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इंदिरा गांधी के शासन में भारत में कितना परिवर्तन हुआ?

June 25, 2018
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इंदिरा गांधी के शासन में भारत में कितना परिवर्तन हुआ?

इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में भारत की सबसे अच्छी ज्ञात राजनीतिज्ञ और नेता थी। इनका जन्म एक राजनीतिक परिवार में हुआ था और भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की एकलौती बेटी थीं, इसलिए जवाहरलाल नेहरू ने इंदिरा गांधी को भारतीय राजनीति की वास्तविकताओं में शामिल होने से पहले, इन्हें अंतर्राष्ट्रीय मामलों और भू-राजनीति से अवगत कराया था। इंदिरा गांधी ने मंत्री बनने के समय राजनीतिक नीतियों और भारत पर इसके प्रभाव को समझने के लिए, उन्होंने अपने कैरियर में विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केन्द्रित किया।

सूचना और प्रसारण मंत्री, वर्ष 1964-1966

वर्ष 1964 में जवाहरलाल नेहरू का अचानक निधन होने के कारण इंदिरा गांधी स्वाभाविक रूप से सत्ता की बागडोर अपने हाथ में ले सकती थीं, क्योंकि वह पहले से ही वर्ष 1959 में कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष थीं। लेकिन, इन्होंने पार्टी के नेतृत्व को अपने हाथ में लेने से इनकार कर दिया तथा इन्होंने लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने की बात कही और अपने आप सूचना और प्रसारण मंत्री के रूप में देश की सेवा करने का विकल्प चुना। वर्ष 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो गया था। दुर्भाग्य से, उस समय प्रधानमंत्री शास्त्री को दिल के दौरे का आघात सहन करना पड़ा और ताशकंद, सोवियत संघ में पाकिस्तानी राष्ट्रपति जनरल अयूब खान के साथ युद्ध विराम समझौते पर हस्ताक्षर करने के तुरंत बाद इनका निधन हो गया। गुलजारीलाल नंदा ने एक कार्यवाहक के रूप में प्रधानमंत्री का पद संभाला था।

वर्ष 1966 में इंदिरा गांधी द्वारा प्रधानमंत्री का कार्यभार संभालना

वर्ष 1966 के संगठित कांग्रेस संसदीय चुनाव में, पार्टी के भीतर नेतृत्व के लिए भीषण संघर्ष चल रहा था, इंदिरा गांधी ने चुनाव में मोराजी देसाई को पराजित करके, 24 जनवरी 1966 को प्रधानमंत्री का पदभार ग्रहण किया। वह वर्ष 1977 तक प्रधानमंत्री रही, परंतु उनके शासन के बीच की अवधि उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू था।

खाद्य संकट और पीएल- 480 प्रोग्राम

जब इन्होंने कार्यभार संभाला, उस समय पूरा भारत देश गंभीर सूखे और अकाल की चपेट में था और मुद्रास्फीति बहुत अधिक थी। शुरुआत से इंदिरा गांधी मूल रूप से साम्राज्यवाद के विरुद्ध और समाजवादी थी और उन्होंने सोवियत संघ को उस से प्रेरणा लेने के लिए एक आदर्श के रूप में देखा। लेकिन वर्ष 1966 में देश की भोजन और वित्तीय सहायता की दयनीय स्थिति ने उन्हें, संयुक्त राज्य के राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन से मुलाकात करने के लिए मजबूर कर दिया। लिंडन जॉनसन के साथ उनकी बैठक उपयोगी थी, जिसमें उन्होंने पीएल 480 प्रोग्राम के तहत गेहूँ की आपूर्ति करने और वित्तीय सहायता प्रदान करने की माँग की थी, लेकिन जॉनसन ने कठिन शर्ते निर्धारित की, जिसे इंदिरा स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थीं। परिणाम स्वरूप, संयुक्त राज्य प्रशासन ने पीएल- 480 को भेजने में काफी बिलंब किया था।

पार्टी से इंदिरा गांधी का बहिष्कार

इन्होंने न केवल भारत की आर्थिक स्थिति में वृद्धि की थी, बल्कि पार्टी के वह सदस्य जिन्होंने शुरू में प्रधानमंत्री पद के लिए इनकी उम्मीदवारी का समर्थन किया था, वे भी इंदिरा के खिलाफ विद्रोह करने लगे थे। वर्ष 1969 में तत्कालीन कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष एस. निजलिंगप्पा ने उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया था। इंदिरा गांधी ने पूर्व पार्टी के अधिकांश सांसदों के समर्थन के साथ अपनी खुद की कांग्रेस पार्टी बनाकर, अपने बहिष्कार का बदला लिया।
वर्ष 1971 में इन्होंने ‘गरीबी हटाओ’ अभियान के साथ आकस्मिक मतदान की माँग की और उसमें व्यापक मतों से जीत हासिल की। वर्ष 1971 में युद्ध में विजय के कारण वर्ष 1972 में, देश भर में ‘इंदिरा की लहर’ छाई हुई थी। इससे उन्हें एक नया विश्वास मिला और उन्होंने भविष्य में भारत के विकास को आकार देने के लिए कई बड़े निर्णय लिए।

इंदिरा: समाजवादी

वर्ष ‘1969 और 1971’ के बीच, उन्होंने कई प्रमुख नीतिगत निर्णय लिए। सबसे पहले, उन्होंने भोजन में आत्म-निर्भरता के लिए ‘हरित क्रांति’ कार्यक्रम को तेजी से आगे बढ़ाया। इसके बाद, इन्होंने विभिन्न रियासतों के शासकों पर से प्रिवी पर्स (राजभत्ता) को हटा दिया। इन्होंने भारतीय रुपए का भी अवमूल्यन किया। अंतिम लेकिन सबसे महत्वपूर्ण, उन्होंने उस समय भारत के 14 सबसे बड़ी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया। इन्होंने नेहरू के शासन के दौरान संयुक्त औद्योगिक नीतियाँ शुरू की, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा भारी उद्योगों के विकास पर जोर दिया गया था। हालांकि, इन्होंने आने वाले वर्षों में कुख्यात ‘लाइसेंस राज’ का भी निजी व्यवसाय और उद्योग के विकास में शुभारंभ किया था।

बांग्लादेश: इंदिरा गांधी की सबसे बड़ी उपलब्धि

वर्ष 1971 में भारत में पूर्वी पाकिस्तान के बहुल शरणार्थियों का प्रवाह देखा गया, जिन्होंने पाकिस्तान के साथ वर्ष 1971 के युद्ध में अगुवाई की थी। भारत-पाक युद्ध में पाकिस्ता न को बड़ी हार का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप पूर्वी पाकिस्तान आजाद हो गया और अंत में बांग्लादेश के रूप में एक नए देश का निर्माण हुआ। यह इनकी सबसे बड़ी विदेश नीति पहल थी, जिसने राष्ट्रों के सांसदों में उनकी छवि को ऊँचा कर दिया था। भारतीय सेना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से एक निर्णायक लड़ाई जीतने वाली पहली भारतीय सेना बन गई और इसे उच्च पद तथा आत्मविश्वास प्राप्त हुआ। इंदिरा गांधी वर्ष 1974 में राजस्थान के पोखरण में भारत के पहले परमाणु का परीक्षण का साक्षी बनी थीं।
फिर भी आर्थिक मोर्चे पर, भारत गंभीर तनाव में था। देश वर्ष 1971 में भारत-पाक युद्ध में हुई आर्थिक हानि से उभर रहा था तथा विश्व में वर्ष 1973 में ओपेक के नेतृत्व वाले तेल संकट और वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी की अवधि दर्ज की गई। इससे भारत भी बहुत तनाव में आ गया, क्योंकि मुद्रास्फीति में काफी वृद्धि हुई और लोग इसका विरोध करने लगे थे। इस पृष्ठभूमि में जयप्रकाश नारायण, वर्ष 1974 में ‘इंदिरा हटाओ अभियान’ का नेतृत्व करने के लिए सेवानिवृत्ति से बाहर निकल आए थे।

आपातकाल: उनका निर्णय

चूँकि इस अभियान ने पूरे देश में समर्थन प्राप्त किया था तथा एक और समानांतर बयान इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा एक निर्णय के रूप में आकार ले रहा था, क्योंकि राज नारायण द्वारा दायर एक जनहित याचिका के निर्णय ने, उनके चुनाव को अवैध घोषित कर दिया था और उन पर छह साल तक किसी भी कार्यालय को आयोजित करने से रोक लगा दी गई थी। इंदिरा ने ऐसा करने से इनकार कर दिया, जिसके कारण देश भर में विरोध प्रदर्शन हुए। उन्होंने जवाब में सभी विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार करवाकर 25 जून 1975 को जेल भेज दिया और आपातकाल की घोषणा की, जिसे आज तक भारतीय लोकतंत्र में काला दिवस के रूप में संदर्भित किया जाता है।
वर्ष 1980: सत्ता में आगमन
यह एक ऐसा समय था जब उनके छोटे बेटे, संजय, एक शक्तिशाली राजनीतिक के रूप में उभर रहे थे और बहुत से लोग इंदिरा को राजनीतिक विरासत सौंपने के लिए तैयार थे। इसलिए इन्होंने वर्ष 1977 में आपातकाल को हटा दिया था और नए चुनावों के लिए तैयारी कर रही थीं, लेकिन लोगों की निहायत भावनाएं उनके खिलाफ हो गई। इस चुनाव में उनको बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा और जनता पार्टी प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के अधीन हो गई। हालांकि मोरारजी कम समय तक ही सत्ता की कमान संभालने में कामयाब रहे थे, क्योंकि गठबंधन जल्द ही टूट गया था और जनवरी 1980 में इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में वापस आ गई थी।

ऑपरेशन ब्लूस्टार

यह इंदिरा गांधी के जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू था और कई मायनों में भारत के लिए भी महत्व पूर्ण था। पंजाब में खलिस्तान के लिए आंदोलन शुरू हो रहा था और कांग्रेस के भूतपूर्व समर्थक, जनरैल सिंह भिंडरा वाले के नेतृत्व में आंदोलन अपने चरम पर था। इसलिए भारतीय सेना ने ऑपरेशन ब्लूस्टार शुरू किया, जिसमें स्वर्ण मंदिर परिसर पर धावा बोलने के साथ बहुत से नागरिकों, भिंडरावाले और उनके सहयोगियों को मार दिया गया। एक बदले की लड़ाई में उनके व्यक्तिगत सुरक्षा रक्षक ने उनको 31 अक्टूबर 1984 को गोली मार दी। उनकी हत्या ने दिल्ली और अन्य जगहों पर सिखों में प्रतिशोधी हमलों की शुरुआत की।

इंदिरा गांधी की विरासत

इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश के निर्माण के साथ-साथ भारत को भोजन में आत्मनिर्भर बनाकर देश को गर्वान्वित कर दिया। वर्ष ‘1969 -1974’ की अवधि के दौरान उनकी दलित झुकाव वाली समाजवादी नीतियाँ शायद उन परिस्थितियों में सही थीं, लेकिन भारत की प्राकृतिक उद्यमिता के विकास की कीमतों में ऐसा करने के कारण, देश का एक दशक के अंतराल तक आधा भाग कमजोर हो गया था।

उनके मजबूत व्यक्तित्व ने अन्य नेताओं को राजनीतिक रूप से विकास करने की अनुमति नहीं दी और उनकी रुचि ने राजवंश राजनीति के लिए विरासत को छोड़ दिया है, जिससे उनकी पार्टी आज तक ग्रस्त है।

इंदिरा गांधी भारत की सबसे अच्छी ज्ञात राजनैतिक नेता बनी रहेंगी, क्योंकि नरेंद्र मोदी को अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है।