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कर्नाटक चुनाव – कांग्रेस की अग्निपरीक्षा

March 30, 2018
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Karnataka Elections in hindi

कांग्रेस और भाजपा एक बार फिर चुनावी रण में आमना-सामना करने के लिए तैयार है, क्योंकि भारतीय निर्वाचन आयोग ने कर्नाटक राज्य में होने वाले चुनाव की तारीखों की घोषणा कर दी है। 27 मार्च को निर्वाचन आयोग ने घोषणा की थी कि राज्य के सभी निर्वाचन क्षेत्रों में 12 मई को मतदान आयोजित होंगे, जबकि इनकी गणना 15 मई होगी। पूरे देश के राजनीतिक विश्लेषक, कर्नाटक चुनावों को 2019 में होने वाले बड़े फाइनल से पहले क्वार्टर फाइनल के रूप में देख रहे हैं।

सिद्धारमैया के नेतृत्व में वर्तमान कांग्रेस सरकार अपनी जगह मजबूत बनाने की भरकम कोशिश कर रही है। वहीं दूसरी तरफ, भारतीय जनता पार्टी कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा से काफी उम्मीदें लगाए हुए है। भाजपा के दिग्गज नेता येदियुरप्पा, खुद को कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में पुनः स्थापित करने के लिए पूरा दम लगाएंगे, क्योंकि उन्हें अपने अंतिम कार्यकाल के दौरान बीच में ही इस्तीफा देना पड़ा था।

कांग्रेस अपना आधार मजबूत बनाते हुए दिखाई दे रही है

कर्नाटक की लड़ाई कांग्रेस पार्टी के लिए निर्णायक साबित हो सकती है, क्योंकि उनके द्वारा राज्य में किया जाने वाला शासन निश्चित रूप से 2019 के लोकसभा चुनावों में उनकी मदद करेगा। नव निर्वाचित पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी चुनाव में कांग्रेस की पहली जीत की उम्मीद करेंगे, क्योंकि उन्होंने सोनिया गांधी से पार्टी के शासनकाल का पदभार संभाला है। सिद्धारमैया को राज्य में एक कठिन चुनौती का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि वह मुख्यमंत्री कार्यकाल में अपने मंत्रियों जरिए लगाए जाने वाले सत्तारूढ़ और कथित भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझते नजर आए हैं।

कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी आगामी राज्य चुनावों को, राहुल गांधी बनाम नरेंद्र मोदी के रूप में पेश करने की बजाय, सिद्धारमैया और बी एस येदियुरप्पा के बीच सीधे मुकाबले के रूप में पेश करने की कोशिश कर रही है। कर्नाटक में कांग्रेस सरकार को यह विश्वास है कि राज्य के लोग भारतीय जनता पार्टी की विभाजनकारी और सांप्रदायिक राजनीति की बजाय कांग्रेस पार्टी की विकासात्मक राजनीति के पक्ष में मतदान करेंगे।

सकारात्मकता

  • सिद्धारमैया सरकार ने अन्न भाग्य, श्री भाग्य, इंदिरा कैंटीन, आरोग्य भाग्य जैसे कल्याणकारी योजनाओं की शुरुआत और उनका क्रियान्वयन किया, जिससे राज्य भर के नागरिक लाभान्वित हुए हैं।
  • लिंगायत, जो राज्य की 17 प्रतिशत आबादी के संग्रहकर्ता हैं, वीरशैवास के परस्पर-विरोध में रहे हैं। वे अल्पसंख्यक धार्मिक दर्जा प्राप्त करना चाहते हैं, क्योंकि वे खुद को वीरशैवास से भिन्न मानते हैं।
  • सिद्धारमैया को कई लोगों द्वारा मंडल की राजनीति से प्रभावित एक चतुर राजनीतिज्ञ के रूप में माना जाता है। मुख्यमंत्री ने अहिंद के एक एकल सामाजिक गठबंधन में पिछड़े, दलित और मुस्लिम जैसे विभिन्न सामाजिक समूहों को शामिल किया है।

अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद, सिद्धारमैया पिछले चार दशकों में पहले ऐसे मुख्यमंत्री बनेंगे, जिन्होंने अपना 5 साल का कार्यकाल पूरा किया है।

नकारात्मकता

  • सरकार और पार्टी, सरकार द्वारा शुरू की गई कल्याणकारी योजनाओं को लोकप्रिय बनाने और बढ़ावा देने में ज्यादा सफल नहीं हो पाई है।
  • राज्य सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों ने उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं।
  • राज्य में पार्टी को एकजुट रखने के लिए सिद्धारमैया को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि पार्टी में विभिन्न शिविर और गुटनिरपेक्षताएं हैं, जो पार्टी के लिए चुनाव में एक बड़ी बाधा साबित हो सकती हैं।

भाजपा द्वारा खोए हुए क्षेत्रों को पुनः प्राप्त करने की उम्मीद

पूर्वोत्तर भारत में हाल ही में संपन्न हुए चुनावों में प्रभावशाली जीत के बाद, भाजपा कर्नाटक की कांग्रेस सरकार को चुनौती देने के उद्देश्य से उसी समान गति के साथ आगे बढ़ना चाहती है। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से, भारतीय जनता पार्टी ने अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर 22 राज्यों में गठबंधन की सरकार बनाई है, क्योंकि वह ‘कांग्रेस-मुक्त भारत’ का निर्माण करना चाहते हैं। पार्टी कर्नाटक में आक्रामक चुनाव प्रचार का आयोजन कर रही है, क्योंकि पार्टी अपनी खोई हुई सत्ता को फिर से हासिल करना चाहती है।

भारतीय जनता पार्टी ने पूर्व राज्य के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को, आगामी विधानसभा चुनाव 2018 में भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में नियुक्त किया है। कर्नाटक लोकायुक्त द्वारा दायर अवैध खनन मामले में कथित रूप से शामिल होने के कारण बी एस येदियुरप्पा को 2011 में मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था।

बी एस येदियुरप्पा ने भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व से समर्थन न मिलने के कारण  पार्टी का विरोध किया था और 2012 में पार्टी को छोड़ दिया था, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले वह फिर से पार्टी में शामिल हो गए थे। बी एस येदियुरप्पा को दक्षिण भारतीय राज्यों में भाजपा की स्थिति को मजबूत करना होगा। भारतीय जनता पार्टी अपने पक्ष में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के नेतृत्व में एक बार फिर से भारी जनादेश की उम्मीद करेगी, क्योंकि इसका असर अगले लोकसभा चुनावों में भी नजर आएगा।

सकारात्मकता

  • राज्य में भाजपा कैडर के आधार पर मौजूदगी निश्चित रूप से सत्तारूढ़ पार्टी को अतिरिक्त बढ़त देगी, क्योंकि वे जमीनी स्तर से कांग्रेस सरकार की कमजोरियों का फायदा उठाने की कोशिश करेंगे।
  • बी एस येदियुरप्पा और बी श्रीरामलू की वापसी ने, भाजपा के चुनाव जीतने की उम्मीदों को बढ़ा दिया है। 2013 के चुनावों में दोनों नेताओं ने भाजपा की हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, क्योंकि वे दोनों भाजपा के शीर्ष चरमपंथियों से हुए मतभेदों के कारण पार्टी से बाहर चले गए थे।
  • सिद्धारमैया अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के माध्यम से लिंगायत समुदाय को अलग करना चाहते हैं, लेकिन येदियुरप्पा की वजह से 17 प्रतिशत वोट के साथ लिंगायत समुदाय भारतीय जनता पार्टी का समर्थन कर सकते हैं, जो उस समुदाय के अंतर्गत आते हैं, जिन्होंने 1990 के बाद से खुद को कांग्रेस से दूर कर लिया है।

इतना ही नहीं, भारत के नेता के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि, निश्चित रूप से आगामी चुनावों में पार्टी की संभावनाओं को बढ़ावा देगी, जैसा कि पिछले चुनावों में देखने को मिला है।

नकारात्मकता

  • कांग्रेस की तरह, भाजपा पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बी एस येदियुरप्पा भी भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे हुए हैं, जिन्हें 2011 में इस्तीफा देना पड़ा था।
  • चुनाव आयोग द्वारा कर्नाटक विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा करने से पहले, भाजपा के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने एक ट्वीट के माध्यम से तिथि निर्धारित की थी, जो वायरल हो गई थी, क्योंकि उसमें कांग्रेस और अन्य विपक्षी “डाटा लीक” का संकेत देने के लिए आतुर दिखाई दिए थे।
  • पार्टी के भीतर होने वाली गुटबाजी पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के सामने एक और चुनौती है, क्योंकि येदियुरप्पा और के एस ईश्वरप्पा के बीच मतभेद अभी भी बना हुआ है।

लोकसभा के लिए मंच निर्धारित

मई में होने वाले कर्नाटक चुनाव निश्चित रूप से एक ब्लॉकबस्टर राजनीतिक त्यौहार हैं, जिसमें कांग्रेस-भाजपा की आमने-सामने भिड़ंत देखने को मिल सकती है। जबकि जेडी (एस) के पूर्व प्रधानमंत्री देवगौड़ा से एक प्रभावशाली नेता की भूमिका निभाने की उम्मीद की जा रही है। राज्य में तीनों प्रमुख दलों द्वारा एक गहन राजनीतिक प्रचार के लिए मंच तैयार किया गया है। कांग्रेस के लिए यह चुनाव, 2019 में होने वाले आम विधानसभा चुनाव से पहले कुछ उम्मीदों को बचाए रखने का आखिरी मौका है, क्योंकि यह हार 2019 में होने वाले चुनावों को भी प्रभावित करेगी। दूसरी ओर, भारतीय जनता पार्टी को आगामी लोकसभा चुनाव से पहले कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है और कर्नाटक में उन्हें जीत हासिल करने के लिए दक्षिणी भारतीय राज्यों में एक महत्वपूर्ण उपस्थिति देनी होगी।

सारांश
लेख का नाम –  कर्नाटक चुनाव – कांग्रेस के लिए लिटमस टेस्ट

लेखक का नाम – वैभव चक्रवर्ती

विवरण –        इस लेख में कर्नाटक में होने वाले चुनावों को, राहुल गांधी बनाम नरेंद्र मोदी की बजाय, सिद्धारमैया और बी एस येदियुरप्पा के बीच आमने-सामने होने वाले मुकाबले के रूप में पेश करने की संभावना व्यक्त की गई है।