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क्या नोटा राजनीतिक पार्टियों द्वारा उचित उम्मीदवारों को लाने में सफल हो रहा है?

December 23, 2017
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क्या नोटा राजनीतिक पार्टियों द्वारा उचित उम्मीदवारों को लाने में सफल हो रहा है?

नोटा क्या है?

नोटा का अर्थ है- नन ऑफ द एबव, यानि इनमें से कोई नहीं। यह चुनाव लड़ने वाले सभी उम्मीदवारों के खिलाफ या अपने अस्थाई जनादेश का प्रयोग करने का विकल्प है। वर्ष 2013 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भारतीय मतदाताओं को नोटा का विकल्प दिया गया था। देश में होने वाले राज्य विधानसभा और सामान्य चुनावों में नोटा वोट रजिस्टर करने के लिए, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) का इस्तेमाल किया जाता है। वर्ष 2015 में नोटा को प्रस्तावित करने वाला एक नया प्रतीक पेश किया गया था। नोटा से पहले भारतीय चुनाव प्रणाली ने धारा 49 (o) के तहत नकारात्मक मतदान के लिए एक अलग प्रक्रिया की अनुमति दी थी। हालांकि, इसने मतदाता के नामों का खुलासा कर दिया था और इसलिए इसे बंद कर दिया गया था। कई अन्य देश भी नोटा वोटों के लिएअनुमति देते हैं।

गुजरात और हिमाचल में नोटा

वर्ष 2015 के बाद से, हाल ही के गुजरात विधानसभा चुनावों में नोटा का दूसरी बार सबसे ज्यादा उपयोग हुआ। लगभग 1.8 प्रतिशत मतदाताओं ने पार्टियों द्वारा चुने गए चुनावी उम्मीदवारों में से एक को चुनने से मना कर दिया। इसका मतलब है कि 5.5 लाख मतदाताओं ने अपने जनादेश का फैसला किया, उनके अनुसार कोई भी उम्मीदवार चुनाव के योग्य नहीं थे। समाचार रिपोर्टों के अनुसार, 182 निर्वाचन क्षेत्र में 3000 में से कम से कम 100 नोटा वोट दर्ज किए गए थे और 16 निर्वाचन क्षेत्र में 5000 से अधिक नोटा प्रविष्टियाँ दर्ज की गई थीं। नोटा ने गुजरात के लगभग 30 निर्वाचन क्षेत्रों के उम्मीदवारों की जीत का निर्धारण किया है। यह सभी निर्वाचन क्षेत्रों का छठा हिस्सा है, जहाँ भारी संख्या में मतदान हुए हैं। दांता निर्वाचन क्षेत्र से 6,461 नोटा प्रविष्टियाँ दर्ज की गईं हैं और जेतपुर में 6,155 नोटा वोट डाले गए हैं।

इस महीने ही आयोजित हुए हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में, लगभग 34,232 मतदाताओं (0.9 प्रतिशत मतदाताओं के मत) ने नोटा विकल्प को चुना।

पिछले विधान सभा चुनाव में नोटा का उपयोग

वर्ष 2015 बिहार विधानसभा चुनावों में नोटा की काफी प्रविष्टियाँ दर्ज की गई हैं। इस चुनाव में 2.48 प्रतिशत नोटा वोटों की प्रविष्टियाँ प्राप्त हुई थीं। इन राज्य चुनावों में करीब 3 करोड़ 70 लाख मतदाताओं ने अपना जनादेश दिया था। बाद में वर्ष 2016 में लगभग 8 लाख (कुल वोटों का 1.67 प्रतिशत) नोटा वोटों की प्रविष्टियाँ प्राप्त हुई थीं। वर्ष 2016 में, 5 करोड़ 40 लाख मतदाताओं (1.53 प्रतिशत वोट) ने नोटा वोट डाले थे और पिछले साल तमिलनाडु राज्य विधानसभा चुनाव में 1.3 प्रतिशत नोटा प्रविष्टियाँ दर्ज की गई थीं।

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में करीब 6,000,000 वोटों में, 1.1 प्रतिशत नोटा वोट दर्ज किए गए थे।

क्या नोटा असफल हो रहा है?

नोटा को शुरुआत करने का लक्ष्य भारी तादात में लोगों का समर्थन और वोट देने के लिए प्रोत्साहित करना था। इससे पहले, मतदाताओं को अगर चुनाव लड़ने वाली पार्टियों के उम्मीदवार पसंद नहीं आते थे, तो वह वोट भी नहीं डालते थे। नोटा की शुरुआत होने से राजनीतिक पार्टियां साफ और लोकप्रिय उम्मीदवारों को टिकट देने के लिए मजबूर हो जाएंगी। यह संसद में सांसदों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले “मतदान के दौरान संयम” के बराबर है।

हालांकि, हमारी चुनावी प्रक्रिया के एक भाग के रूप में नोटा असफल हो जाता है, क्योंकि इसे गणना करने वाले अधिकारियों द्वारा (चुनाव आयोग के दिशानिर्देशों के अनुसार) अमान्य वोट के समान माना जाता है। इसका मतलब यह है कि एक निर्वाचन क्षेत्र में सभी नोटा वोटों के बावजूद भी अधिकतम मतों को प्राप्त करने वाले उम्मीदवार जीतने में सफल हो जाते हैं। इसका मतलब यह भी है कि अगर मुठ्ठी भर नोटा वोटों को उनके पसंदीदा उम्मीदवार को प्रदान कर दिए जाएं, तो भी उनके उम्मीदवार, बहुमत प्राप्त करने वाले उम्मीदवारों की बराबरी नहीं कर पाएंगे।

तीसरी मोर्चे की आवश्यकता

स्पष्ट रूप से नोटा के उपयोग के विश्लेषण से यह तथ्य प्राप्त होता है कि देश को मौजूदा पार्टियों से बेहतर उम्मीदवारों की आवश्यकता है। मजबूत, लेकिन शांति रूप से तीसरे मोर्चे की आवश्यकता को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है। कांग्रेस और उसके प्रशासन के दौरान होने वाले घोटालों के इतिहास ने, भारत के मतदाताओं को वर्ष 2014 में भाजपा को केंद्र का अधिभार सौंपने पर मजबूर कर दिया था। हालांकि भाजपा के प्रति लोगों की लोकप्रियता कम हो रही है। यद्यपि वर्ष 2014 के बाद भाजपा की पार्टी कई राज्यों में चुनाव जीतने में सफल हुई है, क्योंकि हाल ही में हुए गुजरात चुनावों से यह साबित होता है इस पार्टी का ऐसा शासन है, जिसकी बराबरी अन्य पार्टियां नहीं कर पा रही है। नोटा के उपयोग में वृद्धि से एक बात तो स्पष्ट जाहिर होती है कि भारत एक प्रतिबद्ध और प्रेरित तीसरे मोर्चे के आगमन की प्रतीक्षा कर रहा है, जो लोकतंत्र की वास्तविक भावना को बनाए रखने में सफल होगा।

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