जम्मू-कश्मीर में आने वाले हैं बुरे दिन
भारतीय राजनीति आपको, राजनीतिक मतभेद से, सत्ता साझा करने की व्यवस्था से और अजीब गठबंधन बनाकर, बार-बार आश्चर्यचकित कर सकती है। 2014 में, भाजपा के एक व्यापक जनादेश के साथ आम चुनाव जीतने के बाद पार्टी, जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों में उच्चतम आंकड़े दर्ज करने में कामयाब रही थी, जबकि उस समय घाटी में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभर कर सामने आ रही थी। हालांकि, राजनीतिक वर्ग और समाज के सभी वर्ग तब हक्के-बक्के रह गए, जब भाजपा ने महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी को अपना समर्थन दिया। जो कि बिना किसी वैचारिक संबंध के मात्र एक असामान्य गठबंधन था। हालांकि, हर गुजरने वाले वर्ष के साथ बीजेपी और पीडीपी के बीच की दूरियां बढ़तीं रहीं, फिर भी यह असामान्य गठबंधन साढ़े तीन साल तक सत्ता में रहा। अशांत राज्य जम्मू-कश्मीर में चुनाव होने से एक साल पहले, घाटी में राजनीतिक स्थिति में हो रही दिक्कतों के कारण भाजपा गठबंधन को समाप्त कर पार्टी से बाहर हो गई।
बीजेपी का गठबंधन तोड़ने का कारण
भारतीय जनता पार्टी ने साढ़े तीन साल तक सत्ता में रहने के बाद मंगलवार को जम्मू-कश्मीर में पीडीपी-बीजेपी सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया। समर्थन की वापसी के कारण मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की सरकार अल्पमत में आ गई और उन्होंने अपना इस्तीफा राज्यपाल एनएन वोहरा को सौंप दिया है। अगली सरकार बनने तक एन एन वोहरा सरकार के कामकाज पर अपनी नजर बनाए रखेंगे, जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल को उनके कार्यकाल के दौरान राज्य में तीन बार राज्यपाल शासन लागू करते हुए देखा गया है।
बीजेपी के गठबंधन तोड़ने के फैसले के पीछे कुछ कारण निम्नलिखित हैं:
- बीजेपी द्वारा बताए गए प्रमुख कारणों में से एक कारण राज्य में खराब सुरक्षा व्यवस्था थी।
- मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने रमजान के दौरान कश्मीर में हालात सामान्य करने के लिए एक महीने के लिए सीजफायर का ऐलान किया गया था। हालांकि मुफ्ती के किए गए अनुरोध के अनुसार भाजपा सीजफायर की अवधि बढ़ाने के लिए तैयार नहीं था।
- हाल ही में घटित हुए कठुआ बलात्कार और हत्या के मामले ने न केवल जम्मू-कश्मीर राज्य को बल्कि पूरे देश को हिलाकर रख दिया और यह मामला दोनों पक्षों के बीच संघर्ष का एक बड़ा मुद्दा बन गया। मुस्लिम बक्करवाल समुदाय की 8 वर्षीय बच्ची की अमानवीय रूप से हत्या और बलात्कार ने राज्य में अशांति पैदा कर दी। यह मामला एक बड़ा मुद्दा तब बन गया जब भाजपा के राज्य सदस्यों ने पुलिस जांच पर संदेह जताया और दो सदस्यों ने आरोपी के समर्थन में अपनी आवाज उठाई।
- सशस्त्र बल विशेष शक्ति अधिनियम (एएफएसपीए) को हटाना बीजेपी और पीडीपी के बीच विवाद का विषय बन गया। जैसा कि पूर्व में एएफएसपीए को हटाना विनाशकारी साबित हो सकता था, जबकि बाद में यह विचार किया गया कि अधिनियम को हटाकर राज्य में शांति और स्थिरता का नया युग लाया जा सकता है।
अनुमान
- महबूबा मुफ्ती द्वारा जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देने के साथ, राज्य के राज्यपाल एन.एन. वोहरा संकट में चल रही अमरनाथ यात्रा के आयोजन तक राज्य का कार्यभार संभालेंगे।
- यह केंद्र को अप्रत्यक्ष रूप से राज्य के कार्यभार को नियंत्रित करने की अनुमति देगा, जबकि सेना और पुलिस को राज्य में आतंकवाद विरोधी अभियान जारी रखने के लिए और अधिक उत्साह के साथ स्वतंत्रता प्रदान करेगा।
- जिस दिन से भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त की, तब से इस राज्य में अशांति है और जब तक सरकार के गठन का एक व्यवहारिक विकल्प नहीं मिलता, तब तक इस राज्य का कार्यभार बिना सरकार के चलेगा।
- मौजूदा राजनीतिक संकट से पूरे राज्य में अशांति फैल जाएगी, क्योंकि विद्रोही और पत्थरबाज स्थिति का फायदा उठाकर पूंजीकरण की कोशिश करेंगे। जबकि भारतीय सेना विद्रोहियों और अलगाववादियों से निपटने के लिए विद्रोह विरोधी योजनाओं के साथ हमला कर रही हैं।
आम चुनाव 2019 और रुख में बदलाव
2019 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा के रुख में बदलाव जम्मू क्षेत्र में रहने वाले हिंदू मतदाताओं को खोने के डर से आया। पार्टी के वरिष्ठ सदस्यों ने महसूस किया कि भारतीय जनता पार्टी पीडीपी के साथ तनाव युक्त संबंधों के कारण किए गए वादे के अनुसार विकास करने में सक्षम नहीं हो पाई है। इसके अलावा, भगवा पार्टी द्वारा रमजान के महीने के बाद सीजफायर को समाप्त करने की एकतरफा सहमति के साथ पार्टी के राष्ट्रवादी एजेंडा में बाधा आ रही थी। पीडीपी के लिए, गठबंधन का टूटना 2019 के आम चुनाव और विधानसभा चुनाव से पहले एक अच्छा रिडेंस साबित हो सकता है, पीडीपी का वोट बैंक भाजपा के साथ पार्टी के रिश्ते के कारण प्रभावित हो रहा था। कोई फर्क नहीं पड़ता कि आने वाले दिनों में राजनीतिक परिदृश्य में क्या सामने आता है, जम्मू-कश्मीर राज्य अस्थिरता के चरण से गुजरने के लिए भाग्य के भरोसे है।