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‘करीब करीब सिंगल’ मूवी रिव्यू –याद रखने योग्य रोमकॉम (रोमाटिंक कमेडी)

November 13, 2017
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‘करीब करीब सिंगल’ मूवी रिव्यू

कलाकार- इरफान खान, पार्वती

निर्देशक – तनुजा चंद्रा

निर्मिता – राकेश भगवानी, शैलजा केजरीवाल, अजय राय

प्रोडक्शन हाउस – जी स्टुडियोज़, जार पिक्चर्स

लिखित – कामना चंद्र

पटकथा – तनुजा चन्द्र, गज़ल धलीवाल

सिनेमोटोग्राफी – इशित नारायण

संपादन – चंदन अरोड़ा

संगीत – विशाल मिश्रा, रोचक कोहली

शैली – रोमकॉम (रोमाटिंक कमेडी)

अवधि – 2 घंटे 5 मिनट

इस फिल्म की समीक्षा पूरी करने से पहले, मैं स्वीकार करना चाहती हूँ कि इस महीने की फिल्म सूची में इस फिल्म (करीब करीब सिंगल) को देखने और समीक्षा करने के लिए इसका नाम नहीं था। यह सरासर संयोग है कि कुछ अलग तरह के मिश्रण की वजह से, मैंने तनुजा चंद्रा की नवीनतम फिल्म को समाप्ति तक देखा है। और अब मैं “इत्तफाक” और “हतभाग्य” शब्दों का इस्तेमाल करना बंद कर रही हूँ और इसके बजाए इस फिल्म को नसीब नाम से बुलाना चाहती हूँ। स्पष्ट रूप से यह फिल्म सर्वश्रेष्ठ रोमकॉम फिल्मों में से एक है और ऐसी फिल्म काफी लंबे समय के बाद रूपहले परदे पर आयी है।

करीब करीब सिंगल का कथानक

इस फिल्म में 35 साल की जया एक विग्रह विधवा है। विधवा होना भावनात्मक रूप से उसकी जिन्दगी को अवरुद्ध नहीं करता है। वह एक वास्तविक औरत है- बल्कि घुमावदार, हंसमुख और सुंदर है, जो फ्रांसीसी बोलती है परन्तु लोगों को सुखद अनुभव कराती है और अकसर अपने दोस्तों के बीच दाई के रूप में इस्तेमाल की जाती है। जया के जीवन में प्रेम की कमी उसे एक डेटिंग वेबसाइट पर ले जाती है, जहाँ उसकी स्व – प्रकाशित शायर (कवि) योगी से भेंट होती है। दोनों अपने जीवन के कई अलग-अलग क्षणों को साझा करते हैं और पूरे भारत की यात्रा लगातार हाजिर-जवाबी के साथ करते है। योगी की पूर्व-गर्लफ्रेंड जयपुर, ऋषिकेश और गंगटोक में रहती हैं और यह सिद्ध करने के लिए बाहर निकलते हैं कि वे अभी तक वे सभी उसके बारे में सोचती हैं। क्या इन दो अजीब लोगों को अपनी यात्रा के दौरान प्यार मिल जाएगा? क्या उनकी मनोदशा उन्हें अलग-अलग जगह पर ले जाएगी? यही सब करीब करीब सिंगल फिल्म की कहानी है।

करीब करीब सिंगल फिल्म रिव्यू

एक ऐसे उद्योग में, जहाँ 50 की उम्र के नायक (सुपर हीरो) के रोमांस को नियमित रूप से एक युवा महिला के साथ दर्शाया जाता है और नायिकाओं की उम्र 30 की आसपास होने के बाद उनको युवा दिखने के लिए बोटॉक्स का सहारा लेना पड़ता है। एक परिपक्व प्रेम कहानी को फिल्मी परदे पर उतारना बहुत ही साहस का काम होता है। तनुजा चंद्रा द्वारा निर्देशित फिल्म ‘करीब करीब सिंगल’ में तीस दशक के मध्य के एक आदमी और महिला के प्रेम और खोज की तलाश को प्रभावशाली ढंग से दर्शाया गया है। इनकी मुलाकात डेटिंग ऐप के माध्यम से होती है, जो कि शुरूआत में काफी संदेहपूर्ण लगती है। चन्द्र एक अलग तरह की कहानी बताने के लिए ही नहीं रूकी है। उन्होंने कहानी में मजेदार और मनोरंजक क्षणों को भी शामिल किया है और यह फिल्म एक शानदार रोमकॉम फिल्मों को पसंद करने वालों के लिए है, जो बॉलीवुड में काफी समय से दिखाई नहीं गई है।

हिंदी सिनेमा एक ऐसी एकल फिल्म को प्रबन्धित करने में सफल नहीं हो सकी है, जो विधवा पुनर्विवाह के साथ अनावश्यक भावनात्मक भावुकता या शायद नैतिक व्याख्यान में उतरने के बिना काम कर सकें। करीब करीब सिंगल फिल्म में “विधवा” के कलंक को खंडित करके और पूरी तरह से दो अलग-अलग लोगों की प्रेम कहानी को परदे पर दिखाने का का प्रबंधन किया है। दक्षिण भारतीय बेली पार्वती और देशी डूड इरफान एक दूसरे से चाक और पनीर की तरह अलग हैं और फिर भी कहानी और रोमांस को प्रत्येक क्षण के मजाक के रूप में व्यक्त करते हैं। अगर जीवन के प्रत्येक क्षणों को जीना है, तो चंद्र ने सबसे सुंदर तरीके से रूपहले परदे पर रिश्ते के सबसे मनोरम क्षणों को दर्शाया है। इशित नरायण ने फिल्म में भारत के लुभावने स्थानों को बहुत ही शानदार ढंग से कैप्चर किया है और हमारे लिए एक विजेता बन गए है।

इरफान ने अपने अभिनय से अभी तक हमें कभी भी निराश नहीं किया है और एक भावुक लेकिन भड़कीले आदमी के उनके चित्रण के साथ उनकी टोपी में एक भिन्न तरह का पंख लगा हुआ है। पार्वती एक बहुमुखी अभिनेत्री है। उनकी बॉलीवुड में यह पहली फिल्म है और भविष्य में वह महत्वपूर्ण फिल्में चुनेगी, उन फिल्मों में उन्हें देखने का इंतजार नहीं कर सकते हैं। एक स्थिति पर इरफान कहते हैं कि उनकी प्रेम कहानी एक जीवन और मृत्यु रोमांस नहीं है। इसी कारण करीब करीब सिंगल फिल्म में परिपक्व, शहरी प्रेम पर एक यथार्थवादी जीवन दिखाई देता है, किसी भी भावुक जालको साफ करते हुए, यह बॉलीवुड फिल्म हमें आगे बढ़कर इसे देखने के लिए मजबूर कर सकती है।

हालाँकि, बॉलीवुड में सभी मूल नहीं है। इरफान-कों कणा कहानी की लाइफ इन ए … मेट्रो फिल्म की चमक को वापस लाने के लिए, जया और योगी की प्रेम गाथा निश्चित रूप से एकदम बढ़िया है।

इस फिल्म में विशाल मिश्रा और रोचक कोहली द्वारा गाये गए तीन गीत हल्के और भूल जाने योग्य हैं और फिल्म में अच्छी तरह अनुकूल हैं।गायक पोपन के प्रशंसकों को पोपी नंबर ‘तू चले तो’ को देखना चाहिए।

अच्छा क्या है, बुरा क्या है?

फिल्म लाइफ इन ए… मेट्रो के पुराने अनुभव की तरह अंतराल तक थोड़ी धीमी गति से चलने के अतिरिक्त, फिल्म करीब करीब सिंगल में ऐसा कुछ नहीं है, जो कि नकारात्मक रूप में सूची बद्ध किया जा सकता है। यह एक पूर्ण मनोरंजक फिल्म है।

हमारा फैसला

आपने जो भी करने की योजना बनाई है, उसको छोड़ दें, स्वयं और आपने परिवार के लिए सिनेमा हॉल की अच्छी सीटें और पॉपकॉर्न की एक बड़ी टब बुक करें। बड़े परदे पर ‘करीब करीब सिंगल’ फिल्म को देखने जाना चाहिए। यह फिल्म रोमकॉम (रोमाटिंक कमेडी) के प्रसंग को फिर याद करवाना नहीं भूलेगी।