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गुजरात विधानसभा चुनाव 2017: पार्टियों द्वारा अत्यधिक खर्च क्या मतदाताओं को लुभा पाएगा?

December 14, 2017
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गुजरात विधानसभा चुनाव 2017

इस वर्ष के गुजरात राज्य विधानसभा चुनाव सबसे नाटकीय और उच्च प्रदर्शन वाले चुनावों में से एक है। क्या इस राज्य में होने वाले विधानसभा चुनावों का प्रचार यह सुनिश्चित करता है कि इस पश्चिमी राज्य को वर्तमान में कई परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है? बात यह नहीं है कि हमारी व्यक्तिगत राय क्या है और देश की अग्रणी पार्टियाँ इस पर विचार कर रही हैं, क्योंकि वर्ष 2019 में लोकसभा चुनावों का आयोजन होना भी सुनिश्चित है। बॉलीवुड प्रेरित शब्दावली का उपयोग, वर्ष 2017 के गुजरात राज्य चुनावों व वर्ष 2019 में होने वाले आम चुनावों का मेगा ट्रेलर है, क्योंकि चल चित्र उतना ही अच्छा होगा, जितना ज्यादा निर्माण का बजट होगा। सवाल यह है कि “राजनीतिक पार्टियों ने गुजरात के चुनावों में कितना व्यय किया है?” यह बात हम में से ज्यादातर भारतीय जानना चाहते हैं।

चुनाव संबंधी व्यय के खुलासे पर चुनाव आयोग के दिशा-निर्देश

दो प्रमुख पार्टी, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) के द्वारा व्यय की जाने वाली उचित राशि का अभी तक सही आकलन नहीं हो पाया है। भारतीय चुनाव आयोग (ईसी) के दिशा-निर्देशों के अनुसार, देश में आयोजित होने वाले सभी चुनाव में सभी पार्टी के उम्मीदवारों द्वारा व्यय की जाने वाली पूरी राशि का ब्यौरा चुनाव आयोग को बताना आवश्यक है। लोकसभा चुनावों में पार्टी द्वारा व्यय राशि का ब्यौरा प्रस्तुत करने का समय 90 दिन और राज्य विधानसभा चुनावों में, पार्टियों को अपने व्यय का ब्यौरा प्रस्तुत करने के लिए 75 दिन निर्धारित किए गए हैं। चुनाव आयोग इस स्पष्टीकरण को अपनी सार्वजनिक वेबसाइट पर डाल देता है, ताकि सभी लोग इससे अवगत हो सकें। चुनाव आयोग, राजनीतिक पार्टियों द्वारा चुनाव में करने वाले व्यय पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाता है, लेकिन राज्य विधानसभा चुनावों में प्रत्येक उम्मीदवार द्वारा व्यय (खर्च) की जाने वाली राशि की सीमा 16 लाख रुपए निर्धारित की गई है।

ऐसा लगता है कि हमें चुनाव में होने वाले व्यय के बारे में जानने के लिए कुछ समय तक इंतजार करना होगा। चलो उसके पहले हम देखते हैं कि अन्य पार्टी या नए प्रवेशकर्ता आप ने चल रहे चुनावों में कितना व्यय किया है और इन दोनों पार्टियों द्वारा वर्ष 2012 में किए गए व्यय पर भी नजर डालते हैं।

वर्ष 2012 में गुजरात चुनाव का व्यय

समाचार रिपोर्टों के अनुसार, वर्ष 2012 के चुनावों के दौरान भाजपा ने गुजरात राज्य में 152 करोड़ रुपए व्यय किए थे और भाजपा के बाद कांग्रेस ने चुनाव में कुल 117 करोड़ रुपए व्यय किए थे। जब हम कुल धन को देखते हैं, तो यह एक विशाल आँकड़ा प्रतीत होता है, जो वर्ष 2012 में आयोजित सभी 7 विधानसभा चुनावों से प्राप्त हुआ था। इन 7 विधानसभा चुनावों में 13 अलग-अलग पार्टियों ने भाग लिया था और इन पार्टियों द्वारा कुल मिलाकर 695.28 करोड़ रुपए की राशि व्यय की गई थी। इससे यह प्रतीत होता है कि गुजरात की चुनावी लड़ाई काफी संघर्ष-पूर्ण है।

सार्वजनिक व्यय

राज्य की सत्ता वाली पार्टी भाजपा को चुनावों के समय विकास कार्यों में, सार्वजनिक धन खर्च करने का भी अतिरिक्त लाभ मिला है। अक्टूबर के महीने में जब चुनावों की तारीख की घोषणा में देरी हुई थी, तो भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री विजय रुपानी ने राज्य को करोड़ों रुपए की लाभ वाली योजनाओं को प्रदान करने की घोषणा की थी। इसमें 165.75 करोड़ रुपए की पेयजल परियोजना भी शामिल है और सूरसागर झील को नया रूप देने के लिए 38 करोड़ रुपए आवंटित करने का वादा किया था। इसे जोड़ने के लिए केंद्र सरकार ने अक्टूबर में 2,000 करोड़ रुपए की परियोजनाओं की घोषणा की थी और रो-रो फेरी सेवा के शुभारंभ के लिए 650 करोड़ रुपए खर्च किए थे, ताकि वह भारी तादात में गुजरात के मतदाताओं को अपनी तरफ आकर्षित कर सकें।

गुजरात में आयोजित होने वाले वर्ष 2017 के विधानसभा चुनावों में सभी पार्टी निकटता से लड़ाई लड़ रही हैं, अर्थात किसी भी पार्टी को कमजोर कहना उचित नहीं है। कांग्रेस उच्च बेरोजगारी दर, राज्य के एससी या एसटी और अन्य पिछड़ा वर्ग के निवासियों व असंतुष्ट गरीब ग्रामीण के आँकड़ों आदि सहित विभिन्न मुद्दों पर जोर दे रही है। राहुल गांधी, जिन्होंने हाल ही में पार्टी अध्यक्ष का पदभार संभाला है, राज्य में चलाए जाने वाले अभियान का स्वंय नेतृत्व कर रहे हैं। दूसरी तरफ भाजपा, राज्य में विकास और विकास के उत्तेजक प्रदर्शन का आयोजन कर रही है। करिश्माई वक्ता प्रधानमंत्री मोदी के साथ-साथ पार्टी अध्यक्ष और मुख्य रणनीतिकार अमित शाह चुनाव अभियान में स्थानीय नेताओं का नेतृत्व कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी राज्य में उचित स्थान पाने के लिए पूर्ण प्रयास कर रही है और आम आदमी पार्टी का यह प्रयास वर्ष 2017 में “मोदी लहर” की संभावना में विघ्न डाल सकता है। गुजरात में राजनीतिक परिदृश्य की बदलती गतिशीलता बहुत ही दिलचस्प है। हालाँकि, यहाँ के लोगों ने क्या तय किया है, यह 18 दिसंबर को घोषित होने वाले चुनावों के परिणाम से ही पता चलेगा।

 

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