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गुजरात विधानसभा चुनाव 2017: मुख्य मुद्दे

October 27, 2017
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गुजरात विधानसभा चुनाव वर्ष 2017: मुख्य मुद्दे

दीवाली के पटाखों का जुनून तो समाप्त हो सकता है, लेकिन साल के सबसे बड़े “पटाखे” (संग्राम) का शुभारंभ होना अभी बाकी है। चुनाव आयोग ने कल घोषणा की है कि गुजरात राज्य विधान सभा के बहुप्रतीक्षित चुनाव दो चरणों 9 दिसंबर और 14 दिसंबर 2017 को आयोजित किए जाएंगें। उत्तर प्रदेश में अप्रत्याशित लेकिन भारी जीत दर्ज करने के बाद, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को गुजरात के चुनाव में जीत दर्ज करना कोई कठिन काम नहीं प्रतीत होता है, लेकिन कई ऐसी हालिया घटनाएं हैं जिसके कारण भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि गुजरात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (भाजपा) का गृह राज्य है, जो कि वर्ष 1995 के बाद से भगवा रंग वाले कमल के प्रशासन के अधीन रहा है। भाजपा के पास कई सिद्धांत हैं। इसके अलावा केन्द्र सत्ताधारी नमो के नेतृत्व में यह पहला विधानसभा चुनाव है, इसलिए राज्यसभा में अपनी प्रतिष्ठा को कायम रखने के लिए राज्य विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करना बहुत महत्वपूर्ण है। गुजरात के चुनाव परिणाम के जरिए सभी संघर्ष करने वाली पार्टी यह भी अनुमान लगाने में सक्षम होगीं कि वर्ष 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में पश्चिमी राज्य के लोगों का रुझान किस तरफ अधिक होगा।

मतदाताओं के मन में हावी होने वाले कुछ प्रमुख मुद्दे नीचे प्रस्तुत हैं, जिनको मद्दे नजर रखते हुए 4.3 करोड़ मतदाता इस साल दिसंबर में अपना जनादेश देंगे।

  • भाजपा को उम्मीद है कि वह किसी भी तरह की विरोधी लहर से निपटने और 182 सीटों में से 150 से ज्यादा सीटों को हासिल करने में सक्षम है। हालाँकि, एक क्रियाशील मुख्यमंत्री पद के दावेदार की कमी भाजपा को चिंतित कर सकती है। ग्रामीण गुजरात की भावनाएं हाल की राज्यसभा चुनावों में देखी गई हैं, जहाँ अहमद पटेल, अमित शाह और स्मृति ईरानी के साथ जीतने में सफल हुए थे।
  • गुजरात, देश के सबसे औद्योगीकृत राज्यों में से एक है। हालिया विमुद्रीकरण और जीएसटी सुधारों के कारण कड़ी प्रतिक्रियाएं दर्ज की गई हैं। इसके बावजूद, राज्य में उच्च विकास और वर्ष 2015-16 के विनिर्माण क्षेत्र में लगभग 12 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इस साल एफडीआई की भी आकलना 33,670 लाख अमरीकी डालर की गई थी।
  • दशकों में पहली बार, कांग्रेस के पास यह सुनहरा अवसर आया है, जिसका फायदा कांग्रेस गुजरात चुनाव में जीत हासिल करके उठा सकती है। चुनाव मैदान में ‘आप’ पार्टी के आने के कारण ऐसा प्रतीत होता है कि भाजपा का वोट बैंक कम हो जाएगा। दूसरी तरफ कांग्रेस को निस्संदेह रूप से राकेश मेहरिया और अल्पेश ठाकुर के शामिल होने का फायदा होगा। ये दोनों राज्य के प्रमुख नेता हैं, जो हाल ही में भाजपा से बहिष्कृत हो चुके हैं। इन नेताओं के अलावा निस्संदेह दलित और ओबीसी वोट भी कांग्रेस को मिलने की संभावना है।
  • हार्दिक पटेल की अगुआई वाला पाटीदार आंदोलन राज्य के सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक है, जो कि भाजपा के खिलाफ जा सकता है। राज्य में पाटीदार या पटेल आंदोलन का वर्ष 2015 के उत्तरार्ध में समापन हुआ था। जिसके लिए जगह-जगह कर्फ्यू लगाए गए थे, क्योंकि ओबीसी की प्रतिष्ठा और कोटा आरक्षण की माँग करने वाले पटेल ने सार्वजनिक संपत्ति का भी काफी नुकसान किया था। उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने का हुक्म दिया था। पटेल राज्य के विभाजन के साथ अलग रियायतों की माँग कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि निचले समुदाय के लोगों के लिए आरक्षण होना चाहिए। दलित आंदोलन, राज्य में काफी तनाव का महौल पैदा कर रहा है, क्योंकि ये दोनों समुदाय भाजपा की सरकार से नाखुश हैं।
  • अमित शाह के बेटे जय शाह पर लगने वाला भ्रष्टाचार का आरोप, भाजपा को चुनावों से पहले सुलझाना होगा, नहीं तो चुनाव में यह एक बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा साबित हो सकता है। जय शाह पर आरोप है कि जब भाजपा के हाथों में केंद्र की सत्ता आई, तो उनकी कंपनी ने गत बीते हुए वर्षों में 16,000 गुना का इजाफा किया है। वह इस मामले की रिपोर्ट के लिए लोकप्रिय ऑनलाइन प्रकाशन द वायर के साथ मुकदमेबाजी में उलझे हुए हैं।
  • विपक्ष प्रभावी होने के बावजूद, सरदार सरोवर बाँध के हालिया उद्घाटन और गुजरात में सौराष्ट्र की घोघा और दहेज से संबंधित रो-रो फेरी सेवा का शुभारंभ निश्चित तौर पर भाजपा को मजबूती प्रदान करेगा। चुनाव के समय में सत्ताधारी पार्टी द्वारा की जाने वाली घोषणा कोई नई बात नहीं है, लेकिन गुजरात में किए गए अपने वादों को पूरा करने के कारण भाजपा एक प्रबल दावेदार है।

गुजरात के लोगों का अंतिम फैसला हमें 18 दिसंबर को होने वाली वोटों की गणना से प्राप्त होगा। तब तक राज्य सुर्खियों में छाए रहेंगे, क्योंकि संग्राम अभी जारी है।