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गुजरात चुनाव 2017: क्या अमित शाह की रणनीति में भाजपा नंबर 1 पार्टी बन पाएगी?

November 17, 2017
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गुजरात चुनाव 2017

हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के साथ, पूरा देश गुजरात के लोगों के जनादेश को जानने के लिए उत्सुक है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने हमेशा गुजरात को अपना गृह राज्य माना है। लगभग 22 वर्षों से, पार्टी राज्य सरकार में शीर्षस्थता पर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात राज्य में अपनी सफलता के आधार पर 2014 लोकसभा चुनाव जीता और अपने नेतृत्व के तहत गुजरात के तारकीय वृद्धि और विकास को उजागर किया था। 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनाव को अभ्यास के रूप में देखा जा रहा है। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि भाजपा सभी विपक्षी पार्टी को हराने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाने का प्रयास कर रही है, जो भाजपा के राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के रास्ते में खड़े हो सकते हैं।

गुजरात विधानसभा चुनाव 9 और 14 दिसम्बर को दो चरणों में करवाए जाएंगे।

150 सीटों का लक्ष्य

2012 के राज्य चुनावों में, भारतीय जनता पार्टी ने 182 सीटों में से 64.28 प्रतिशत की जीत हासिल की थी। समाचार रिपोर्टों ने दावा किया है कि पार्टी अध्यक्ष और मुख्य रणनीतिकार अमित शाह ने इस वर्ष (2017 के विधानसभा चुनाव) भाजपा के लिए 150 सीटों का लक्ष्य निर्धारित किया है। वास्तविक रूप से यह असंभव लक्ष्य की तरह दिखाई दे रहा है। राजनीतिक रणनीतिकारों ने दावा किया है कि पार्टी विशेष रूप से गुजरात के ग्रामीण क्षेत्रों में 6 से 7 प्रतिशत के बीच मतों को गंवा सकती है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने गुजरात की पंचायत चुनाव में हाल की जीत ने यह भी पुष्टि की है कि राज्य के लोगों पर भगवा (भाजपा) पार्टी का एक बार मजबूत बोलबाला कमजोर हो सकता है। भारतीय जनता पार्टी के लिए राज्यसभा में अपनी स्थिति मजबूत करने और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में अपनी जीत को समेकित करने के लिए राज्य में एक सुगम जीत बहुत महत्वपूर्ण है।

जमीनी स्तर अभियान

बीजेपी के नेता अमित शाह ने एक रणनीति तैयार की है, जो राज्य विधानसभा चुनावों को गुजरात की जमीनी स्तर तक ले जाएगी। ‘गुजरात गौरव महा-संपर्क अभियान’ राज्य की 43.3 मिलियन मतदाताओं तक पहुँच बनाते हुए अपनी बात उन तक पहुँचाने के लिए प्रयासरत है, जो 50,000 बूथों के तहत पंजीकृत हैं।

कुछ महीने पहले पार्टी (बीजेपी) ने घोषणा की थी कि “पेज प्रमुख” (पेज प्रमुख यानी मतदाता सूची के हर पन्ने का एक अलग इंचार्ज) को पार्टी द्वारा नियुक्त किया जाएगा। प्रत्येक ‘पेज प्रमुख’ पार्टी कार्यकर्ता का काम 20 से 30 मतदाताओं को मतदान केंद्र – मतदाता सूची के एक पन्ने पर उल्लेखित सभी मतदातातक लाने की जिम्मेदार होगी। पेज प्रमुख इन मतदाताओं तक पार्टी की जानकारी को प्रसारित करने की जिम्मेदारी होगी और उनकी समस्याओं का समाधान करना भी आवश्यक होगा।

इस महीने की शुरुआत में, अमित शाह ने डोर-टू-डोर अभियान का आगाज नारनपुरा निर्वाचन क्षेत्र से किया है। इस अभियान में पदधारी मुख्यमंत्री विजय रूपाणी गांधीग्राम (राजकोट) और पूर्व मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल गठलोडिया (अहमदाबाद) शामिल हुए और अन्य भाजपा नेताओं संबंधित घरेलू निर्वाचन क्षेत्रों में घर-घर जाकर प्रचार की शुरुआत की। शाह ने स्वयं करीब 10 आवासीय सोसाइटियों का दौरा किया और पार्टी कार्यकर्ताओं से आग्रह किया कि वे पूरे राज्य में घर-घर जाकर पार्टी द्वारा किए गए विकास के काम का प्रचार- प्रसार करें। शाह, रूपानी, और अन्य पार्टी कार्यकर्ताओं नेहर घर में मतदाताओं को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लिखा हुआ एक पत्र भी वितरित किया, ताकि लोग उनकी पार्टी को मतदान कर सकें।

यह पूर्ण रूप से स्पष्ट है कि भाजपा और उनके नेता गुजरात राज्य पर अपने पकड़ को मजबूत करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।

कठिन विपक्ष

शंकरसिंह वाघेला, राकेश मेहरिया और अलपेश ठाकुर जैसे प्रमुख स्थानीय नेताओं ने पार्टी से निकलने का फैसला किया है, भाजपा को इतनी ज्यादा संख्याओं के साथ विपक्षीय पार्टी को हराना मुश्किल पड़ेगा, क्योंकि विपक्षीय पार्टी गद्दी को हासिल करने के सपने को पूरी करने के लिए जी-जान से जुटी हुई है। कांग्रेस के आइकॉन राहुल गांधी गुजरात में अपनी पार्टी का प्रचार-प्रसार करने के लिए बहुत समय बिता रहे हैं। कांग्रेस की रणनीति ग्रामीण वोट बैंक को लुभाने और गुजरात के दलित और अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं के बीच भाजपा के खिलाफ असंतोष को भड़काने पर लगी हुई है। गुजरात राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में ‘आम आदमी पार्टी’ का प्रवेश एक बड़ा खतरा नहीं मानाजा सकता है, लेकिन भाजपा के समर्थन को कमजोर करना निश्चिततौर पर पक्का है।

भाजपा के समाने प्रमुख चुनौतियाँ

150 से अधिक सीटों को प्राप्त करने में सक्षम होने के दावों के बावजूद, बीजेपी को राज्य में मतदाताओं को समझाने जैसे कठिन कार्य में सफल होना होगा। गुजरात राज्य के व्यापारियों और व्यवसायी अभी भी भाजपा के विमुद्रीकरण के प्रभावों से जूझ रहे हैं। पाटीदार आंदोलन के असंतोषजनक संचालन ने एक महत्वपूर्ण वोट बैंक को भी अलग कर दिया है। भाजपा के लिए तेजी से बढ़ती विरोधी दलित छवि भी एक और बाधा है, जिसे पार्टी को काबू करना होगा। केवल बचत अनुग्रह तथ्य यह हो सकता है कि गुजरात के लोग भाजपा को पसंद करने की संभावना रखते हैं, जिसने वर्ष 1990 में राज्य में होने वाला आखिरी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के बाद राज्य को बहुत विकास और समृद्धि प्रदान की है। हमें यह स्वीकार करना चाहिए न तो कांग्रेस और न ही आम आदमी पार्टी एक ठोस मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार को आगे बढ़ाने में सक्षम है।

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