को नहीं बल्कि पुरुषों की टकटकी और उनके इरादों को दोषी ठहराया जाना चाहिए।

अभिनय

अभिनय के कुछ शब्दों के बिना फिल्म की समीक्षा पूरी नहीं हो सकती है। दीपिका पादुकोण ने खूबसूरत और तीक्ष्ण बुद्धि वाली पद्मावती की भूमिका को बहुत ही उम्दा तरीके से निभाया है, जो कि सिंहल (श्रीलंका) के राजा की बेटी थी और राजस्थान की रेगिस्तानी भूमि से संबंधित है। कई मायनों में, दीपिका के इस अभिनय को बाजीराव मस्तानी का विस्तार कहा जा सकता है, लेकिन फिर भी उन्होनें इस भूमिका को अच्छी तरह से निभाया है। रणवीर सिंह ने एक-आयामी भूमिका में सर्वश्रेष्ठ अभिनय किया हैं और शाहिद कपूर के बारे में भी यही कहा जा सकता है। इस पीढ़ी में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता शायद उन पर एक और अधिक एकल लहजे वाले किरदार का बोझ है और जो संभवतःउन्हें एक अभिनेता के रूप में अपने सम्पूर्ण अभिनय, जैसा कि उन्होंने हैदर में दिखाया था, को दिखाने से रोकता है।

हमारा फैसला

अगर आप ऐतिहासिक फिल्मों को देखना पसंद करते हैं या फिर आप हमेशा से बॉलीवुड की सफल फिल्मों के प्रशंसक है, तो निश्चित रूप से यह फिल्म आपके देखने लायक है। भंसाली की अन्य फिल्मों की तरह इस फिल्म को भी बहुत बेहतरीन तरीके से शूट किया गया है, यह इस फिल्म को देखने का एक और कारण है। यह संजय लीला भंसाली की एक व्यवहारिक फिल्म है, इनको इस तरह की फिल्म बनाने का शानदार अभ्यास है। संजय लीला भंसाली एक ऐसे इंसान हैं जिनके पास हर किसी के लिए कुछ न कुछ है।