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जयललिता की संपत्ति के बारे में कुछ रोचक तथ्य

January 19, 2018
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जयललिता की संपत्ति के बारे में कुछ रोचक तथ्य

जयललिता की संपत्ति के बारे में कुछ रोचक तथ्य

अन्नाद्रमुक नेता जयललिता की रिहाई के साथ ही चेन्नई की गलियों में खुशियाँ लौट आयी थीं। इस आकस्मिक घटना से तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री के द्वारा किए गये भ्रष्टाचार के आरोप सामने आए। यद्यपि अम्मा (जयललिता) एक ऐसे व्यक्तित्व के साथ उभरकर समाने आईं हैं जिसका परीक्षण ‘शुद्ध सोने की तरह’ किया गया हो, फिर भी उनके बारे में कुछ तथ्य बहुत ही कम ज्ञात हैं, जो हमें इस 19 साल के लंबे प्रकरण के दूसरे पक्ष के बारे में सोचने के लिए मजबूर कर देते हैं।

1. शायद यह भारत के इतिहास में पहला मुकदमा होगा जिसमें एक उच्च न्यायालय द्वारा स्पष्ट रूप से की जा रही कार्यवाही के नतीजे आने के बाद एक अभियोजक को नियुक्त किया था। मुकदमा कोर्ट में अभियोजक के तर्क-वितर्क के बिना ही तय किया गया था, क्योंकि कर्नाटक हाई कोर्ट के न्यायाधीश सी.आर. कुमारस्वामी ने 11 मार्च सन् 2015 को इस मामले का आदेश पहले ही पारित कर दिया था, लेकिन मुकदमें को एक अभियोजक की प्राप्ती 27 अप्रैल सन् 2015 को सर्वोच्च न्यायालय के आदेश आने के बाद ही हो पायी थी।

2. प्रसिद्ध सरकारी अभियोजक बी.वी आचार्य का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने उनके मौखिक तर्कों को आगे बढ़ाने का मौका नहीं दिया था। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की प्रस्तुतीकरण देने के लिए केवल एक दिन का समय रखा था।

3. न्यायमूर्ति कुमारस्वामी ने विशेष न्यायाधीश जॉन माइकल कुन्हा के 1,067वें पृष्ठ के फैसले और बी.वी आचार्य, सुब्रह्मण्यम स्वामी एवं के. अनबाझगन के लिखित तर्कों के आधार पर यह फैसला सुनाया था।

4. इन रिपोर्टों के अनुसार, न्यायमूर्ति कुमारस्वामी ने 10 सेकंड के भीतर जयललिता को अपराधी घोषित कर दिया।

5. जयललिता को बैनामी संपत्ति के मामले के साथ-साथ दो अन्य मामलों जैसे द प्लीजेंट स्टेय होटल्स और टी.ए.एन.एस.आई के अपराध में दोषी ठहराया गया।

6. भ्रष्टाचार के मामले में 70 से अधिक लोगो के द्वारा विरोध करने पर भी जयललिता ने 2001 के चुनाव में पूर्ण बहुमत के साथ विजय प्राप्त की। उन्होंने अपनी पहले जैसी स्थित प्राप्त कर ली थी और पूर्व में हुए मामलों के विषय में कोई भी जानकारी प्रकट नहीं की थी।

7. 18 नवंबर 2003 को सुप्रीम कोर्ट ने यह मुकदमा कर्नाटक राज्य को सौंप दिया ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि इस मुकदमें में तमिलनाडु की अन्नाद्रमुक की पार्टी की शाक्ति का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है।

8. पहली बार सुनी गई घटना के रूप में आरोपी जयललिता ने अपने पक्ष की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट से अभियोजक भवानी सिंह की माँग की थी। उन्होंने अपने मुकदमें की जाँच कर रहे न्यायाधीश बालकृष्ण के कार्यकाल का विस्तार करने की माँग की, क्योंकि वह जाँच की कार्यवाही के मध्य ही सेवानिवृत्त हो गये थे, जो उनके द्वारा कही गयी बातों में सबसे अलग मानी जाती है।

9. पक्षपात के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अम्मा (जयललिता) की जमानत याचिका खारिज कर दी थी, क्योंकि कर्नाटक उच्च न्यायालय से उनको सहमति नहीं मिल पायी थी। सर्वोच्च न्यायालय ने भी इस मामले की समय सीमा बढ़ाने के लिए मना कर दिया और पूरी जाँच करने के बाद 18 अप्रैल को फैसला करने की बात कही।

10. फैसला आने से कुछ महीने पहले जयललिता और पार्टी की निष्ठा के लिए पार्टी के सदस्यों ने अभूतपूर्व प्रदर्शन किया था। पिछले छह महीनों से राज्य के प्रसिद्ध मंदिरों में उनकी रिहाई के लिए यज्ञ और प्रार्थनाएं की गईं। राज्य में यज्ञों का आयोजन कर गरीब व्यक्तियों व कन्याओं को भोजन खिलाने वाली रस्में भी निभायी गईं।

आप आने वाले दिनों में इस तरह के रोचक तथ्यों की आशा कर सकते हैं क्योंकि भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी, जिन्होंने 1996 में उनके खिलाफ मामला दर्ज कराया था, उन्होंने यह संकेत दिया हैं कि वह उनकी रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करेंगे।